चक्र अ के प्रवचन

वर्ष का अट्ठाईसवाँ इतवार

पाठ: इसायाह 26:6-10अ; फिलिप्पियों 4:12-14,19-20; मत्ती 22:1-14

प्रवाचक: फ़ादरडेन्नीस तिग्गा


येसु मसीह के इस संसार में जन्म लेने से इस पूरे संसार को एक नया मोड़ मिला है। येसु के इस संसार में आने से कई ईश्वरीय रहस्य प्रकट हुए जिसे हम शायद ही जान पाते। येसु के जन्म के बाद मॉं मरियम और यूसुफ बालक येसु को प्रभु को अर्पित करने के लिए येरुसालेम ले गये। वहॉं पर सिमेयोन नामक एक धर्मी तथा भक्त पुरुष ने ईसा को अपनी गोद में ले लिया और ईश्वर की स्तुति करते हुए कहा, ‘‘यह गैर-यहुदियों के प्रबोधन के लिए ज्योति है और तेरी प्रजा इस्राएल का गौरव।’’ (योहन 2:32) प्रभु येसु ने अपने वचनो एवं दृष्टांतों द्वारा कई ईश्वरीय रहस्य हम सब को दिये है। आज का दृष्टांत समस्त लोगों की मुक्ति का निमंत्रण लेकर आता है। आज के दृष्टांत का अहम संदेश यह है कि मुक्ति केवल यहुदियों के लिए नहीं परंतु गैर-यहुदियों के लिए भी है।

आज प्रभु येसु हमारे सामने विवाह उत्सव का दृष्टांत प्रस्तुत करते हैं। इस दृष्टांत में राजा ने अपने पुत्र के विवाह के अवसर पर एक बड़ा भोज का उत्सव रखा परन्तु निमंत्रित लोगो के भोज में आने से इंकार करने पर राजा ने रास्ते और चौराहों पर जो भी मिले उन्हें लाने का आदेश दिया। राजा ने लाये गये लोगों में से एक व्यक्ति को पाया जो विवाह उत्सव का वस्त्र नही पहने हुए था और राजा ने उसको दण्डित किया। इस दृष्टांत को सुनने के बाद हमारे मन में राजा के व्यवहार के प्रति अजीबोगरीब भावनाए उत्पन्न होती होगी कि यह राजा तो बड़ा अजीब है सबसे पहले तो वह रास्ते में मिलने वाले सभी लोगो को लाने को कहता है और जब कोई एक व्यक्ति बिना विवाह वस्त्र पहने हुए पाया जाता है तो उसे दण्डित भी करता है। राजा को तो खुश होना चाहिए कि कम से कम वह व्यक्ति विवाह उत्सव में तो आया। अगर राजा ने सबको बुलाया तो उसे उन सब को अपनाना चाहिये था। हो सकता है वह व्यक्ति गरीब हो और उसके पास विवाह वस्त्र खरीदने के लिए समय या धन न हो।

इसे समझने के लिए आइये हम मनन चिंतन और अवलोकन करें- राजा ने जब चौराहो पर मिलने वाले हर एक व्यक्ति को, चाहे वह अच्छा हो या बुरा, सबको लाने का आदेश दिया तब वहॉं पर यह व्यक्ति अकेला नही था परन्तु उसके साथ-साथ बहुत सारे व्यक्ति थे और शायद उन व्यक्तियों के पास भी विवाह के वस्त्र नही होंगे। लेकिन जब वे सब विवाह उत्सव में प्रवेश करते हैं तो केवल एक व्यक्ति ही बिना विवाह उत्सव के वस्त्र के था। इसका मतलब यह है कि विवाह उत्सव के वस्त्र या तो द्वार पर रखे गये थे या ये वस्त्र उन्हें दिये गये थे जिससे वे उन्हे पहन कर अंदर प्रवेश कर सकें। विवाह वस्त्र को पहनना उनकी एक परम्परा रही होगी। विवाह उत्सव के वस्त्र विवाह भोज के लिए अत्यंत जरूरी या अनिवार्य थे ।

