Smiley face

05. ख्रीस्त जयन्ती (जागरण मिस्सा)

इसायाह 62:1-5; प्रेरित-चरित 13:16-17,22-25; मत्ती 1:1-25 या 1:18-25

फादर शैल्मोन अंथोनी


एक गाने की पंक्ति मुझे याद आ रही है जो इस प्रकार है - ईश्वर इंसान बन गया और एक नया इतिहास बन गया। हॉ, इसलिए तो सारी दुनिया इस पर्व को धूम धाम से मनाती है। क्रिसमस सारी मानवजाति के लिए महत्वपूर्ण क्यों है? बाकी त्योहारों की अपेक्षा इस त्योहार में क्या ख़ास बात है?

सरी दुनिया एक मुक्ति दाता की प्रतीक्षा कर रही थी क्योंकि नबियों एवं धर्मात्माओं ने एक मुक्तिदाता के बारे में भविष्यवाणी की थी कि एक कुँवारी गर्भवती होगी। वह एक पुत्र को प्रसव करेगी और वह उसका नाम इम्मानूएल रखेगी (इसायाह 7:14) क्योंकि वे अपने लोगों को उनके पापों से मुक्त करेगा। (मत्ती 1:21) वह दाऊद के सिंहासन पर विराजमान हो कर सदा के लिए शाँति, न्याय और धार्मिकता का साम्राज्य स्थापित करेगा। विश्वमण्डल के प्रभु का अनन्य प्रेम यह कार्य सम्पन्न करेगा। (इसायाह 9:6) वह मुक्ंितदाता प्रभु येसु ही है। येसु ने स्वयं कहा कि धन्य है तुम्हारी आँखें, क्योंकि वे देखती हैं और धन्य हैं तुम्हारे कान, क्योंकि वे सुनते हैं! मैं तुम लोगों से यह कहता हॅू - तुम जो बातें देख रहे हो, उन्हें कितने ही नबी और धर्मात्मा देखना चाहते थे; परन्तु उन्होंने उन्हें नहीं देखा और तुम जो बातें सुन रहे हो, वे उन्हें सुनना चाहते थे, परन्तु उन्होंने उन्हें नहीं सुना। (मत्ती 13:16-17) और क्रिस्मस में हम उन्हीं प्रभु येसु मसीह का जन्मदिन मनाते हैं।

येसु का जन्म हमारे लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि उनके जन्मोत्सव में हम हमारी मुक्ति का भी जन्मोत्सव मनाते हैं। हॉ, येसु के जन्म के साथ ही हमारी मुक्ति का भी आरंभ हुआ। येसु ने कहा कि “मैं संसार को दोषी ठहराने नहीं, संसार का उद्वार करने आया हॅू।“ (योहन 12:47) मानवपुत्र भी अपनी सेवा कराने नहीं, बल्कि सेवा करने तथा बहुतों के उद्वार के लिए अपने प्राण देने आया है।(मत्ती 20:28) क्योंकि पिता ईश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को मुक्तिकार्य के लिए ही भेजा था। इसलिए संत योहन कहते है कि “ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने उसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो उस में विश्वास करता है, उसका सर्वनाश न हो, बल्कि अनन्त जीवन प्राप्त करे। (योहन 3:16) पिता ईश्वर चाहता है कि सभी मनुष्य मुक्ति प्राप्त करें और सत्य को जानें। (1 तिमथी 2:4) इसलिए येसु ने कहा कि “...मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हॅू।(मत्ती 9:13)

प्रभु येसु मसीह ने इस जगत में हम सबों को ईश्वर की संतान बनाने के लिए जन्म लिया। क्योंकि पिता परमेश्वर ने प्रेम से प्रेरित होकर आदि में ही निर्धारित किया कि हम ईसा मसीह द्वारा उसके दत्तकपुत्र-पुत्रियाँ बनेंगे। (एफेसियों 1:5) पुराने विधान में हम कई स्थानों पर ईश-वचन को पढते है जहॉ ईश्वर और मानव के बीच के संबन्ध की ईश्वर और प्रजा के रुप में तुलना की गयी है - यदि तुम मेरी बात पर ध्यान दोगे, तो मैं तुम्हारा ईश्वर होऊॅगा और तुम मेरी प्रजा होगे। (यिरमियाह 7:23, 30:22, निर्गमन 6:7, लेवी 26:12) संत योहन कहते है कि “पिता ने हमें कितना प्यार किया है! हम ईश्वर की सन्तान कहलाते हैं और हम वास्तव में वही हैं।“(1योहन 3:1); क्योंकि जितनों ने उसे अपनाया, और जो उसके नाम में विश्वास करते हैं, उन सबों को उसने ईश्वर की सन्तति बनने का अधिकार दिया। (योहन 1:12) इसलिए संत पौलुस गलातियों से कहते हैं कि आप लोग सब-के-सब ईसा मसीह में विश्वास करने के कारण ईश्वर की सन्तति हैं। (गलातियों 3:26) ईश्वर की सन्तान होने के कारण ईसाईयों से पाप से दूर रहने के लिए संत योहन अपने पत्र में आग्रह करते हुए लिखते हैं - जो ईश्वर की सन्तान है, वह पाप नहीं करता; क्योंकि ईश्वर का जीवन-तत्व उस में क्रियाशील है।(1योहन 3:9)

क्रिसमस सारी मानव-जाति के लिए बहुत अहम है क्योंकि येसु के जन्म द्वारा स्वर्ग और पृथ्वी के बीच का टूटा रिश्ता फिर से बन गया है। पाप करने के कारण ईश्वर ने आदम और हेवा को अदन की वाटिका से निकाल दिया था। (योहन 3:23) इस प्रकार एक ही मनुष्य के अपराध के फलस्वरूप सबों को दण्डाज्ञा मिली... सब पापी ठहराये गये। (रोमियों 5:18-19) हमारे अर्धम ने हम को ईश्वर से दूर किया, हमारे पापों ने ईश्वर को हम से विमुख कर दिया। (इसायाह 59:2) संत पौलुस कहते हैं कि हम सब पापी थे, ईश्वर के शत्रु थे और अब हमारे प्रभु येसु मसीह के द्वारा ईश्वर से हमारा मेल हो गया है। (रोमियों 5:11, 2 कुरिन्थियों 5:18-19) पिता ईश्वर और मनुष्यों के बीच केवल एक ही मध्यस्थ हैं, अर्थात् येसु मसीह। (1तिमथी 2:5) येसु ने यह बात स्वयं कही है कि मार्ग, सत्य और जीवन मैं हॅू। मुझ से हो कर गये बिना कोई पिता के पास नहीं आ सकता। (योहन 14:6) क्योंकि समस्त संसार में येसु नाम के सिवा मनुष्यों को कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया है, जिसके द्वारा हमें मुक्ति मिल सकती है। (प्रेरित 4:12)

इस प्रकार प्रभु येसु के जन्म के द्वारा हम लोगों के लिए स्वर्ग के हर प्रकार के आध्यात्मिक वरदान, (एफेसियों 1:3) परिपूर्ण नवजीवन एवं अक्षय, अदूषित तथा अविनाशी विरासत (1पेत्रुस 1:3-4) प्राप्त करने का मार्ग खुल गया है।


Copyright © www.jayesu.com
Praise the Lord!