चक्र अ के प्रवचन

वर्ष का दूसरा इतवार

पाठ: इसायाह 49:3,5-6; 1कुरिन्थियों 1:1-3; योहन 1:29-34

प्रवाचक: फादर जीवन किशोर तिर्की


जब ईश्वर ने मनुष्य की सृष्टि की, तब ईश्वर ने चाहा कि मनुष्य ईश्वर के इच्छानुसार जीवन बिताये। लेकिन मनुष्य ने ईश्वर की इच्छा को तोड़ा। उसने ईश्वर के आज्ञा का उलंघन किया। आज के स्तोत्र में स्तोत्रकार कहता है कि वह प्रभु की आज्ञाओं का पालन करेगा और उनकी इच्छा को पूरा करेगा।

ईश्वर ने इस्रायलियों को चुना ताकि वे ईश्वर की इच्छा के अनुसार जीवन बितायें। इनके जरिये ईश्वर ने अपनी इच्छा एवं योजना के अनुसार जीने का एक आदर्श बनाना चाहा। अतः ईश्वर ने विभिन्न नबियों को भेजा जो इन्हे ईश्वर की योजना अथवा इच्छा के बारे में मार्गदर्शन देते रहे। पर इस्राएली जनता भी ईश्वर की इच्छा के विरूद्ध गयी। उन्होंने भी ईश्वर की आज्ञाओं को उलंघन किया। आज के प्रथम पाठ के जरिये नबी इसायाह के द्वारा पुनः ईश्वर उन्हें स्मरण दिलाते हैं कि वे उन्हें राष्ट्रों की ज्योति बना देगें जिसके द्वारा ईश्वर का मुक्ति-विधान पृथ्वी के सीमान्तों तक फैल जायेगा। लेकिन इस्राएली जनता विफल रही।

तब ईश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को भेजा जो पिता ईश्वर की इच्छा व योजना के अनुसार जीवन बितायें और समस्त संसार के लिए एक उदाहरण बनें और ईश्वर के मुक्ति-विधान को पृथ्वी के सीमान्तों तक फैलायें।

एक लड़का था जो हर दिन फुटबाल मैच अभ्यास के लिए जाता था। पर उसे कभी टीम में शामिल नहीं किया गया। जब वह अभ्यास के दौरान खेलता था तो उसका पिताजी खेल मैदान से कहीं दूर एक कोने में बैठकर उसका इन्तजार करता था। खेल आरम्भ हो चुका था और चार दिन से वह लड़का न तो अभ्यास के लिए आया, न ही क्वार्टर फाइनल और न ही सेमी-फाइनल के लिए। पर फाइनल मैच के लिए आ गया। उसने प्रशिक्षक से कहा-‘‘सर आपने मुझे हमेंशा रोक कर रखा है और कभी खेलने नहीं दिया है। लेकिन सर आज मुझे खेलने दीजिए।’’ प्रशिक्षक ने कहा-‘‘बेटा मुझे माफ करना, मैं आपको खेलने नहीं दे सकता हूँ। आप से कहीं बेहतर खेलाड़ी हैं इसके अतिरिक्त यह फाइनल है। विद्यालय का नाम व प्रतिष्ठा दॉंव पर है। मैं तुम पर भाग्य नहीं परख सकता।’’ लड़के ने पुनः निवेदन किया- ‘‘सर मैं आपसे वादा करता हूँ कि मैं आपको निराश नहीं करूँगा, मैं आप को अपमानित नहीं करूँगा। सर मैं आप से विनय करता हूँ मुझे खेलने दीजिए सर। प्रशिक्षक ने उसे पहले कभी ऐसा अनुनय-विनय करते हुए नहीं देखा था। उसने कहा-‘‘ठीक है बेटा, जाओ खेलो। पर याद रखना कि मैं अपने सही निर्णय के विरूद्ध जा रहा हॅूं और विद्यालय का नाम भी खतरे में है। आप मुझे निराश मत करना।

खेल आरम्भ हुआ और लड़के ने इस कदर खेला मानो घर में आग लगी हो। जब भी बॉंल उसे मिली उसने गोल किये बगैर नहीं छोड़ा। कहने की आवश्यकता नहीं कि वह मैच का हीरो रहा। उसकी टीम की भव्य जीत रही। उसकी टीम की यह शानदार विजय थी।

