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चालीसे का चैथा इतवार_2018_2

2 इतिहास ग्रंथ 36:14-16, 19-23; एफ़ेसियों 2:4-10; योहन 3:14-21

फादर फ्रांसिस स्करिया


आज के पाठों द्वारा प्रभु ईश्वर हमें समझाना चाहते हैं कि वे सबों की मुक्ति चाहते हैं और वे सबों को मुक्ति का वरदान प्रदान करते हैं। हम सब को चाहिए कि हम उनके पास आयें और पश्चात्ताप कर उनसे मुक्ति प्राप्त करें, कि हम उनके पास आयें और उनसे विवाहोत्सव के वस्त्र प्राप्त कर उसे पहन लें, कि हम उनके पास आये और उनसे संजीवन जल प्राप्त करें, कि उनके पास आयें और उनके जीवन की रोटी प्राप्त करें, कि उनके पास आयें उनसे अनन्त जीवन का सन्देश ग्रहण करें।

योहन 3:16 में प्रभु येसु कहते हैं, “ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने इसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो उस में विश्वास करता हे, उसका सर्वनाश न हो, बल्कि अनन्त जीवन प्राप्त करे।”

संत पेत्रुस भी हमें समझाते हैं कि ईश्वर सभी लोगों की मुक्ति चाहते हैं। वे कहते हैं, “प्रभु अपनी प्रतिज्ञाएं पूरी करने में विलम्ब नहीं करता, जैसा कि कुछ लोग समझते हैं। किन्तु वह आप लोगों के प्रति सहनशील है और यह चाहता है कि किसी का सर्वनाश नहीं हो, बल्कि सब-के-सब पश्चाताप करें।” (2 पेत्रुस 3:9)

संत पौलुस भी यही कहते हैं। तिमथी को लिखते हुए वे 1 तिमथी 2:4-6 में कहते हैं कि ईश्वर “चाहता है कि सभी मनुष्य मुक्ति प्राप्त करें और सत्य को जानें। क्योंकि केवल एक ही ईश्वर है और ईश्वर तथा मनुष्यों के केवल एक ही मध्यस्थ हैं, अर्थात् ईसा मसीह, जो स्वयं मनुष्य हैं और जिन्होंने सब के उद्धार के लिए अपने को अर्पित किया। उन्होंने उपयुक्त समय पर इसके सम्बन्ध में अपना साक्ष्य दिया।”

इसायाह 45:21-25 में प्रभु ईश्वर सभी मनुष्यों को निमत्रण देते हुए कहते हैं, “आओ और अपनी सफ़ाई दो। आपस में परामर्श करो। किसने यह बात प्रारम्भ से ही बतायी? किसने बहुत पहले इसकी घोषणा की थी? क्या मैं, प्रभु ने ऐसा नहीं किया था? मेरे सिवा केाई दूसरा ईश्वर नहीं। मेरे सिवा कोई न्यायी और उद्धारकरर्ता ईश्वर नहीं। पृथ्वी के सीमान्तों से मेरे पास आओ और तुम मुक्ति प्राप्त करोगे, क्योंकि मेरे सिवा कोई ईश्वर नहीं। “मेरे मुख से निकलने वाला शब्द सच्चा और अपरिवर्तनीय है। मैं शपथ खा कर यह कहता हूँ: हर घुटना मेरे सामने झुकेगा, हर कण्ठ मेरे नाम की शपथ लेगा। सब लोग मेरे विषय में कहेंगे- “प्रभु में ही न्याय दिलाने का सामर्थ्य है।“ जो उस से बैर करते थे, वे सब लज्जित हो कर उसके पास आयेंगे। प्रभु इस्राएल की समस्त प्रजा को न्याय दिलायेगा और वह प्रभु का गौरव करेगी।”

ज़करिया 8:7 में प्रभु का वचन कहता है, "विश्वमण्डल का प्रभु यह कहता हैः देखो! मैं पूर्व के देशों से और सूर्यास्त के देशों से अपनी प्रजा का उद्धार करूँगा।”

लूकस 13:23-30 में हम देखते हैं कि किसी ने येसु से पूछा, "प्रभु! क्या थोड़े ही लोग मुक्ति पाते हैं?” इस पर प्रभु येसु ने उन से कहा, "सँकरे द्वार से प्रवेश करने का पूरा-पूरा प्रयत्न करो, क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ-प्रयत्न करने पर भी बहुत-से लोग प्रवेश नहीं कर पायेंगे। जब घर का स्वामी उठ कर द्वार बन्द कर चुका होगा और तुम बाहर रह कर द्वार खटखटाने और कहने लगोगे, ’प्रभु! हमारे लिए खोल दीजिए’, तो वह तुम्हें उत्तर देगा, ’मैं नहीं जानता कि तुम कहाँ के हो’। तब तुम कहने लगोगे, ’हमने आपके सामने खाया-पीया और आपने हमारे बाज़ारों में उपदेश दिया’। परन्तु वह तुम से कहेगा, ’मैं नहीं जानता कि तुम कहाँ के हो। कुकर्मियो! तुम सब मुझ से दूर हटो।’ जब तुम इब्राहीम, इसहाक, याकूब और सभी नबियों को ईश्वर के राज्य में देखोगे, परन्तु अपने को बहिष्कृत पाओगे, तो तुम रोओगे और दाँत पीसते रहोगे। पूर्व तथा पश्चिम से और उत्तर तथा दक्षिण से लोग आयेंगे और ईश्वर के राज्य में भोज में सम्मिलित होंगे। देखो, कुछ जो पिछले हैं, अगले हो जायेंगे और कुछ जो अगले हैं, पिछले हो जायेंगे।"

