📖 - सन्त मत्ती का सुसमाचार

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अध्याय 21

1) जब वे येरूसालेम के निकट पहुँचे और जैतून पहाड़ के समीप बेथफगे आ गये, तो ईसा ने दो शिष्यों को यह कहते हुए भेजा,

2) "सामने के गाँव जाओ। वहाँ पहुँचते ही तुम्हें बँधी हुई गदही मिलेगी और उसके साथ एक बछेड़ा। उन्हें खोल कर मेरे पास ले आओ।

3) यदि कोई कुछ बोले, तो कह देना- प्रभु को इनकी ज़रूरत है, वह इन्हें शीघ्र ही वापस भेज देंगे।"

4) यह इसलिए हुआ कि नबी का यह कथन पूरा हो जाये।

5) सियोन की पुत्री से कहोः देख! तेरे राजा तेरे पास आते हैं। वह विनम्र हैं। वह गदहे पर, बछडे पर, लद्दू जानवर के बच्चे पर सवार हैं।

6) शिष्य चल पड़े। ईसा ने जैसा आदेश दिया, उन्होंने वैसा ही किया।

7) गदही और बछेडा ले आ कर उन्होंने उन पर अपने कपड़े बिछा दिये और ईसा सवार हो गये।

8) भीड़ में से बहुत-से लोगों ने अपने कपडे़ रास्ते में बिछा दिये। कुछ लोगों ने पेड़ों की डालियाँ काट कर रास्ते में फैला दी।

9) ईसा के आगे-आगे जाते हुए और पीछे -पीछे आते हुए लोग यह नारा लगा रहे थे, "दाऊद के पुत्र को होसन्ना! धन्य हैं वह जो प्रभु के नाम पर आते हैं! सर्वोच्च स्वर्ग में होसन्ना!‘

10) जब ईसा येरूसालेम आये, तो सारे शहर में हलचल मच गयी। लोग पूछते थे, "यह कौन है?"

11) और जनता उत्तर देती थी "यह गलीलिया के नाज़रेत के नबी ईसा हैं"।

12) ईसा ने मन्दिर में प्रवेश किया और वहाँ से सब बेचने और ख़रीदने वालों को बाहर निकाल दिया। उन्होंने सराफ़ों की मेज़ें और कबूतर बेचने वालों की चैकियाँ उलट दीं

13) और उन से कहा, "लिखा है- मेरा घर प्रार्थना का घर कहलायेगा, परन्तु तुम लोग उसे लुटेरों का अड्डा बनाते हो"।

14) मन्दिर में अन्धे और लँगड़े ईसा के पास आये और उन्होंने उन को चंगा किया।

15) जब महायाजकों और शास्त्रियों ने उनके चमत्कार देखे और बालकों को मंदिर में यह नारा लगाते सुना- ’दाऊद के पुत्र को होन्न!’, तो वे क्रुद्ध हो कर

16) ईसा से बोले, "क्या तुम सुनते हो कि ये क्या कह रहे हैं?" ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, "सुनता तो हूँ। क्या तुम लोगों ने कभी यह नहीं पढ़ा- बालकों और दुधमुँहे बच्चों के मुख से तूने अपना गुणगान कराया है?"

17) इतना कह कर ईसा ने उन्हें छोड़ दिया और शहर से निकल कर वह बेथनिया गये और रात को वहीं रहे।

18) सबेरे शहर लौटते समय ईसा को भूख लगी।

19) वे रास्ते के किनारे अंजीर का पेड़ देख कर उसके पास आये। उन्होंने उस में पत्तों के सिवा और कुछ नहीं पाया और कहा, "तुझ में फिर कभी फल न लगे" और उसी क्षण अंजीर का वह पेड़ सूख गया।

20) यह देख कर शिष्य अचम्भे में पड़ गये और बोले, अंजीर का यह पेड़ तुरन्त कैसे सूख गया?"

21) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, "मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ - यदि तुम्हें विश्वास हो और तुम संदेह न करो, तो तुम न केवल वह करोगे, जो मैं अंजीर के पेड़ के साथ कर चुका हूँ, बल्कि यदि तुम इस पहाड़ से यह कहो - ’उठ, समुद्र में गिर जा’, तो वैसा ही हो जायेगा।

22) और जो कुछ तुम विश्वास के साथ प्रार्थना में माँगोगे, वह तुम्हें मिल जायेगा।"

23) जब ईसा मंदिर पहुँच गये थे और शिक्षा दे रहे थे, तो महायाजक और जनता के नेता उनके पास आ कर बोले, "आप किस अधिकार से यह सब कर रहें हैं? किसने आप को यह अधिकार दिया ?"

24) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, "मैं भी आप लोगों से एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ। यदि आप मुझे इसका उत्तर देंगे, तो मैं भी आपको बता दूँगा कि मैं किस अधिकार से यह सब कर रहा हूँ।

25) योहन का बपतिस्मा कहाँ का था? स्वर्ग का अथवा मनुष्यों का?" वे यह कहते हुए आपस में परामर्श करते थे - "यदि हम कहें: ’स्वर्ग का’, तो यह हम से कहेंगे, ’तब आप लोगों ने उस पर विश्वास क्यों नहीं किया?’

26) यदि हम कहें: ’मनुष्यों का’, तो जनता से डर है! क्योंकि सब योहन को नबी मानते हैं।"

27) इसलिए उन्होंने ईसा को उत्तर दिया, "हम नहीं जानते"। इस पर ईसा ने उन से कहा, "तब मैं भी आप लोगों को नहीं बताऊँगा कि मैं किस अधिकार से यह सब कर रहा हूँ।

28) "तुम लोगों का क्या विचार है? किसी मनुष्ष्य के दो पुत्र थे। उसने पहले के पास जाकर कहा, ’बेटा जाओ, आज दाखबारी में काम करो’।

29) उसने उत्तर दिया, ’मैं नहीं जाऊँगा’, किन्तु बाद में उसे पश्चात्ताप हुआ और वह गया।

30) पिता ने दूसरे पुत्र के पास जा कर यही कहा। उसने उत्तर दिया, ’जी हाँ पिताजी! किन्तु वह नहीं गया।

31) दोनों में से किसने अपने पिता की इच्छा पूरी की?" उन्होंने ईसा को उत्तर दिया, "पहले ने"। इस पर ईसा ने उन से कहा, "मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ - नाकेदार और वैश्याएँ तुम लोगों से पहले ईश्वर के राज्य में प्रवेश करेंगे।

32) योहन तुम्हें धार्मिकिता का मार्ग दिखाने आया और तुम लोगों ने उस पर विश्वास नहीं किया, परन्तु नाकेदारों और वेश्यायों ने उस पर विश्वास किया। यह देख कर तुम्हें बाद में भी पश्चात्ताप नहीं हुआ और तुम लोगों ने उस पर विश्वास नहीं किया।

33) "एक दूसरा दृष्टान्त सुनो। किसी भूमिधर ने दाख की बारी लगवायी, उसके चारों ओर घेरा बनवाया, उस में रस का कुण्ड खुदवाया और पक्का मचान बनवाया। तब उसे असामियों को पट्ठे पर दे कर वह परदेश चला गया।

34) फसल का समय आने पर उसने फसल का हिस्सा वसूल करने के लिए असामियों के पास अपने नौकरों को भेजा।

35) किन्तु असामियों ने उसके नौकरों को पकड़ कर उन में से किसी को मारा-पीटा, किसी की हत्या कर दी और किसी को पत्थरों से मार डाला।

36) इसके बाद उसने पहले से अधिक नौकरों को भेजा और असामियों ने उनके साथ भी वैसा ही किया।

37) अन्त में उसने यह सोच कर अपने पुत्र को उनके पास भेजा कि वे मेरे पूत्र का आदर करेंगे।

38) किन्तु पुत्र को देख कर असामियों ने एक दूसरे से कहा, ’यह तो उत्तराधिकारी है। चलो, हम इसे मार डालें और इसकी विरासत पर कब्जा कर लें।’ 39) उन्होंने उसे पकड़ लिया और दाखबारी से बाहर निकाल कर मार डाला।

40) जब दाखबारी का स्वामी लौटेगा, तो वह उन असामियों का क्या करेगा?"

41) उन्होंने ईसा से कहा, "वह उन दृष्टों का सर्वनाश करेगा और अपनी दाखबारी का पट्ठा दूसरे असामियों को देगा, जो समय पर फसल का हिस्सा देते रहेंगे"।

42) ईसा ने उन से कहा, "क्या तुम लोगों ने धर्मग्रन्थ में कभी यह नहीं पढा? करीगरों ने जिस पत्थर को बेकार समझ कर निकाल दिया था, वही कोने का पत्थर बन गया है। यह प्रभु का कार्य है। यह हमारी दृष्टि में अपूर्व है।

43) इसलिए मैं तुम लोगों से कहता हूँ - स्वर्ग का राज्य तुम से ले लिया जायेगा और ऐसे राष्ट्रों को दिया जायेगा, जो इसका उचित फल उत्पन्न करेगा।

44) "जो इस पत्थर पर गिरेगा, वह चूर-चूर हो जायेगा और जिस पर वह पत्थर गिरेगा, उस को पीस डालेगा।"

45) महायाजक और फरीसी उनके दृष्टान्त सुन कर समझ गये कि वह हमारे विषय में कह रहे हैं।

46) वे उन्हें गिरफ्तार करना चाहते थे, किन्तु वे जनता से डरते थे; क्योंकि वह ईसा को नबी मानती थी।



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