📖 - प्रेरित-चरित

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अध्याय 02

पेंतेकोस्त

1) जब पेंतेकोस्त का दिन आया और सब शिष्य एक स्थान पर इकट्ठे थे,

2) तो अचानक आँधी-जैसी आवाज आकाश से सुनाई पड़ी और सारा घर, जहाँ वे बैठे हुए थे, गूँज उठा।

3) उन्हें एक प्रकार की आग दिखाई पड़ी जो जीभों में विभाजित होकर उन में से हर एक के ऊपर आ कर ठहर गयी।

4) वे सब पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गये और पवित्र आत्मा द्वारा प्रदत्त वरदान के अनुसार भिन्न-भिन्न भाषाएं बोलने लगे।

5) पृथ्वी भर के सब राष्ट्रों से आये हुए धर्मी यहूदी उस समय येरूसालेम में रहते थे।

6) बहुत-से लोग वह आवाज सुन कर एकत्र हो गये। वे विस्मित थे, क्योंकि हर एक अपनी-अपनी भाषा में शिष्यों को बोेलते सुन रहा था।

7) वे बड़े अचम्भे में पड़ गये और चकित हो कर बोल उठे, "क्या ये बोलने वाले सब-के-सब गलीली नहीं है?

8) तो फिर हम में हर एक अपनी-अपनी जन्मभूमि की भाषा कैसे सुन रहा है?

9) पारथी, मेदी और एलामीती; मेसोपोतामिया, यहूदिया और कम्पादुनिया, पोंतुस और एशिया,

10 फ्रुगिया और पप्फुलिया, मिश्र और कुरेने के निकवर्ती लिबिया के निवासी, रोम के यहूदी तथा दीक्षार्थी प्रवासी,

11) क्रेत और अरब के निवासी-हम सब अपनी-अपनी भाषा में इन्हें ईश्वर के महान् कार्यों का बख़ान करते सुन रहे हैं।"

12) सब-के-सब बड़े अचम्भे में पड़ कर चकित रह गये और एक दूसरे से कहते थे, "यह क्या बात है?"

13) कुछ लोग उपहास करते हुए कहते थे, "ये तो नयी अंगूरी पी कर मतवाले हैं"।

पेत्रुस का भाषण

14) पेत्रुस ने ग्यारहो के साथ खड़े हो कर लोगों को सम्बोधित करते हुए ऊँचे स्वर से कहा, "यहूदी भाइयो और येरूसालेम के सब निवासियो! आप मेरी बात ध्यान से सुनें और यह जान लें कि

15) ये लोग मतवाले नहीं हैं, जैसा कि आप समझते हैं। अभी तो दिन के नौ ही बजे हैं।

16) यह वह बात है, जिसके विषय में नबी योएल ने कहा है,

17) प्रभु यह कहता है- मैं अन्तिम दिनों सब शरीरधारियों पर अपना आत्मा उतारूँगा। तुम्हारे पुत्र और पुत्रियाँ भविष्यवाणी करेंगे, तुम्हारे नवयुवकों को दिव्य दर्शन होंगे और तुम्हारे बड़े-बूढ़े स्वप्न देखेंगे।

18) मैं उन दिनों अपने दास-दासियों पर अपना आत्मा उतारूँगा और वे भविष्यवाणी करेंगे।

19) मैं ऊपर आकाश में चक्कर दिखाऊँगा और नीचे पृथ्वी पर चिह्न प्रकट करूँगा, अर्थात् रक्त, अग्नि और उड़ता हुआ धुआँ।

20) प्रभु के महान् तथा प्रकाशमान दिन के आगमन से पहले सूर्य अन्धकारमय और चन्द्रमा रक्तमय हो जायेगा।

21) जो प्रभु के नाम की दुहाई देगा, वही बचेगा।’

22) इस्राएली भाइयो! मेरी बातें ध्यान से सुनें! आप लोग स्वयं जानते हैं कि ईश्वर ने ईसा नाज़री के द्वारा आप लोगों के बीच कितने महान् कार्य, चमत्कार एवं चिह्न दिखाये हैं। इस से यह प्रमाणित हुआ कि ईसा ईश्वर की ओर से आप लोगों के पास भेजे गये थे।

23) वह ईश्वर के विधान तथा पूर्वज्ञान के अनुसार पकड़वाये गये और आप लोगों ने विधर्मियों के हाथों उन्हें क्रूस पर चढ़वाया और मरवा डाला है।

24) किन्तु ईश्वर ने मृत्यु के बन्धन खोल कर उन्हें पुनर्जीवित किया। यह असम्भव था कि वह मृत्यु के वश में रह जायें,

25) क्योंकि उनके विषय में दाऊद यह कहते हैं - प्रभु सदा मेरी आँखों के सामने रहता है। वह मेरे दाहिने विराजमान है, इसलिए मैं दृढ़ बना रहता हूँ।

