📖 - योहन का पहला पत्र

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अध्याय 02

1) बच्चो! मैं तुम लोगों को यह इसलिए लिख रहा हूँ कि तुम पाप न करो। किन्तु यदि कोई पाप करता, तो पिता के पास हमारे एक सहायक विद्यमान हैं, अर्थात् धर्मात्मा ईसा मसीह।

2) उन्होंने हमारे पापों के लिए प्रायश्चित किया है और न केवल हमारे पापों के लिए, बल्कि समस्त संसार के पापों के लिए भी।

आज्ञाओं का पालन करना

3) यदि हम उनकी आज्ञाओं का पालन करेंगे, तो उस से हमें पता चलेगा कि हम उन्हें जानते हैं।

4) जो कहता है कि मैं उन्हें जानता हूँ, किन्तु उनकी आज्ञाओं का पालन नहीं करता वह झूठा है और उस में सच्चाई नहीं है।

5) परन्तु जो उनकी आज्ञाओं का पालन करता है, उस में ईश्वर का प्रेम परिपूर्णता तक पहुँचता है।

6) जो कहता है कि मैं उन में निवास करता हूँ, उसे वैसा ही आचरण करना चाहिए, जैसा आचरण मसीह ने किया।

7) प्रिय भाइयो! मैं तुम्हें कोई नयी आज्ञा नहीं लिख रहा हूँ। यह वही पुरानी आज्ञा है, जो प्रारम्भ से ही तुम्हें प्राप्त है। यह पुरानी आज्ञा वह वचन है, जिसे तुम सुन चुके हो।

8) फिर भी मैं तुम्हें जो आज्ञा लिख रहा हूँ, वह नयी है। वह नयी इसीलिए है कि वह उन में चरितार्थ हुई और तुम में भी चरितार्थ हो रही है; क्योंकि अन्धकार हट रहा है और सत्य की ज्योति अब चमकने लगी है।

9) जो कहता है कि मैं ज्योति में हूँ और अपने भाई से बैर करता है, वह अब तक अन्धकार में है।

10) जो अपने भाई को प्यार करता है, वह ज्योति में निवास करता है और कोई कारण नहीं कि उसे ठोकर लगे।

11) परन्तु जो अपने भाई से बैर करता है, वह अन्धकार में है और अन्धकार में चलता है। वह यह नहीं जानता कि वह कहाँ जा रहा है; क्योंकि अन्धकार ने उसे अन्धा बना दिया है।

संसार से सावधान रहना

12) बच्चो! मैं तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ कि उनके नाम के कारण तुम्हारे पाप क्षमा किये गये हैं।

13) पिताओ! मैं तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ कि तुम उसे जानते हो, जो आदिकाल से विद्यमान है। युवको! मैं तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ कि तुमने दुष्ष्ट पर विजय पायी है।

14) बच्चो! मैं तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ कि तुम पिता को जानते हो। पिताओं! मैं तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ कि तुम उसे जानते हो, जो आदि काल से विद्यमान है।युवको! मैं तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ कि तुम शक्तिशाली हो। तुम में ईश्वर का वचन निवास करता है और तुमने दुष्ट पर विजय पायी है।

15) तुम न तो संसार को प्यार करो और न संसार की वस्तुओं को। जो संसार को प्यार करता है, उस में पिता का प्रेम नहीं।

16) संसार में जो शरीर की वासना, आंखों का लोभ और धन-सम्पत्ति का घमण्ड है वह सब पिता से नहीं बल्कि संसार से आता है।

17) संसार और उसकी वासना समाप्त हो रही है; किन्तु जो ईश्वर की इच्छा पूरी करता है, वह युग-युगों तक बना रहता है।

मसीह-विरोधियों से सावधान रहना

18) बच्चो! यह अन्तिम समय है। तुम लोगों ने सुना होगा कि एक मसीह-विरोधी का आना अनिवार्य है। अब तक अनेक मसीह-विरोधी प्रकट हुए हैं। इस से हम जानते हैं कि अन्तिम समय आ गया है।

19) वे मसीह-विरोधी हमारा साथ छोड़कर चले गये, किन्तु वे हमारे अपने नहीं थे। यदि वे हमारे अपने होते, तो वे हमारे ही साथ रहते। वे चले गये, जिससे यह स्पष्ट हो जाये कि उन में कोई भी हमारा अपना नहीं था।

20) तुम लोगों को तो मसीह की ओर से पवित्र आत्मा मिला है और तुम सभी लोग सत्य जानते हो।

21) मैं तुम लोगों को इसलिए नहीं लिख रहा हूँ कि तुम सत्य नहीं जानते, बल्कि इसलिए कि तुम सत्य जानते हो और यह भी जानते हो कि हर झूठ सत्य का विरोधी है।

22) झूठा कौन है? वह, जो ईसा को मसीह नहीं मानता। वही मसीह-विरोधी है। वह पिता और पुत्र, देानों को अस्वीकार करता है।

23) जो पुत्र को अस्वीकार करता है, उस में पिता का निवास नहीं है। जो पुत्र को स्वीकार करता है, उस में पिता का निवास है।

24) जो शिक्षा तुम लोगों ने प्रारम्भ से सुनी, वह तुम में बनी रहे। जो शिक्षा तुम लोगों ने प्रारम्भ से सुनी, यदि वह तुम में बनी रहेगी, तो तुम भी पुत्र तथा पिता में बने रहोगे।

25) मसीह ने हम से जो प्रतिज्ञा की, वह है- अनन्त जीवन।

26) मैंने ये बातें तुम को उन लोगों के विषय में लिखीं हैं, जो तुम्हें भटकाना चाहते हैं।

27) तुम लोगों को मसीह से जो पवित्र आत्मा मिला, वह तुम में विद्यमान रहता है; इसलिए तुम को किसी अन्य गुरु की आवश्यकता नहीं। वह तुम्हें सब कुछ सिखलाता है। उसकी शिक्षा सत्य है, असत्य नहीं। तुम उस शिक्षा के अनुसार मसीह में बने रहो।

28) बच्चो! अब तुम उन में बने रहो, जिससे जब वह प्रकट हों, तो हमें पूरा भरोसा हो और उनके आगमन पर उन से अलग होने की निराशा न हो।

29) यदि तुम जानते हो कि वह निष्पाप हैं, तो यह भी समझ लो कि जो धर्माचरण करता है, वह ईश्वर की सन्तान है।



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