मैच समाप्ति के पश्चात् प्रशिक्षक उसके पास गया और उसे कहा- ‘‘बेटा कैसे मैं इतना गलत हो सकता था? मैंने आपको कभी इस तरह खेलते हुए नहीं देखा। आज क्या हो गया? कैसे आप ने इतने अच्छे से खेला?’’ तब लड़के ने जवाब दिया-‘‘सर मेरे पिताजी आज देख रहे हैं।’’ तब प्रशिक्षक ने घूमकर उस स्थान पर देखा जहॉं अकसर उसका पिताजी बैठा करता था। पर वहॉं कोई नहीं था। तब उसने लड़के से कहा-‘‘बेटा आपका पिताजी वहॉं बैठा करता था जब आप अभ्यास कर रहे होते थे। पर आज मुझे वहॉं कोई दिखाई नहीं दिया। लड़के ने जवाब दिया-‘‘कुछ है जो मैंने आपको कभी बताया नहीं। मेरे पिताजी अन्धे थे। चार दिन पहले मेरे पिताजी की मृत्यु हो गयी। आज पहला दिन है जब मेरे पिताजी ऊपर से देख रहे हैं।

लड़के के पिताजी की इच्छा थी कि उसका पुत्र अच्छा खेले। अतः लड़के ने आज अपने पिताजी की इच्छा पूरी की।

इसी प्रकार की स्थिति हम आज के सुसमाचार में पाते हैं। येसु एक साधारण व्यक्ति थे। वे भीड़ में एक नज़र आ रहे थे। किसी ने नहीं सोचा था कि येसु ईश्वर के द्वारा भेजे गये ईश्वर के पुत्र है। यहॉं तक कि योहन बपतिस्ता भी नहीं जानता था। परन्तु योहन बपतिस्ता को ईश्वर से प्रेरणा मिली थी और उसने येसु पर पवित्र आत्मा को उतरते और ठहरते देखा। अतः योहन ने येसु की ओर इंगित करते हुए कहा-‘‘देखो ईश्वर का मेमना जो संसार का पाप हर लेता है।’’

येसु के इस संसार में आने का यही उद्देश्य था कि वे संसार को पापों से मुक्त करें। ईश्वर की यही इच्छा व योजना थी।

ईश्वर ने इस्राएली जनता को मूसा के जरिये मिश्रियों की दासता से छुड़ाया। मिश्र देश छोड़ने के पूर्व अंतिम रात्रि को इस्राएलियों ने पास्का पर्व मनाया। तब हर परिवार में मेमना मारा गया था एवं मेंमने का रक्त घर के चौखट पर पोत दिया गया था ताकि ईश्वर उन्हें किसी प्रकार की हानि या क्षति नहीं पहुँचाये। उसी तरह येसु नये पास्का मेमना हैं जिसने स्वयं को क्रूस की बली-वेदी पर बलिदान कर हमें पापों से मुक्त किया है। मनुष्य ने अपने ईश्वर की आज्ञा का उलंघन कर ईश्वर ने जो प्रतिरूप दिया था उसे खो दिया था। पर येसु ने अपनी आज्ञाकारिता द्वारा मनुष्य की खोये हुए प्रतिरूप को पुनःप्रतिष्ठित किया। येसु ने ईश्वर की इच्छा एवं योजना को पूर्ण किया। येसु के द्वारा ही ईश्वर का मुक्ति-विधान पृथ्वी की सीमान्तों तक फैल गया।

इसी बात को संत पौलुस आज के दूसरे पाठ में याद दिलाते हुए कहते हैं कि हम येसु के द्वारा पवित्र किये गये हैं और संत बनने के लिए बुलाये गये हैं। इसके लिए हमें आवश्यकता है कि हम भी येसु की भॉंति आज्ञाकारी बने। हमारे लिए ईश्वर की योजना व इच्छा सुसमाचार में निहित है। अतः जरूरत है कि हम सुसमाचार के प्रति आज्ञाकारी बने। हम सुसमाचार के मुल्यों को आत्मसात कर जीवन बितायें। यदि हम सुसमाचार पर आधारित जीवन जीते हैं तो हम पवित्र और संत बनेंगे।


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Praise the Lord!