यहुदी जनता ईश्वर के करीब थी और शुरू से ईश्वर से जुडी हुई थी। ‘‘मैं तुम्हें और तुम्हारे बाद तुम्हारे वंशजों को वह भूमि प्रदान करूँगा, जिस में तुम निवास करते हो, अर्थात् कनान का समस्त देश। उस पर सदा के लिए तुम लोगों का अधिकार होगा और मैं तुम्हारे वंशजों का ईश्वर होऊॅंगा।’’ (उत्पत्ति 17:18)। ‘‘तुम इस्राएलियों से यह कहोगे - प्रभु तुम्हारे पूर्वजों के ईश्वर, इब्राहीम, इसहाक तथा याकूब के ईश्वर ने मुझे तुम लोगो के पास भेजा है’’(निर्गमन 3:15)। ‘‘मैं उनके पूर्वजों को राष्ट्रों के देखते-देखते मिस्र से निकाल लाया। मैं उनके लिए निर्धारित विधान का स्मरण करूँगा और मैं, प्रभु उनका अपना ईश्वर होऊॅंगा’’ (लेवी 26:45)। ‘‘वह मेरी प्रजा हो और मैं उसका प्रभु होऊॅं’’ (एजे़किएल 1:11)। ईश्वर ने स्वर्ग राज्य का निमंत्रण सबसे पहले यहुदियों को दिया परन्तु उसे उन्होने अस्वीकार किया। इसके बाद प्रभु ने नबियों को भेजा जिससे वे नबियों की सुनें, परन्तु उन्होने उनका अपमान किया और उन्हें मार डाला। ईश्वर ने उनके इस बर्ताव और घमण्ड के कारण उनका और उनके नगर येरुसालेम का सर्वनाश होने दिया। ‘‘येरुसालेम! येरुसालेम! तू नबियों की हत्या करता है और अपने पास भेजे हुए लोगों को पत्थरों से मार देता है। मैंने कितनी बार चाहा कि तेरी सन्तान को वैसे ही एकत्र कर लूँ, जैसे मुर्गी अपने चूजों को अपने डैनों के नीचे एकत्र कर लेती है, परन्तु तुम लोगों ने इनकार कर दिया। देखो, तुम्हारा घर उजाड़ छोड़ दिया जायेगा। मैं तुम से कहता हूँ। अब से तुम मुझे नहीं देखोगे, जब तक तुम यह न कहोगे-धन्य हैं वह, जो प्रभु के नाम पर आते हैं।’’ (मत्ती 23:37-39)।

प्रभु येसु के इस संसार में आने के बाद स्वर्गराज्य सब के लिए, हर प्रकार के जाति, वर्ग और लोगों के लिए खुल गया और दुनिया के हर कोने में रहने वाले सभी लोगों के लिए आमंत्रण मिला। और इस आमंत्रण में हम सब भी शामिल हैं। परन्तु इस विवाह उत्सव में प्रवेश करने से पूर्व हमें इसके लिए तैयारी करने की आवश्यकता है। अन्यथा हमंस उस मनुष्य के समान जिसने विवाह उत्सव के वस्त्र नहीं पहने थे हाथ-पैर बॉंधकर अन्धकार में फेंक दिया जायेगा। विवाह उत्सव का वस्त्र अर्थात् अपने पुराने वस्त्र को उतार कर नये वस्त्र को पहनना हैं। ‘‘आप लोगों को अपना पहला आचरण और पुराना स्वभाव त्याग देना चाहिए, क्योंकि वह बहकाने वाली दुर्वासनाओं के कारण बिगड़ता जा रहा है। आप लोग पूर्ण रूप से नवीन आध्यात्मिक विचारधारा अपनायें और एक नवीन स्वभाव धारण करें, जिसकी सृष्टि ईश्वर के अनुसार हुई है और जो धार्मिकता तथा सच्ची पवित्रता में व्यक्त होता है’’ (एफेसियों 22:24)। अर्थात् अपने पुराने पापमय स्वभाव को छोड़ कर एक पवित्र और नवीन स्वभाव को अपनाने की जरूरत है। और यह नया स्वभाव प्रभु येसु का मनोभाव और उसकी धार्मिकता है। हम सब को स्वर्गराज्य में प्रवेश करने के लिए प्रभु येसु का मनोभाव या उसकी धार्मिकता को अपनाने की जरूरत है।

आज का दृष्टांत हमें यह बताता है कि स्वर्गराज्य सब के लिए है न केवल एक ही जाति या एक ही प्रजाति के लिए। परन्तु बहुतो के अस्वीकार के कारण वे उसमें प्रवेश नही कर पाते हैं। पहले यहुदियों ने येसु मसीह को मानने से इनकार किया और बाद में उन लोगों ने जो येसु के मनोभाव या धार्मिकता को अस्वीकार करते हैं। यहॉं ख्रीस्त का मनोभाव अपनाने का मतलब केवल ख्रीस्तीय धर्म अपनाना नही परन्तु ख्रीस्त के मन के अनुसार अपने मन को बनाना या आचरण करना है और यह मनोभाव या आचरण गैर ख्रीस्तीयों के जीवन में भी पाया जा सकता है।

आईये हम सब अपने मनोभाव को ख्रीस्त के मनोभाव के अनुसार बनायें (फिलिप्पियों 2:5)।


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