26) मेरा हृदय आनन्दित है, मेरी आत्मा प्रफुल्लित है और मेरा शरीर भी सुरक्षित रहेगा;

27) क्योंकि तू मेरी आत्मा को अधोलोक में नहीं छोड़ेगा, तू अपने भक्त को क़ब्र में गलने नहीं देगा।

28) तूने मुझे जीवन का मार्ग दिखाया है। तेरे पास रह कर मुझे परिपूर्ण आनन्द प्राप्त होगा।

29) भाइयो! मैं कुलपति दाऊद के विषय में। आप लोगों से निस्संकोच यह कह सकता हूँ कि वह मर गये और कब्र में रखे गये। उनकी कब्र आज तक हमारे बीच विद्यमान है।

30) दाऊद जानते थे कि ईश्वर ने शपथ खा कर उन से यह कहा था कि मैं तुम्हारे वंशजों में एक व्यक्ति को तुम्हारे सिंहासन पर बैठाऊँगा;

31) इसलिये नबी होने के नाते भविष्य में होने वाला मसीह का पुनरुत्थान देखा और इनके विषय में कहा कि वह अधोलोक में नहीं छोड़े गये और उनका शरीर गलने नहीं दिया गया।

32) ईश्वर ने इन्हीं ईसा नामक मनुष्य को पुनर्जीवित किया है-हम इस बात के साक्षी हैं।

33) अब वह ईश्वर के दाहिने विराजमान हैं। उन्हें प्रतिज्ञात आत्मा पिता से प्राप्त हुआ और उन्होंने उसे हम लोगों को प्रदान किया, जैसा कि आप देख और सुन रहे हैं।

34) दाऊद स्वयं स्वर्ग नहीं गये; किन्तु वे कहते हैं- प्रभु ने मेरे प्रभु से कहा, तुम तब तक मेरे दाहिने बैठे रहो,

35) जब तब तक मैं तुम्हारे शत्रुओं को तुम्हारा पावदान न बना दूँ।

36) इस्राएल का सारा घराना यह निश्चित रूप से जान ले कि जिन्हें आप लोगों ने क्रूस पर चढ़ाया ईश्वर ने उन्हीं ईसा को प्रभु भी बना दिया है और मसीह भी।"

प्रथम दीक्षार्थी

37) यह सुन कर वे मर्माहत हो गये और उन्होंने पेत्रुस तथा अन्य प्रेरितों से कहा, "भाइयों! हमें क्या करना चाहिए?"

38) पेत्रुस ने उन्हें यह उत्तर दिया, "आप लोग पश्चाताप करें। आप लोगों में प्रत्येक अपने-अपने पापों की क्षमा के लिए ईसा के नाम पर बपतिस्मा ग्रहण करे। इस प्रकार आप पवित्र आत्मा का वरदान प्राप्त करेंगे;

39) क्योंकि वह प्रतिज्ञा आपके तथा आपकी सन्तान के लिए है, और उन सबों के लिए, जो भी दूर हैं और जिन्हें हमारा प्रभु-ईश्वर बुलाने वाला है।"

40) पेत्रुस ने और बहुत-सी बातों द्वारा साक्ष्य दिया और यह कहते हुए उन से अनुरोध किया कि आप लोग अपने को इस विधर्मी पीढ़ी से बचाये रखें।

41) जिन्होंने पेत्रुस की बातों पर विश्वास किया, उन्होंने बपतिस्मा ग्रहण किया। उस दिन लगभग तीन हजार लोग शिष्यों में सम्मिलित हो गये।

42) नये विश्वासी दत्तचित्त होकर प्रेरितों की शिक्षा सुना करते थे, भ्रातृत्व के निर्वाह में ईमानदार थे और प्रभु -भोज तथा सामूहिक प्रार्थनाओं में नियमित रूप से शामिल हुआ करते थे।

43) सबों पर विस्मय छाया रहता था, क्योंकि प्रेरित बहुत-से चमत्कार एवं चिह्न दिखाते थे।

44) सब विश्वासी एक हृदय थे। उनके पास जो कुछ था, उसमें सबों का साझा था।

45) वे अपनी चल-अचल सम्पत्ति बेचते थे और उसकी कीमत हर एक की ज़रूरत के अनुसार सब में बाँटते थे।

46) वे सब मिलकर प्रतिदिन मन्दिर जाया करते थे और निजी घरों में प्रभु-भोज में सम्मिलित होकर निष्कपट हृदय से आनन्दपूर्वक एक साथ भोजन करते थे।

47) वे ईश्वर की स्तुति किया करते थे और सारी जनता उन्हें बहुत मानती थी। प्रभु प्रतिदिन उनके समुदाय में ऐसे लोगों को मिला देता था, जो मुक्ति प्राप्त करने वाले थे।



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