एज़ेकिएल 18:23-32 प्रभु साफ-साफ बताते हैं कि प्रभु दुष्ट की मृत्यु नहीं चाहते हैं। ईशवचन कहता है - “प्रभु-ईश्वर का यह कहना है- क्या मैं दुष्ट की मृत्यु से प्रसन्न हूँ? क्या मैं यह नहीं चाहता कि वह अपना मार्ग छोड़ दे और जीवित रहे? किन्तु यदि भला मनुष्य अपनी धार्मिकता त्याग कर दुष्ट की तरह घृणित पाप करने लगता है, तो क्या वह जीवित रहेगा? उसकी समस्त धार्मिकता को भुला दिया जायेगा और वह अपने अधर्म तथा पाप के कारण मर जायेगा। “तुम लोग कहते हो कि प्रभु का व्यवहार न्यायसंगत नहीं हैं। इस्राएलियो! मेरी बात सुनो। क्या मेरा व्यवहार न्यायसंगत नहीं है? क्या यह सही नहीं है कि तुम्हारा ही व्यवहार न्यायसंगत नहीं हैं। यदि कोई भला मनुष्य अपनी धार्मिकता त्याग कर अधर्म करने लगता और मर जाता है, तो वह अपने पाप के कारण मरता है। और यदि कोई पापी अपना पापमय जीवन त्याग कर धार्मिकता और न्याय के पथ पर चलने लगता है, तो वह अपने जीवन को सुरक्षित रखेगा। यदि उसने अपने पुराने पापों को छोड़ देने का निश्चय किया है, तो वह अवश्य जीवित रहेगा, मरेगा नहीं। इस्राएल का घराना यह कहता है ’प्रभु का व्यवहार न्यासंगत नहीं हं’। इस्राएलियो! मेरी बात सुनो। क्या मेरा व्यवहार न्यायसंगत नहीं हैं? क्या यह सही नहीं है कि तुम्हारा ही व्यवहार न्यायसंगत नहीं है? “प्रभु-ईश्वर यह कहता है- इस्राएल के घराने! मैं हर एक का उसके कर्मों के अनुसार न्याय करूँगा। तुम मेरे पास लौट कर अपने सब पापों को त्याग दो। कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारे अपराधों को कारण तुम्हारा विनाश हो जाये। अपने पुराने पापों का भार फेंक दो। एक नया हृदय और एक नया मनोभाव धारण करो। प्रभु-ईश्वर यह कहता है-इस्राएलियों! तुम क्यों मरना चाहते हो? मैं किसी भी मनुष्य की मृत्यु से प्रसन्न नहीं होता। इसलिए तुम मेरे पास लौट कर जीते रहो।”

एज़ेकिएल 33:10-20 में इन्हीं बातों को दोहराते हुए प्रभु का वचन कहता है - “मानवपुत्र! इस्राएल के घराने से तुम यह कहोगे- तुम लोगों ने कहा हैः ’हम अपने अपराधों और पापों के बोझ से दब गये हैं और हम उनके कारण नष्ट हो रहे हैं, तो हम कैसे जीवित रह सकते हैं?“ (11) उन से कहोगे-प्रभु-ईश्वर यह कहता हैं: अपने अस्तित्व की शपथ! मुझे दुष्ट की मृत्यु से प्रसन्नता नहीं होती, बल्कि इस से होती है कि दुष्ट अपना कुमार्ग छोड़ दे और जीवित रहे। अपना दुराचरण छोड़ दो, छोड़ दो; क्योंकि इस्राएल के घराने! तुम क्यों मर जाते? (12) “मानवपुत्र! तुम अपने लोगों से यह कहोगे- धर्मी की धार्मिकता, उसके पाप करने पर, उसे नहीं बचा पायेगी और दुष्ट की दुष्टता, उसके दुष्टता छोड़ देने पर, उसके विनाश का कारण नहीं बनेगी और पाप करने पर धर्मी अपनी धर्मिकता के कारण जीवित नहीं रह सकेगा। (13) यद्यपि मैं धर्मी से कहता हूँ कि वह अवश्य जीवित रहेगा, फिर भी यदि वह अपनी धार्मिकता के भरोसे पाप करता है, तो उसका कोई भी सत्कर्म स्मरण नहीं रखा जायेगा, बल्कि उस पाप के कारण, जो उसने किया है, उसकी मृत्यु हो जायेगी। (14) यद्यपि मैं दुष्ट से यह कहता हूँ, ’तुम अवश्य मरोगे’, फिर भी यदि वह कुमार्ग छोड़ देता और न्याय और सत्य का आचरण करता है; (15) यदि दुष्ट बन्धक लौटा देता, लूटा हुआ सामान वापस कर देता, जीवन प्रदान करने वाले नियमों का पालन करता और पाप का परित्याग करता है, तो वह निश्चय ही जीवित रहेगा, वह नहीं मरेगा। (16) उसके द्वारा किये गये पापों में से किसी को भी याद नहीं रखा जायेगा। उसने न्याय और सत्य का आचरण किया है; वह अवश्य जीवित रहेगा। (17) “तब भी तुम्हारे लोग यह कहते हैं, ’प्रभु का मार्ग न्यायसंगत नहीं है’ जब कि स्वयं उनका मार्ग न्यायसंगत नहीं है। (18) जब धर्मी धर्मिकता छोड़ कर पाप करता, तो इसके कारण उसकी मृत्यु हो जायेगी। (19) किन्तु यदि दुष्ट कुमार्ग छोड़ देता और न्याय और सत्य का आचरण करता है, तो वह इसके कारण जीवित रेहेगा। (20) तब भी तुम यह कहते हो, ’प्रभु का न्याय न्यायसंगत नहीं है’। इस्राएल के घराने! मैं तुम लोगों में से प्रत्येक का उसके आचरण के अनुसार न्याय करूँगा।”


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