Johnson

पास्का का छठवाँ इतवार_2018

प्रेरित चरित 10:25-26, 34-35, 44-48; 1 योहन 4:7-10; योहन 15:9-17

फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


आज के पाठों का सार और न केवल आज के पाठों का बल्कि ईश्वर के पूरे मुक्तिविधान का सार है ईश्वर का प्रेम। प्रेम, ईश्वर के हर कार्य एवं प्रत्येक व्यक्ति के लिए ईश्वर द्वारा निर्धारित जीवन की हर योजना का आधार है। सारी सृष्टि का ही आधार प्रेम है। लेकिन प्रभु येसु ने ईश्वर के इस प्रेम की नई व्याख्या की है। एक नया रूप दिया है, नया चेहरा दिया है

पुराने व्यवस्थान की पहली पुस्तक के प्रारम्भ में हम पूरी दुनिया के सृजन का विवरण पढ़ते हैं। इसमें हम पढ़ते हैं कि कैसे ईश्वर ने मनुष्य को पूरी सृष्टि में सर्वश्रेष्ठ स्थान प्रदान किया। सम्पूर्ण पुराने व्यवस्थान में हम मनुष्यों के प्रति ईश्वर के प्रेम का वर्णन सुनते हैं। मनुष्य बार-बार गलती करता जाता है, और ईश्वर बार-बार उसे अपने पास लाने की कोशिश करते हैं। चूँकि मनुष्य ईश्वर से दूर भागता है अतः वह ईश्वर को जान नहीं पाता है। अगर हमें ईश्वर को जानना और समझना है तो हमें उससे दूर भागना बंद करना और चैन से ईश्वर को खोजना चाहिये क्योंकि ईश्वर कहते हैं, “शान्त हो और जान लो कि मैं ही ईश्वर हूँ...” (स्तोत्र 46:10) ईश्वर को न जानना और उससे दूर भागना न केवल प्राचीनकाल के लोगों के अन्दर विद्यमान था बल्कि आधुनिक लोगों में भी विद्यमान है। बल्कि वर्तमान में ईश्वर से दूर भागने की प्रवृत्ति आज के युग में और भी अधिक तेज है।

जब हम किसी व्यक्ति के सीधे संपर्क में नहीं रहते और उससे दूर भागते हैं, तो कई बार इस बात की सम्भावना होती है कि हम उस व्यक्ति के बारे में गलतफमियां भी पाल लेते हैं। यही बात ईश्वर के बारे में भी शत-प्रतिशत सच है। पुराने व्यवस्थान में और साथ ही नए व्यवस्थान में भी ऐसे बहुत से लोग हैं जो ईश्वर को अच्छी तरह से नहीं जानते थे, ईश्वर के प्रेम को भलीभांति नहीं जानते थे और इसलिए न केवल अंधकार में रहते थे बल्कि उसके विरुद्ध भी कार्य करते थे। (उदा. सन्त पौलुस जो पहले साउल थे) बाद में जब उन्हें अपनी गलती का अहसास होता था तो वे पूरी तरह बदल जाते थे।

उदाहरण के लिए हम अपने आदि माता-पिता आदम और हेवा को देखते हैं। जब उन्होंने शैतान के बहकावे में आकर ईश्वर के विरुद्ध कार्य किया तो वे छुप गए। वे ईश्वर से डर गए (देखें उत्पत्ति ग्रन्थ 3:9-10)। जब हम ईश्वर के वास्तविक स्वभाव को नहीं जानते तो उन से डर जाते हैं और उनसे छुपने की कोशिश करते हैं। हालाँकि इससे हमारे प्रति ईश्वर के प्रेम में कोई कमी नहीं आती।

ईश्वर को गहराई से न जानने के कारण मनुष्यों के डरने की पुराने व्यवस्थान में अनेक घटनाएँ हैं। निर्गमन ग्रन्थ के २०वें अध्याय में हम पढ़ते हैं कि जब ईश्वर लोगों से बात करना चाहते थे तो लोग डर रहे थे। वे मूसा से कहने लगे “...आप हमसे बोलिए और हम आपकी बात सुनेंगे, किन्तु ईश्वर हमसे नहीं बोले, नहीं तो हम मर जायेंगे।” (निर्गमन 20:19) आगे राजाओं के पहले ग्रन्थ के 19 वें अध्याय में हम पढ़ते हैं की नबी एलियाह ने सोचा कि प्रभु प्रचण्ड आंधी में, या भूकम्प में, या अग्नि में था लेकिन प्रभु मन्द समीर में था (देखें 1 राजाओं 19:11-13)। कई बार हमारे मन में प्रभु की तस्वीर कुछ और होती है और वास्तविकता में कुछ और। यह एक प्रकार की गलतफहमी है और प्रभु के बारे में हमारी अज्ञानता है।

पिता ईश्वर के बारे में मानव जाति के मन में जो गलत छवि बनी हुई है, उसी को प्रभु येसु सुधारने आये हैं। प्रभु येसु ने अपने वचनों, अपने कार्यों एवं अपने चमत्कारों द्वारा हमें यही बताया कि पिता ईश्वर क्रोधी नहीं दयालु हैं, पिता ईश्वर भयाभय नहीं प्यारे पिता हैं। वे आज के सुसमाचार में हमे बताते हैं कि पिता ईश्वर उन्हें प्यार करते हैं, और जिस तरह पिता ईश्वर प्रभु येसु को प्यार करते हैं उसी तरह प्रभु येसु हमें प्यार करते हैं। जितनी गहराई से प्रभु येसु पिता ईश्वर को जानते हैं, उतनी गहराई से और कोई पिता ईश्वर को नहीं जानता। “...इसी तरह पिता को कोई भी नहीं जानता, केवल पुत्र जानता है, और वही जिस पर पुत्र उसे प्रकट करने की कृपा करे।” (मत्ती11:27) “यह न समझो कि किसी ने पिता को देखा है, जो ईश्वर की ओर से आया है, उसी ने पिता को देखा है।” (योहन 6:46)। जिस तरह पिता ईश्वर प्रभु येसु को प्यार करते हैं उसी तरह प्रभु येसु हमें प्यार करते हैं और वे चाहते हैं कि हम भी उसी तरह एक दूसरे को प्यार करें, तभी हम प्रभु येसु को भली भांति जानेंगे और प्रभु येसु के द्वारा पिता ईश्वर की वास्तविक छवि के दर्शन कर पाएंगे। पवित्र आत्मा इसके लिए हमारा मार्गदर्शन करे। आमेन|


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