चक्र अ के प्रवचन

खजूर इतवार

पाठ: इसायाह 50:4-7; फ़िलिप्पियों 2:6-11; जुलूसः मत्ती 21:1-11; मिस्साः मत्ती 26:14-27:66

प्रवाचक: फादर जीवन किशोर तिर्की


कई वर्षों के भ्रमण के बाद क्लीन्ट डेनिस को लगा कि कुछ महत्वपूर्ण बातें उसने अपने जीवन में खोयी है। उसने चर्च में हाज़िर होने का निर्णय लिया। जैसे ही उसने एक चर्च में प्रवेश किया उसने पहली बार देखा कि लोग लम्बे-लम्बे लिबास पहन रहे हैं। वे अपने कम्मरों में रसियॉं भी बॉंध रहे थे और शिरोवस्त्र से अपने सिर को चारों ओर लपेट रहे थे। किसी अजनबी ने उसे कहा-‘‘आइये भीड़ में समिल होकर भीड़ का हिस्सा बन जाइये।’’

यह खजूर रविवार का दिन था और विश्वासी क्रूसारोपण का पोशाक के साथ अभिनय कर रहे थे। उसे भीड़ में से एक होना था जो चिल्ला रहे थे-‘‘उसे क्रूस दिया जाये! उसे क्रूस दिया जाये!’’ हिचकिचाते हुए उसने भीड़ का हिस्सा बनना स्वीकार किया। फिर दूसरा अज़नबी उसके पास आया और उसे कहा-‘‘ जिस व्यक्ति को चोर बननी चाहिए थी वह आया ही नहीं है। क्या आप उसका जगह ले सकते है?’’ क्लीन्ट डेनिस सहामत हो गया। क्लीन्ट डेनिस को उस क्रूस को दिखाया गया जहॉं से वह येसु को मरते हुए देख सके।

तभी क्लीन्ट के कुछ चाल-चलन एक सदस्या की नज़रों में पड़ी। क्लीन्ट की ओर घुमते हुए उसने क्लीन्ट से पूछा-‘‘क्या आप ने कभी येसु से अपने पाप क्षमा करने के लिए प्रार्थना किया है?’’ ‘‘नहीं’’-क्लीन्ट ने धीरे से जवाब दिया-‘‘लेकिन उसी के लिए तो मैं यहॉं आया हॅूं।’’ वहॉं क्रूस के नीचे उन्होंने प्रार्थना किया और क्लीन्ट येसु से अपने हृदय में आकर बसने के लिए निवेदन किया। जो विश्वासी नहीं जानते थे वह यह था कि क्लीन्ट दस साल जेल में रहा था। वह वाकाई में चोर था। जेल से छुटने के बाद भी वह कार, ट्रक और अन्य मुल्यवान वस्तुएं चुराता रहा, जबतक उसे यह महसूस नहीं हुआ कि उसने अपने जीवन से कुछ महत्वपूर्ण चीजें खोई है।

क्या हमें येसु के दुःखभोग और मरण से परायों को प्यार करने, अपने आप को एवं दूसरों को क्षमा करने शक्ति प्राप्त होती है। प्रिय भाइयो-बहनों हमारे मसीह के दुःखभोग व मरन से यही शिक्षा तो मिलता है कि हम एक दूसरे को प्यार करें और क्षमा करें।

आज के पूज़न-समारोह के प्रथम भाग में हमने मसीहा की जय-जयकार करते सुना। मसीहा की येरूसलेम में इतिहासिक प्रवेश एक तरह से हमने आज के पूजन-समारोह में दूहराया। जिस प्रकार धर्म-ग्रन्थ में लिखा है कि मसीहा राजा बन येरूसलेम में प्रवेश करेंगे, येसु मसीह एक राजा के रूप में येरूसलेम में प्रवेश करता है। वे पूर्ण समर्थ्य एवं अधिकार के साथ युरूसलेम में प्रवेश करते हैं। लोगों ने उनका जय-जयकार किया। प्रथा के अनुसार जिस प्रकार लोग राजा का सम्मान करते थे उसी प्रकार मसीहा राजा को सम्मान किया गया। अमीरों ने उनकी राहों पर कपड़े बिछाई तो गरीबों ने डालियॉं काट-काटकर उनके राहों को सजाया। पूरे शहर में होसाना की नारा गुॅंज उठी। कुछ लोगों को पता नहीं था कि क्या हो रहा है। पूछने पर कि क्या हो रहा, येसु नहीं अब जनता उत्तर दे रही थी। शहरों में खुशी और उल्लास छायी रही। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि यह कुछ ही क्षण के लिए था।

