📖 - तिमथी के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र

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अध्याय 06

दासों के कर्तव्य

1) जिन लोगों पर दासता का जुआ रखा हुआ है, वे अपने स्वामियों को सब प्रकार के आदर के योग्य समझें, जिससे ईश्वर के नाम और कलीसिया की शिक्षा की निन्दा न हो।

2) जिनके स्वामी विश्वास में उनके भाई हैं, वे इसके कारण उनका कम आदर नहीं करें, बल्कि और अच्छी तरह उनकी सेवा करें; क्योंकि जो लोग उनकी सेवा से लाभ उठाते हैं, वे विश्वासी और प्रिय भाई हैं।

भक्ति-सम्मत शिक्षा और धन में अनासक्ति

3) तुम इन बातों की शिक्षा और उपदेश दिया करो। यदि कोई भिन्न शिक्षा देता है और हमारे प्रभु-ईसा-मसीह के हितकारी उपदेशों में और भक्ति-सम्मत शिक्षा में विश्वास नहीं करता,

4) तो मैं समझता हूँ कि घमण्ड ने उसे अंधा बना दिया है, वह कुछ नहीं समझता और उसे वाद-विवाद तथा निरर्थक शास्त्रार्थ करने का रोग हो गया है। इस प्रकार के विवादों से ईर्ष्या, फूट, परनिन्दा, दूसरों पर कुत्सित सन्देह

5) और निरन्तर झगड़े उत्पन्न होते हैं। यह सब ऐसे लोगों के योग्य हैं, जिनका मन विकृत और सत्य से वंचित हो गया है और जो यह समझते हैं कि भक्ति से लाभ मिलना चाहिए।

6) भक्ति से अवश्य बड़ा लाभ होता है, किन्तु केवल उसी को, जो अपनी धन-सम्पत्ति से सन्तुष्ट रहता है।

7) हम न तो इस संसार में कुछ अपने साथ ले आये और न यहाँ से कुछ साथ ले जा सकते हैं।

8) यदि हमारे पास भोजन-वस्त्र हैं, तो हमें इस से सन्तुष्ट रहना चाहिए।

9) जो लोग धन बटोरना चाहते हैं, वे प्रलोभन और फन्दे में पड़ जाते हैं और ऐसी मूर्खतापूर्ण तथा हानिकर वासनाओं के शिकार बनते हैं, जो मनुष्यों को पतन और विनाश के गर्त में ढकेल देती हैं;

10) क्योंकि धन का लालच सभी बुराईयों की जड़ है। इसी लालच में पड़ कर कई लोग विश्वास के मार्ग से भटक गये और उन्होंने बहुत-सी यन्त्रणाएँ झेलीं।

तिमथी से अनुरोध

11) ईश्वर का सेवक होने के नाते तुम इन सब बातों से अलग रह कर धार्मिकता, भक्ति, विश्वास, प्रेम, धैर्य तथा विनम्रता की साधना करो।

12) विश्वास के लिए निरन्तर संघर्ष करते रहो और उस अनन्त जीवन पर अधिकार प्राप्त करो, जिसके लिए तुम बुलाये गये हो और जिसके विषय में तुमने बहुत से लोगों के सामने अपने विश्वास का उत्तम साक्ष्य दिया।

13) ईश्वर जो सब को जीवन प्रदान करता है और ईसा मसीह, जिन्होंने पोंतियुस पिलातुस के सम्मुख अपना उत्तम साक्ष्य दिया, दोनों को साक्षी बना कर मैं तुम को यह आदेश देता हूँ।

14) कि हमारे प्रभु ईसा मसीह की अभिव्यक्ति के दिन तक अपना धर्म निष्कलंक तथा निर्दोष बनाये रखो।

15) यह अभिव्यक्ति यथासमय परमधन्य तथा एक मात्र अधीश्वर के द्वारा हो जायेगी। वह राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु है,

16) जो अमरता का एकमात्र स्रोत है, जो अगम्य ज्योति में निवास करता है, जिसे न तो किसी मनुष्य ने कभी देखा है और न कोई देख सकता है। उसे सम्मान तथा अनन्त काल तक बना रहने वाला सामर्थ्य! आमेन!

धनियों को चेतावनी

17) इस संसार के धनियों से अनुरोध करो कि वे घमण्ड न करें और नश्वर धन-सम्पत्ति पर नहीं, बल्कि ईश्वर पर भरोसा रखें, जो हमारे उपभोग की सब चीजें पर्याप्त मात्रा में देता है।

18) वे भलाई करते रहें, सत्कर्मों के धनी बनें, दानशील और उदार हों।

19) इस प्रकार वे अपने लिए एक ऐसी पूंजी एकत्र करेंगे, जो भविष्य का उत्तम आधार होगी और जिसके द्वारा वे वास्तविक जीवन प्राप्त कर सकेंगे।

उपहार

20) तिमथी तुम्हें जो निधि सौंपी गयी है, उसे सुरक्षित रखो। लौकिक बकवाद और मिथ्या “ज्ञान“ की आपत्तियों से बचे रहो।

21) ऐसे ज्ञान के बहुत-से अनुयायी विश्वास के मार्ग से भटक गये हैं। आप सभी पर कृपा बनी रहे।



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