काथलिक धर्मशिक्षा

ख्रीस्तीय जीवन की प्राथमिकताएं

कई लोगों के लिए जीवन कुछ कार्यों या कर्मों का समावेष हैं। काम करने में हम व्यस्त रहते तो हैं, लेकिन जिन्दगी के असली मतलब को शायद भूल जाते हैं। जीवन में कुछ लक्ष्य तथा प्राथमिकताएं होना ज़रूरी है। आईये हम इस पर गौर करें।

सामूहिक कार्यः-

इस कहानी को ध्यान से पढ़िये और निम्न प्रश्नों के उत्तर दीजिये।

एक दिन एक अध्यापक काँच की एक बरनी लेकर कक्षा में आये। वह बरनी खाली थी। विद्यार्थियों के सामने उन्होंने उस बरनी को टेनिस गेंदों से भर दिया। फिर उन्होंने बच्चों से पूछा, “यह बरनी भरी है, न?” बच्चों ने उत्तर दिया, “जी हाँ”। उन्होंने फिर एक थैली में से कुछ गुल्ले बाहर निकाले। उन्होंने उन गुल्लों से बरनी में टेनिस गेंदों के बीच की जगह को भर दिया। उन्होंने फिर उन बच्चों से पूछा, “यह बरनी भरी है, न?” बच्चों ने उत्तर दिया, “जी हाँ, भरी है”। इसके बाद उन्होंने अपनी थैली में से कुछ रेत निकाली और उससे बरनी के अन्दर गेंदों तथा गुल्लों के बीच की जितनी खाली जगह थी, उसे भी फिर दिया। बरनी को बार बार हिला कर उन्होंने यह सुनिष्चित किया कि इसके बीच जगह बिलकुल नहीं बची है। पुनः उन्होंने बच्चों से पूछा, “यह बरनी भरी है, न?” बच्चों ने उत्तर दिया, “जी हाँ”। अब बच्चों को लगा कि अब तो बरनी एकदम भरी है और अध्यापक उसमें कुछ भी नहीं डाल सकते हैं। तब उन्होंने अपनी पानी की बोतल खोलकर उस पानी को बरनी में धीरे धीरे डाला। अब बरनी लबालब भर गई।

अध्यापक ने बच्चों को यह समझाया कि हर बार हम सोच रहे थे कि बरनी भरी है, परन्तु उसके अन्दर खाली जगह थी। फिर उन्होंने बच्चों से पूछा, “मान लीजिए, आप इस बरनी में सबसे पहले गुल्ले भर देते हैं। क्या आप उसके बाद उसमें टेनिस की गेंदें भर सकेंगे?” उन्होंने उत्तर दिया, “जी नहीं”। इस पर अध्यापक ने पूछा, “अगर आप सबसे पहले उस बरनी में रेत भर देते हैं, तो क्या आप उसके बाद उसमें गुल्ले या गेंद भर सकते हैं?” उन्होंने उत्तर दिया, “बिलकुल नहीं”।

प्रश्न:-
1. इस कहानी को अपने शब्दों में बताईये।
2. इस कहानी से आपको क्या सबक मिलता है?
3. टेनिस की गेंदें, गुल्ले, रेत, पानी इन चीज़ों की आप अपने जीवन की किन बातों से तुलना कर सकते हैं?

यह बरनी हमारी ज़िन्दगी का प्रतीक है। हमारे जीवन में कुछ प्राथमिकताएं होती हैं। टेनिस की गेंद जीवन की सबसे महत्वपूर्ण बातों का प्रतीक हैं, जैसे ईश्वर, आपका परिवार, आपका स्वास्थ्य, आपके मित्र आदि। अगर आप के पास ये सब होते, पर अन्य चीज़ें नहीं होती तो भी आपका जीवन भरा रहता। पर कुछ कमियाँ आप ज़रूर महसूस करते। गुल्ले आपके पेषे, घर, वाहन आदि का प्रतीक है। ये चीजें आपके जीवन को सरल बनाती हैं। रेत का तात्पर्य अन्य आरामदायक चीजों से है। हालाँकि ऐसी चीज़ें जिन्दगी को आरामदायक तो बनाती है, परन्तु उतनी ज़रूरीं नही होती।

