चक्र अ के प्रवचन

वर्ष का ग्याहवाँ इतवार

पाठ: निर्गमन 19:2.6अ; रोमियों 5:6.11; मत्ती 9:36.10:8

प्रवाचक: फ़ादर रोनाल्ड वॉन


जब हम रेलवे स्टेशन के पूछताछ केन्द्र पर जाकर किसी गाड़ी के बारे में पूछताछ करते हैं तो हमें विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएं देखने को मिलती है। कभी-कभी जो कर्मचारी कांउटर पर बैठता है वह खुशी से हमारे सभी सवालों के उत्तर देता है। कभी.कभी कर्मचारी की प्रतिक्रिया से हम बहुत ही असंतुष्ट हो जाते हैं। क्योंकि जब भी कोई काउंटर पर आता है तो कर्मचारी को शायद ऐसा लगता है कि मुसीबत आ गयी। हम अपने ही बारे में इस प्रकार के व्यवहार से संबंधित प्रष्न कर सकते हैं। सार्वजनिक स्थानों पर जो लोग बैठते हैं और जिनको बार.बार लोगों की बातें सुनना पड़ता है उन्हें सहनशीलता बरतनी पड़ती है। जब ऐसे लोग बहुत अच्छा व्यवहार करते हैं तो हम उनकी तारीफ़ करने लगते हैं। संत योहन मरिया वियानी के बारे में यह कहा जाता है कि कई दिनों में उन्हें सोलह घण्टें तक लगातार पाप स्वीकार सुनना पड़ता था। फिर भी वे उस कार्य को खुशी से कर लेते थे। इतनी सहनशीलता रखने वाले लोगों को बिरले ही हम हमारे समाज में पाते हैं। 

जो खुशी हम अपने कर्तव्यों को निभाने में दर्शाते हैं वह इस बात का प्रमाण है कि हम कितने निष्ठावान हैं। जब हमारे हृदय में लोगों के प्रतिए जिनकी सेवा करने को हम बुलाये गये हैंए अपनेपन की भावना होती हैए तब हम उनके साथ खुशी से व्यवहार करेंगेए उनकी बातें सुनेंगेए उनकी परेशनियों को दूर करने की कोशिश करेंगे और उनके लिये अपना अमूल्य समय भी व्यतीत करेंगे। आज के सुसमाचार में प्रभु हमें एक बहुत अच्छा उदाहरण देते हैं। जब वे एक विशल जनसमूह को देखते हैं तो प्रभु को उनपर तरस आता हैए ष्ष्क्योंकि वे बिना चरवाहे की भेड़ों की तरह थके.माँदे पड़े हुये थेष्ष्। इन लोगों को देखकर प्रभु कहते हैंए ष्ष्फ़सल तो बहुत हैए परन्तु मज़दूर थोड़े हैं”। 

कोई भी किसान फ़सल को देखकर खुशी महसूस करता है। लोगों के समुदाय को फ़सल कहकर प्रभु अपनी आंतरिक खुशी को ज़ाहिर करते हैं। शायद उस समय प्रभु खुद थके हुए थे। फिर भी जब लोग उनसे मिलने की चेष्टा करते हैं तो उन्हें ज़रा भी संकोच नहीं होता है। यह प्रभु के लोगों के प्रति असीम प्यार का भी प्रमाण है। इसलिये संत पौलुस आज के दूसरे पाठ में कहते हैं कि हम पापी ही थे जब मसीह हमारे प्रति प्यार के खातिर क्रूस पर मर गये। हम शत्रु ही थे जब उन्होंने अपने पिता के साथ हमारा मेल कराया। जब प्रभु को यह महसूस होता है कि लोग सत्य की राह खोजते हुए उनके पीछे लगे हुए है परन्तु उनका मार्गदर्षन करने के लिये कोई नहीं है तो उन्हें उनपर तरस आता है। किसी भी माता.पिता को इस बात पर दुःख होगा कि उनकी संतानों की ठीक से देखरेख नहीं हो रही है। इस कारण वे बैचेन तो ज़रूर होते हैं और साथ.साथ उस बैचेनी को दूर करने का उपाय भी खोजने लगते हैं।

प्रभु अपने शिष्यों से यह भी कहते हैं कि वे ज्यादा मज़दूरों को भेजने के लिये परमपिता से विनती करें। साथ ही साथ बारह प्रेरितों को अपनी फ़सल काटने के काम में सहयोगी बनाते हैं। जब हम इन प्रेरितों पर एक नज़र डालते हैं तो हमें पता चलता है कि वे समुदाय के सबसे अच्छे और आदरणीय लोग तो नहीं थे। उनमें से कई लोग संसार की दृष्टि में नगण्य और तुच्छ थे। लेकिन प्रभु एक बात स्थापित करना चाहते हैं कि प्रभु के शिष्य बनने के लिये हमें विनम्रता और समर्पण की भावना की ज़रूरत है न कि योग्यताओं व प्रतिभाओं की। 

बाइबिल में हम देखते हैं कि प्रभु कमज़ोर लोगों को चुनकर उन्हें अपने कार्य के लिये शक्तिशली बना देते हैं। हम मूसाए गिदेओनए पेत्रुस और अन्य शिष्यों में यहीं देखते हैं। हमारी शक्तिहीनता और कमज़ोरी में ही सर्वशक्तिमान ईश्वर की शक्ति प्रकट हो सकती है। जो अपने को शक्तिशली समझते हैंए वे उसी कारण शिष्य बनने के योग्य नहीं हैए क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपनी शक्ति पर गर्व नहीं कर सकता। 

प्रेरित प्रभु के लिये फ़सल काटने वाले मज़दूर थे और साथ ही और अधिक मज़दूरों को भेजने के लिये प्रार्थना करने वाले भी। इसी प्रकार हमें भी प्रभु की फ़सल काटने वाले मज़दूर बनने के साथ.साथ और अधिक मज़दूरों को भेजने के लिये ईश्वर पिता से प्रार्थना भी करना चाहिए। मज़दूर बनने का हमेश यह अर्थ नहीं निकलता कि हम पुरोहित या धर्म समाजी बने। बल्कि प्रभु हमें याद दिलाते हैं कि हम अपने ही स्तर पर और अपनी ही बुलाहट में स्थिर रहकर सुसमाचार प्रचार-प्रसार का काम कर सकते हैं। हम जहाँ कहीं भी रहें या जो कुछ भी करें हर बात मेंए हर कार्य में प्रभु के सुसमाचार को लोगों तक पहुँचाने की कोशिश करते रहें। साथ.साथ हमें प्रभु के कार्य करने वाले हरेक समर्पित व्यक्ति के लिये हृदय से प्रार्थना भी करना चाहिए।


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