📖 - थेसलनीकियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र

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अध्याय 02

थेसलनीके में सन्त पौलुस का धर्मप्रचार

1) भाइयो! आप स्वयं जानते हैं कि आप लोगों के यहाँ मेरा आगमन व्यर्थ नहीं हुआ।

2) आप जानते हैं कि हमें इसके ठीक पहले फिलिप्पी में दुव्र्यवहार और अपमान सहना पड़ा था। फिर भी हमने ईश्वर पर भरोसा रख कर, घोर विरोध का सामना करते हुए, निर्भीकता से आप लोगों के बीच सुसमाचार का प्रचार किया।

3) हमारा उपदेश न तो भ्रम पर आधारित है, न दूषित अभिप्राय से प्रेरित है और न उस में कोई छल-कपट है।

4) ईश्वर ने हमें योग्य समझ कर सुसमाचार सौंपा है। इसलिए हम मनुष्यों को नहीं, बल्कि हमारा हृदय परखने वाले ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए उपदेश देते हैं।

5) आप लोग जानते हैं और ईश्वर भी इसका साक्षी है कि हमारे मुख से चाटुकारी बातें कभी नहीं निकलीं और न हमने लोभ से प्रेरित हो कर कुछ किया।

6) हमने मनुष्यों का सम्मान पाने की चेष्टा नहीं की - न आप लोगों का और न दूसरों का,

7) यद्यपि हम मसीह के प्रेरित होने के नाते अपना अधिकार जता सकते थे। उल्टे, अपने बच्चों का लालन-पालन करने वाली माता की तरह हमने आप लोगों के साथ कोमल व्यवहार किया।

8) आपके प्रति हमारी ममता तथा हमारा प्रेम यहाँ तक बढ़ गया था कि हम आप को सुसमाचार के साथ अपना जीवन भी अर्पित करना चाहते थे।

9) भाइयो! आप को हमारा कठोर परिश्रम याद होगा। आपके बीच सुसमाचार का प्रचार करते समय हम दिन-रात काम करते रहे, जिससे किसी पर भार न डालें।

10) आप, और ईश्वर भी, इस बात के साक्षी हैं कि आप विश्वासियों के साथ हमारा आचरण कितना पवित्र, धार्मिक और निर्दोष था।

11) आप जानते हैं कि हम पिता की तरह आप में प्रत्येक को

12) उपदेश और सान्त्वना देते और अनुरोध करते थे कि आप उस ईश्वर के योग्य जीवन बितायें, जो आप को अपने राज्य की महिमा के लिए बुलाता है।

थेसलनीकियों का विश्वास

13) हम इसलिए निरन्तर ईश्वर को धन्यवाद देते हैं कि जब आपने इस से ईश्वर का सन्देश सुना और ग्रहण किया, तो आपने उसे मनुष्यों का वचन नहीं; बल्कि -जैसा कि वह वास्तव में है- ईश्वर का वचन समझकर स्वीकार किया और यह वचन अब आप विश्वासियों में क्रियाशील है।

14) भाइयो! आप लोगों ने यहूदियों में स्थित ईश्वर की मसीही कलीसियाओं का अनुकरण किया है: क्योंकि आप को अपने देश-भाइयों से वही दुव्र्यवहार सहना पड़ा, जो उन्होंने यहूदियों से सहा है।

15) यहूदियों ने ईसा मसीह तथा नबियों का वध किया और हम पर घोर अत्याचार किया। वे ईश्वर को अप्रसन्न करते हैं और सब मनुष्यों के विरोधी हैं;

16) क्योंकि वे गै़र-यहूदियों को मुक्ति का सन्देश सुनाने से हमें रोकना चाहते हैं और इस प्रकार वे अपने पापों का घड़ा निरन्तर भरते जाते हैं और अब ईश्वर का क्रोध उनके सिर पर आ पड़ा है।

सन्त पौलुस थेसलनीके जाने को उत्सुक

17) भाइयो! जब हम कुछ समय के लिए आप लोगों के प्रेम से नहीं, बल्कि आप के दर्शनों से वंचित थे, तो हमें आप से फिर मिलने की बड़ी अभिलाषा थी।

18) इसलिए हमने अर्थात् मैं - पौलुस - ने अनेक बार आपके यहाँ आना चाहा, किन्तु शैतान ने हमारा रास्ता रोक दिया।

19) जब हम प्रभु ईसा मसीह के आगमन पर उनके सामने खड़े होंगे, तो आप लोगों को छोड़ कर हमारी आशा या आनन्द या गौरवपूर्ण मुकुट क्या हो सकता है?

20) क्योंकि आप लोग ही हैं हमारे गौरव और हमारे आनन्द।



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