चक्र अ के प्रवचन

वर्ष का बीसवाँ इतवार

पाठ: इसायाह 56:1,6-7; रोमियों 11:13-15;29-32; मत्ती 15:21-28

प्रवाचक: फादर विपिन तिग्गा


29 मई, 2013 को संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि येसु न केवल कैथलिक विश्वासियों को मुक्ति दिलाते हैं, बल्कि नास्तिक लोग भी येसु की मुक्ति पा सकते हैं। जो कोई भी भलाई करते हैं, वे सब स्वर्ग जा सकते हैं। येसु ख्रीस्त ने सारी मानव जाति की मुक्ति के लिए अपनी जान की कुर्बानी दी।

आज के पहले पाठ में नबी इसायाह के ग्रन्थ से हमने सुना – “जो विदेशी प्रभु के अनुयायी बन गये हैं, जिससे वे उसकी सेवा करें, वे उसका नाम लेते रहें और उसके भक्त बन जायें और वे सब, जो विश्राम-दिवस मनाते हैं और उसे अपवत्रि नहीं करते, मैं उन लोगों को अपने पवित्र पर्वत तक ले जाऊँगा। मैं उन्हें अपने प्रार्थनागृह में आनन्द प्रदान करूँगा। मैं अपनी वेदी पर उनके होम और बलिदान स्वीकार करूँगा; क्योंकि मेरा घर सब राष्ट्रों का प्रार्थनागृह कहलायेगा।“ (इसायाह 56:6-7)

संत पौलुस भी गैरयहूदियों को आज के दूसरे पाठ में कहते हैं कि अगर आप लोग ईश्वर की आज्ञाओं का पालने करते हैं, तो आप उनके कृपापात्र बन सकते हैं।

सुसमाचार में भी इसी प्रकार की एक घटना का वर्णन है जहाँ एक कनानी स्त्री की अपदूतग्रस्त बेटी को येसु चंगा करते हैं। ख्रीस्तीय धर्म यही सिखाता है कि ईश्वर की मुक्ति सब लोगों के लिए हैं। योहन 3:16 में पवित्र वचन कहता है – “ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने इसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो उस में विश्वास करता है, उसका सर्वनाश न हो, बल्कि अनन्त जीवन प्राप्त करे।” संत पौलुस तिमथी से कहते हैं, “मैं सब से पहले यह अनुरोध करता हूँ कि सभी मनुष्यों के लिए, विशेष रूप से राजाओं और अधिकारियों के लिए, अनुनय-विनय, प्रार्थना निवेदन तथा धन्यवाद अर्पित किया जाये, जिससे हम भक्ति तथा मर्यादा के साथ निर्विघ्न तथा शान्त जीवन बिता सकें। यह उचित भी है और हमारे मुक्तिदाता ईश्वर को प्रिय भी, क्योंकि वह चाहता है कि सभी मनुष्य मुक्ति प्राप्त करें और सत्य को जानें।“ (1 तिमथी 2:1-4) पवित्र वचन का सन्देश साफ है – ईश्वर सबका ईश्वर हैं और वे सबको बचाना चाहते हैं।

मीकाह 6:8 में प्रभु का वचन कहता है, “मनुष्य! तुम को बताया गया है कि उचित क्या है और प्रभु तुम से क्या चाहता है। यह इतना ही है- न्यायपूर्ण व्यवहार, कोमल भक्ति और ईश्वर के सामने विनयपूर्ण आचरण।”

संत पेत्रुस कहते हैं, “मैं अब अच्छी तरह समझ गया हूँ कि ईश्वर किसी के साथ पक्ष-पात नहीं करता। मनुष्य किसी भी राष्ट्र का क्यों न हो, यदि वह ईश्वर पर श्रद्धा रख कर धर्माचरण करता है, तो वह ईश्वर का कृपापात्र बन जाता हैं।” (प्रेरित-चरित 10:34-35)

मुक्ति की सार्वत्रिकता के अलावा एक और सन्देश आज के पाठों में है। वह है –निरन्तर प्रार्थना करने की ज़रूरत। कनानी स्त्री प्रभु येसु से निवेदन करते हुए कहती है, “हे प्रभु! दाऊद के पुत्र, मुझ पर दया कीजिए”। अकसर हम सुसमाचार में पढ़ते हैं कि येसु दुखियों पर तुरंत दया प्रदर्शित करते हैं, लेकिन यहाँ प्रभु थोडा समय लेते हैं और उस गैरयहूदी स्त्री की परीक्षा लेते हैं। उस के निवेदन को नकारने पर भी वह स्त्री हिम्मत नहीं हारती है, बल्कि लगातार अनुनय विनय करती है और प्रभु येसु के सामने अपने गहरे विश्वास को प्रकट करने वाली बातें कहती है। अंत में प्रभु कहते हैं, “नारी! तुम्हारा विश्वास महान् है। तुम्हारी इच्छा पूरी हो।”

ईश्वर कई बार हमारे विश्वास की परीक्षा लेते हैं। कभी-कभी हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर हमें शीघ्र ही नहीं मिलता, उन क्षणों में हमें हताश न होकर कनानी स्त्री से सीखना चाहिए। वह हमारे लिए एक उत्तम उदाहरण है कि हम विश्वास, धैर्य और विनम्रता के साथ येसु से निवेदन करते रहें। वह कनानी स्त्री अपमानित हुयी, लेकिन वह धैर्य के साथ लगी रही जब तक उसका निवेदन पूरा नहीं हुआ। हमें भी आशा नहीं छोडना चाहिए, ईश्वर पर भरोसा रख कर आगे बढ़ते रहना है।

संत लूकस के सुसमाचार (18:1-8) में हम न्यायकर्ता और विधवा का दृष्टान्त पढ़ते हैं। विधवा न्याय के लिए बार-बार न्यायकर्ता के पास तब तक जाती है जब तक उसे न्याय नहीं मिलता है| थेसलनीकियों को लिखते हुए संत पौलुस कहते हैं, “आप लोग हर समय प्रसन्न रहें, निरन्तर प्रार्थना करते रहें, सब बातों के लिए ईश्वर को धन्यवाद दें; क्योंकि ईसा मसीह के अनुसार आप लोगों के विषय में ईश्वर की इच्छा यही है। (1 थेसलनीकियों 5:17-18)


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