हमारे जीवन में हमें कई बार चयन करना पड़ता है। हमारे सामने अनेक विकल्प आते हैं, तो हमें कई बार उनमें से एक का चयन करना पड़ता है। ऐसे में हमें यह निर्णय लेना ज़रूरी है कि किन-किन चीजों को प्राथमिकता के आधार पर चुनना चाहिए। महत्वपूर्ण कार्यों के लिए ज़्यादा समय निकालना ज़रूरी है। हमें प्रार्थना के द्वारा ईश्वर के साथ हमारे संबंध को बनाये रखना चाहिए। अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देकर डाक्टर के पास जाना, परिवार के सदस्यों के साथ समय बिताना आदि भी अत्यावष्यक बातें हैं।

यह साफ है कि हमें ईश्वर को प्रथम स्थान देना चाहिए। इसी को प्रभु ने ही पहली आज्ञा के रूप में प्रस्तुत किया है। “अपने प्रभु-ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा और अपनी सारी बुद्धि से प्यार करो। यह सबसे बड़ी और पहली आज्ञा है।” (मत्ती 22:37) प्रभु कहते हैं, “तुम सबसे पहले ईश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहो और ये सब चीज़ें तुम्हें यों ही मिल जायेंगी” (मत्ती 6:33)। प्रभु का यह भी सवाल है, “मनुष्य को इससे क्या लाभ यदि वह सारा संसार प्राप्त कर ले, लेकिन अपना जीवन ही गँवा दे?” (मत्ती 16:26)।

कई लोग अपना समय कुछ आदतों में गँवा देते हैं। कुछ सिर्फ आदत के कारण टी.वी चालू कर देते तथा चैनल बदलते रहते हैं। टी.वी. देखने में कोई बुराई नहीं है। परन्तु, अगर कोई सिर्फ आदत के कारण टी.वी. देखता रहता है, तो वह वक्त की बर्बादी है। कुछ लोग अपनी जिन्दगी की समस्याओं के बारे में सोचने से बचने या किसी से बात करने से बचने के लिए टी.वी. देखते रहते हैं।

जिनके लिये जीवन की प्राथमिकताएं स्पष्ट नहीं हैं, वे अपने काम को कल के लिए रखते जाते हैं और वास्तव में कोई काम नहीं होता है। वे अपनी ज़िम्मेदारियों को टालते रहते हैं। वे टी.वी. को इसके लिए उपयुक्त साधन मानते हैं। कुछ लोग टी.वी. के सामने इतना समय गुज़ारते हैं कि वे छोटे परदे पर जिन व्यक्तियों को देखते है, उनको अपने जीवन में इतनी जगह देने लगते हैं कि उन्हें बार बार देखने तथा उनकी बात बार-बार सुनने की इच्छा रखते हैं। हमारे परिवार के लोग तथा साथ काम करने वाले कार्यकर्त्ता हम से कुछ अपेक्षाएं रखते हैं जिनको पूरा करना आसान नहीं होता। लेकिन जिन लोगों को हम छोटे पर्दे पर देखते हैं वे हम से कुछ भी अपेक्षाएं नहीं रखते हैं। इसी कारण हम टी.वी. पर दिखायी देने वाले लोगों के साथ अपने परिवारजनों तथा आॅफिस के सहकार्यकर्त्ताओं से अधिक संबंध जोड़ना चाहते हैं। कुछ लोग मौन से डरते हैं और इसी कारण टी.वी. की शरण लेते हैं। जो मौन से डरता है उसे वास्तव में अपने हृदय की बातों से डर लगता है क्योंकि मौन के समय उसके अन्तरतम की बातें उसके सामने आती हैं।

