📖 - फ़िलिप्पियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र

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अध्याय 04

1) इसीलिए मेरे प्रिय भाइयो, प्रभु में इस तरह दृढ़ रहिए। प्रिय भाइयो! मुझे आप लोगों से मिलने की बड़ी इच्छा है। आप मेरे आनन्द और मेरे मुकुट हैं।

एकता, आनन्द और शान्ति

2) मैं युवोदिया और सुनतूखे़, दोनों से अनुरोध करता हूँ कि तुम प्रभु में समझौता कर लो।

3) सुजुगे! मैं तुम से, अपने सच्चे साथी से, प्रार्थना करता हूँ कि तुम इन दोनों की सहायता करो। इन्होंने क्लेमेन्ट और मेरे अन्य सहयोगियों-सहित, जिनके नाम जीवन-ग्रन्थ में हैं, सुसमाचार के प्रचार में मेरे साथ कठोर परिश्रम किया।

4) आप लोग प्रभु में हर समय प्रसन्न रहें। मैं फिर कहता हूँ, प्रसन्न रहें।

5) सब लोग आपकी सौम्यता जान जायें। प्रभु निकट हैं।

6) किसी बात की चिन्ता न करें। हर जरू़रत में प्रार्थना करें और विनय तथा धन्यवाद के साथ ईश्वर के सामने अपने निवेदन प्रस्तुत करें

7) और ईश्वर की शान्ति, जो हमारी समझ से परे हैं, आपके हृदयों और विचारों को ईसा मसीह में सुरक्षित रखेगी।

8) भाइयो! अन्त में यह जो कुछ सच है, आदरणीय है; जो कुछ न्यायसंगत है, निर्दोष है; जो कुछ प्रीतिकर है, मनोहर है; जो कुछ उत्तम है, प्रशंसनीय है: ऐसी बातों का मनन किया करें।

9) आप लोगों ने मुझ से जो सीखा, ग्रहण किया, सुना और मुझ में देखा, उसके अनुसार आचरण करें और शान्ति का ईश्वर आप लोगों के साथ रहेगा।

आर्थिक सहायता के लिए धन्यवाद

10) मुझे प्रभु में इसलिए बड़ा आनन्द हुआ कि मेरे प्रति आप लोगों का प्रेम इतने दिनों के बाद फिर पल्लवित हुआ। इस से पहले भी आप को मेरी चिन्ता अवश्य थी, किन्तु उसे प्रकट करने का सुअवसर नहीं मिल रहा था।

11) मैं यह इसलिए नहीं कह रहा हूँ कि मुझे किसी बात की कमी है, क्योंकि मैंने हर परिस्थिति में स्वावलम्बी होना सीख लिया है।

12) मैं दरिद्रता तथा सम्पन्नता, दोनों से परिचित हूँ। चाहे परितृप्ति हो या भूख, समृद्धि हो या अभाव -मुझे जीवन के उतार-चढ़ाव का पूरा अनुभव है।

13) जो मुझे बल प्रदान करते हैं, मैं उनकी सहायता से सब कुछ कर सकता हूँ।

14) फिर भी आप लोगों ने संकट में मेरा साथ देकर अच्छा किया।

15) फि़लिप्पियों! आप लोग जानते हैं कि अपने सुसमाचार प्रचार के प्रारम्भ में जब मैं मकेदूनिया से चला गया, तो आप लोगों को छोड़ कर किसी भी कलीसिया ने मेरे साथ लेन-देन का सम्बन्ध नहीं रखा।

16) जब मैं थेसलनीके में था, तो आप लोगों ने मेरी आवश्यकता पूरी करने के लिए एक बार नहीं, बल्कि दो बार कुछ भेजा था।

17) मैं दान पाने के लिए उत्सुक नहीं हूँ। मैं इसलिए उत्सुक हूँ कि हिसाब में आपकी जमा-बाकी बढ़ती जाये।

18) अब मुझे किसी बात की कमी नहीं; मैं सम्पन्न हूँ। एपाफ्रोदितुस से आपकी भेजी हुई वस्तुएँ पाकर मैं समृद्ध हो गया हूँ। आप लोगों की यह भेंट एक मधुर सुगन्ध है, एक सुग्राह्य बलिदान, जो ईश्वर को प्रिय है।

19) मेरा ईश्वर आप लोगों को ईसा मसीह द्वारा महिमान्वित कर उदारतापूर्वक आपकी सब आवश्यकताओं को पूरा करेगा।

20) हमारे पिता ईश्वर को अनन्त काल तक महिमा! आमेन!

नमस्कार और आशीर्वाद

21) ईसा मसीह के सहभागी प्रत्येक सन्त को नमस्कार। जो भाई मेरे साथ है

22) और सभी सन्त, विशेष कर कैसर के कर्मचारी आप लोगों को नमस्कार कहते हैं।

23) हमारे प्रभु ईसा मसीह की कृपा आप लोगों पर बनी रहे।



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