कुछ दिनों में युरूसलेम में मायुसी छा जाती है। जनता की रवैया बदल जाती है। जो जनता एक समय में येसु की जय-जय कर रही थी, एक राजा का सम्मान दे रही थी, उमंग, जोश उत्साह से भरी-पूरी लग रही थी, येसु के लिए कुछ भी करने के लिए यहॉं तक कि अपनी जान की कुर्बानी देने को भी तैयार थी। येसु की वाह-वाही कर रही थी। अब वही जनता येसु को दोषी ठहराती है। येसु गिरफ्तार कर लिए गये हैं। येसु को कुकर्मी साबित करती है। पूर्ण जोश और उत्साह के साथ येसु के लिए क्रूस की मॉंग करती है। ‘‘होसाना’’, ‘‘होसाना’’ का नारा ‘‘क्रूस दिया जाये’’, ‘‘क्रूस दिया जाये’’ में बदल जाता है। जनता में एक क्रान्तिकारी परिवर्तन। जनता हिंसात्मक बन जाती है। जो जनता येसु के साथ थी वह अब येसु के विरूद्ध हो जाती है। जनता जो येसु के पास थी अब येसु से दूर हट जाती है। एक समय में जनता येसु के लिए बोल रही थी अब वह येसु के विरूद्ध बोल रही है। येसु एक ओर और समस्त जनता दूसरी ओर। यहॉं तक येसु के शिष्यों ने भी येसु को छोड़ दिया। पेतरूस येसु को तीन बार अस्वीकार कर चुका है। जनता में कोई ऐसा शक्स नहीं जो येसु के लिए बोले या उसके साथ रहे। शायद किसी ने ठीक ही कहा है-‘‘जीवन के चॉदनी रात में सब साथ होते पर अंधकार में कोई साथ नहीं देते हैं।’’ यही बात येसु के साथ होती है।

येसु को दोषी का करार दिया जा चुका है। वे अपनी विनम्रता बनाये रखे हैं। लोग उनपर तरह-तरह के अभियोग लगा रह हैं। कोई उन्हे अप-शब्द कह रहे हैं। कोई उनकी निन्दा कर रहे हैं। कोइ उनका उपहास कर रहे हैं। पर येसु बिल्कुल शांत हैं। कोई उनकी दाढ़ी नोच रहें। कोई उन पर थूक रहे हैं। इस पर भी येसु कोई अपत्ती नहीं जताते है। कोई उन्हें थप्पड़ मार रहें हैं। येसु को दर्द हो रहा है पर वे चुप-चाप दर्द सहते हैं। उसे कॉंटों का मुकुट पहनाया गया। यह मुकुट उसके सिर को चुभ रहा है। उसे कोड़ों से मारा गया। हम सोच सकते हैं कितनी दर्दनाक रही होगी। पर येसु यह सब सहते हैं। यह नहीं कि येसु में बदला लेने की क्षामता नहीं थी। आखिरकर थे तो ईश्वर के पुत्र। चाहते तो पूरी घटना को उलट-फेर कर सकते थे। पर उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया। बदले में वे चुप-चाप उन्हें क्षमा दे रहे थे। इतनी कोड़ों के मार के पश्चात् उनके लिए भारी क्रूस लाया गया। कोड़ों की मार के चोटों व घावों, थकी व दर्द भरी येसु के शरीर पर एक भारी क्रूस लादा गया। दया-भाव की कोई नज़र नहीं आयी लोगों में। दया से भरे व्यक्ति पर इतनी बड़ी क्ररूरता व निर्दयता। जनता मानवीय सभ्यता खो चुकी है। येसु में इन सबके लिए प्यार एवं क्षमा भाव के सिवाव और कुछ नही था। वे थके और दर्द सहते हुए अपना क्रूस उठाकर अपने नियति की ओर बढ़ते हैं। मनुष्य की जल्द-बाज़ वाली संस्कृति येसु को धक्के व अविराम कोड़ों की मार में परिणत हो जाती है। फलतः येसु गिरते-उठते जाते हैं। नियति पहुचने के पश्चात् उसे अधनंगा का कू्रस में पटक दिया गया। उसके जीवित शरीर में किंले ठोक दी गयी। भयांकर दर्द से येसु कराह उठे। लेकिन उसके इस दर्दनाक कराह में प्रेम एवं क्षमा भाव थी। अन्ततः येसु के ये भाव लबजों में उच्चारित हो गयी-‘‘हे पिता इन्हें क्षमा कीजिए क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं। येसु के क्षमा की भाव चर्म सीमा पर पहुंचती है। मानव के प्रति येसु का प्यार व क्षमा प्रकाष्ठा के पार जाती है। येसु ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक प्रेम एवं क्षमा किया। इस प्रकार येसु प्रेम और क्षमा के मूर्ति व स्रोत बन गये। अतः सहीं माइने में हम येसु के सच्चे अनुयायी तब बनते हैं जब हम एक दूसरे को प्रेम एवं क्षमा करते हैं। यह प्रेम और क्षमा किसी जाति, धर्म, संस्कृति, भाषा या क्षेत्र से सीमित नहीं है। यह प्रेम और क्षमा असीम है। यही हम येसु ख्रीस्त के अनुयायी की पहचांन है। अतः यह हम हरएक जन के लिए चुनौति है कि हम एक दूसरे को प्रेम व क्षमा करें। यही येसु के दुःखभोग का संदेश है। प्रेम और क्षमा ही हमें येसु के सच्चे अनुयायी बनाती है।

अतः आइये आज जब हम प्रभु येसु के दुःखभोग में भाग ले रहे हैं तो येसु से कृपा मांगे कि हम लोग एक दूसरे को बिना शार्त व स्वार्थ के प्रेम व क्षमा कर सकें।


Copyright © www.jayesu.com
Praise the Lord!