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पास्का का दूसरा इतवार

प्रेरित-चरित 4:32-35; 1 योहन 5:1-6; योहन 20:19-31

फादर रोनाल्ड वाँन


“अविश्वासी नहीं बल्कि विश्वासी बनों।”

प्रभु येसु थॉमस को अपने घावों का स्पर्श करने को कहते हैं तथा इन शब्दों “अविश्वासी नहीं, बल्कि विश्वासी बनो”, के साथ उससे विश्वासी बनने का आव्हान करते हैं। इस बात का यह तात्पर्य नहीं है कि इससे पहले थॉमस येसु में विश्वास नहीं करता था। वह पहले से विश्वासी था किन्तु उसका विश्वास अपरिपक्व था तथा उसे येसु में संदेह हो गया था। जैसा कि संत याकूब कहते हैं, “क्योंकि जो संदेह करता है, वह समुद्र की लहरों के सदृश है, जो हवा से इधर-उधर उछाली जाती हैं।” (याकूब 1:6) थॉमस का विश्वास येसु के दुःखभोग एवं मृत्यु के कारण विचलित हो गया था। थॉमस जानता था कि येसु एक महान व्यक्ति थे। उसने येसु के साथ रहकर विस्मयकारी चमत्कारों को देखा था। ऐसे महान एवं चमत्कारी पुरूष के इस प्रकार दीन-हीन दशा में मर जाने ने थॉमस के विश्वास के स्तंभों को हिला दिया था। अब फिर से विश्वास करना उन्हें मुश्किल लग रहा था।

विश्वास एक अदभुत वस्तु है। विश्वास के सहारे हम महान एवं अविश्वनीय कार्य पूरे कर सकते हैं। किन्तु यदि हमारे विश्वास में संदेह, दृढ़ता एवं निरंतरता की कमी होती है तो हम ज्यादा आगे नहीं जा सकते। येसु स्वयं कहते हैं, “यदि तुम्हें विश्वास हो और तुम संदेह न करो, ....तुम इस पहाड से यह कहो- उठ, समुद्र में गिर जा’ तो वैसा ही हो जायेगा।” (मत्ती 21:21) अगर विश्वास की कमी को पूरा करना है तो हमें संदेह से ऊपर उठना होगा। संदेह विश्वास के लिए दीमक समान है। संदेह के कारण विश्वास पनप नहीं पाता है इसलिए संदेह पर विजय प्राप्त कर हमें विश्वास की परिपूर्णता तक पहुँचने का प्रयत्न करना चाहिए। येसु थॉमस के संदेह को कैसे दूर करते हैं? थॉमस के संदेह का कारण येसु की मृत्यु थी। क्रूस पर उनकी मृत्यु ने शायद उसके लिए विश्वास के सारे मार्ग अविरूद्ध कर दिये थे। ऐसी मनस्थिति में केवल पुनरूत्थित, पुनर्जीवित येसु ही उसके विश्वास को पुनः स्थापित कर सकते थे। थॉमस के संदेह को दूर करने पुनरूत्थित येसु स्वयं उसके पास आते हैं तथा उसे अपने घावों को स्पर्श करने का निमंत्रण देते हैं। यदि हमारे विश्वास में भी संदेह है तो हमें भी येसु से उस संदेह को दूर करने की प्रार्थना करनी चाहिए।