अपने जीवन को सफल बनाने हेतु हमें स्वयं से कुछ सवाल करना ज़रूरी है। मैं जीवन में क्या बनना चाहता/चाहती हूँ? मैं जीवन में क्या पाना चाहता/चाहती हूँ? इसके लिए मेरा सबसे अच्छा रास्ता कौन-सा होगा? लक्ष्य तक पहुँचने के लिए मुझे क्या-क्या करना पड़ेगा, मेरे जीवन में क्या-क्या बदलाव लाना होगा? इस प्रकार मेरे लक्ष्य की ओर मेरा रास्ता स्पष्ट हो जाता है। इन बातों पर बार-बार ध्यान देने से हम हमारे जीवन को सफल बनाने में अधिक सक्षम बन सकते हैं। हमारे अन्तरतम की आशा-अभिलाषाओं को परखना हमारे संतुलित जीवन के लिए महत्वपूर्ण है। इतना ही नहीं, महान बनने के लिए महान सपने देखना ज़रूरी है। जो बड़े सपने देखते हैं, वे ही बडे़ बनते हैं। अपने लिए अच्छे और सच्चे लक्ष्य तय करने के बाद हमें बार-बार यह देखना चाहिए कि कौन-कौन से साधन हमें उस लक्ष्य की ओर ले जा सकते हैं और कौन-कौन सी चीज़ें हमें अपने लक्ष्य से दूर रखती हैं?

प्रभु हमसे कहते हैं कि जो मीनार बनवाना चाहता है उसे पहले बैठकर खर्च का हिसाब लगाना चाहिए और यह देखना चाहिए कि क्या उसे पूरा करने की पूँजी उसके पास है या नहीं। जो युद्ध करने जाता है उसे पहले बैठ कर यह विचार करना चाहिये कि जो बीस हज़ार की फौज़ के साथ उस पर चढ़ा आ रहा है, क्या वह दस हज़ार की फौज़ से उसका सामना कर सकता है (देखिए लूकस 14:28.31)। हमारा लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि हम अपने लिये ऐसे लक्ष्य रखें जिस तक हम पहुँच सकते हैं, नहीं तो हम हताष हो जायेंगे। इसका मतलब यह नहीं है कि हम अपने लिये निम्न स्तर के लक्ष्य निर्धारित करें। प्रभु येसु का लक्ष्य क्रूस पर मरकर अपने पिता की इच्छा को पूरा करना था। उन्होंने बार-बार अपने को इस विषय की याद दिलायी और जो भी विचारधारा, भावना या चीज़ लक्ष्य प्राप्ति से उन्हें अलग कर सकती थी उन सब बातों से उन्होंने अपने को दूर रखा। इसी प्रकार हम सभी को चाहिये कि हम ऐसे लक्ष्य रखे जिसे हम प्राप्त कर सकेंगे तथा हमारे लक्ष्य से हमें दूर भटकाने वाली ताकतों का धीरज के साथ मुकाबला करें। लक्ष्य-प्राप्ति के साधन भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। इनमें कुछ नैतिक होते हैं, कुछ अनैतिक। हम विश्वासियों को नैतिक साधनों का ही चयन करना चाहिये। कभी-कभी अनैतिक साधन हमें शीघ्र ही अपने लक्ष्य तक पहुँचा देते हैं। इसी कारण कई अनैतिक साधन बहुत ही लोकप्रिय हैं। जबकि इसके विपरीत नैतिक साधन कभी-कभी कठिन होते हैं तथा शीघ्र फलदायी भी नहीं होते हैं। हम ख्रीस्तीयों को ऐसे अनैतिक ”शार्ट कट” मार्गाें या साधनों के चयन के प्रलोभन से बचे रहना चाहिये।

इस संदर्भ में प्रभु येसु हमें यह भी याद दिलाते हैं कि हमें चट्टान पर अपने घर की नींव डालने वाले समझदार मनुष्य के समान ईश्वर के वचन पर आधारित जीवन बिताना चाहिए। (देखिए मत्ती 7:24) ऐसा करने से ईश्वर हमें दुख-संकट रूपी आँधी तूफान के बीच में भी निडर होकर आगे बढ़ने की कृपा प्रदान करते रहेंगे।

प्रश्न:-
1. जीवन की प्राथमिकताओं को निष्चित करना क्यों आवश्यक है?
2. ख्रीस्तीय विश्वासियों के लिये सबसे बड़ी प्राथमिकता क्या है?
3. अपने लक्ष्य के निर्धारण तथा उस तक पहुँचने के साधनों का चयन करते समय हमें किन-किन बातों पर ध्यान देना चाहिये?
4. अपने व्यक्तिगत जीवन की प्राथमिकताओं की सूची बनाईये।
5. आपके जीवन का लक्ष्य क्या है? उस लक्ष्य तक पहुँचने के लिए आपको क्या-क्या करना चाहिए?


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