येसु संत योहन बपतिस्ता को मानवों में सबसे महान कहते हैं, “मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ - मनुष्यों में योहन बपतिस्ता से बड़ा कोई पैदा नहीं हुआ।” (मत्ती 11:11) किन्तु योहन भी येसु को लेकर संशय में पड़ जाते है। इसलिए वे बंदीगृह से अपने शिष्यों को येसु के पास यह पूछने भेजते हैं, “क्या आप वही हैं, जो आने वाले हैं या हम किसी और की प्रतीक्षा करें?”(मत्ती 11:3) येसु योहन के शिष्यों से अपने कार्यों की चर्चा करते हुए कहते हैं, “जाओ, तुम जो सुनते और देखते हो, उसे योहन को बता दो - अंधे देखते हैं, लँगड़े चलते हैं, कोढ़ी शुद्ध किये जाते हैं, बहरे सुनते हैं, मुरदे जिलाये जाते हैं, दरिद्रों को सुसमाचार सुनाया जाता है,”। येसु वास्तव में नबी इसायाह की प्रतिज्ञात मसीहा के बारे में की गयी भविष्यवाणी (देखिये इसायाह 35:5-6) को योहन के लिए दोहराते है। येसु जानते थे कि धर्मग्रंथ की बात को पूरा होते देख योहन का विश्वास कि येसु ही मसीह है, दृढ़ता प्राप्त करेगा। इसके अंत में येसु जोड देते हैं, “और धन्य है वह, जिसका विश्वास मुझ पर से नहीं उठता!” योहन की मनस्थिति यही बताती है कि किसी को भी संदेह हो सकता है। येसु भी मनुष्य की इस कमी को समझते हैं तथा योहन के शिष्यों के जाने के बाद योहन बपतिस्ता के विश्वास को महान बताते हुये कहते हैं, “योहन वही एलियस है जो आने वाला था।” (मत्ती 11:14) इस प्रकार विश्वास के अभाव को यदि ईश्वर के सामने व्यक्त किया जाये तो ईश्वर इस संशय को दूर कर विश्वास के अभाव को पूर्णता तक पहुँचा देते हैं।

येसु मरथा के विश्वास को भी पूर्णता तक ले जाते हैं। लाजरूस के मरने के बाद भी मरथा ईसा में विश्वास बनाये रखती है तथा कहती है, “प्रभु! यदि आप यहाँ होते, तो मेरा भाई नही मरता और मैं जानती हूँ कि आप अब भी ईश्वर से जो माँगेंगे, ईश्वर आप को वही प्रदान करेगा। (योहन 11:21-22) येसु मरथा की इस मांग को यह कहकर “क्या मैंने तुम से यह नहीं कहा कि यद तुम विश्वास करोगी, तो ईश्वर की महिमा देखोगी? (योहन 11:40) पूरा करते हैं तथा उनके भाई लाजरूस को पुनर्जीवित करते है। मरथा का विश्वास संसार के अंत में होने वाले पुनरूत्थान में था लेकिन येसु उसे मरथा के लिए यथार्थ की बात बना देते हैं।

हमारा ख्रीस्तीय विश्वास भी संदेह के घेरे में आता जाता रहता है। ऐसी स्थिति में क्या हम निराश होकर प्रार्थना करना छोड देते हैं या फिर थॉमस, योहन बपतिस्ता या फिर मरथा के समान येसु के पास अपने संदेह को लेकर जाते हैं? नबी हबक्कूक कहते हैं, “मैं अपनी चौकी पर खड़ा हो जाऊँगा, मैं चारदीवारी पर चढ कर प्रतीक्षा करता रहूँगा कि प्रभु मुझ से क्या कहेगा और मेरी शिकायतों का क्या उत्तर देगा। प्रभु ने उत्तर में मुझ से यह कहा, “जो दृश्य तुम देखने वाले हो, उसे स्पष्ट रूप से पाटियों पर लिखो, जिससे सब उसे सुगमता से पढ सकें”। ईश्वर हबक्कूक से लिखने को कहते हैं जिससे लोग उसे पढ कर विश्वास कर सके। संत योहन भी सुसमाचार के लिखने का उद्देश्य बताते कि लोग विश्वास में बने रहें, “इनका विवरण दिया गया है, जिससे तुम विश्वास करो...।” आइये हम भी अपने विश्वास को संदेह से दूर रखे तथा संदेह की स्थिति में येसु को जीवन में आमंत्रित करे तथा वचन की सहायता से विश्वास की परिपक्वता तक पहुँच सके।


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