Smiley face

45. वर्ष का चैदहवाँ इतवार

एज़ेकिएल 2:2-5; 2 कुरिन्थियों 12:7-10; मार्कुस 6:1-6

(फादर फ्रांसिस स्करिया)


जो महान बनते हैं उनकी शायद यही विशेषता है कि वे कुछ सपने देखते हैं और उस सपने को साकार बनाने के लिए हर संभव कोषिश करते हैं और कभी हार नही मानते हैं। वे किसी भी परिस्थिति, व्यक्ति, या घटना को उनकी राह पर रुकावट बनने नहीं देते हैं। हर विपरीत परिस्थिति का हिम्मत के साथ सामना करते हुए वे आगे बढ़ते हैं। कई लोग अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते समय समस्याओं तथा संकटों को देखते देखते अपनी योजना बीच में आधी-अधूरी ही छोड़ देते हैं। इस दुनिया में हमारे जीवन में संकट और परेशानी अवश्य आती है। जिन्दगी एक बाधा-दौड़ है। जो उन बाधाओं को अभिभूत कर अपने लक्ष्य तक पहुँचता है, वही विजयी बन सकता है। मानव अपने ही बल पर बहुत ही सीमित सफलताएं बटोर सकता है, परन्तु जब उसे ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है, तब उनकी उपलब्धियाँ अनगिनित बन जाती हैं।

आज के सुसमाचार में हम देखते हैं कि प्रभु के नाज़रेत आगमन पर लोग उन्हें सन्देह की दृष्टि से देखते हैं और इसी कारण वे उनकी महानता को पहचान नही पाते हैं। प्रभु अपने कार्यों में आगे बढ़ते हैं लेकिन लोगों को प्रभु के कार्यों का लाभ इसलिए प्राप्त नही होता कि वे उनपर विश्वास नही करते हैं।

दूसरे पाठ में हमने सुना कि संत पौलुस अपने जीवन में एक काँटा चुभा दिये जाने के अनुभव की बात करते हैं। इस कांटे का तात्पर्य किसी बीमारी या किसी प्रलोभन से हो सकता है। एक बात तो साफ है कि पौलुस को उससे पीड़ा होती है। परन्तु अपनी उस तकलीफ को भी वे अपने लिए लाभदायक ठहराते हैं। ’’मैं इस पर घमण्ड न करूँ, इसलिए मेरे शरीर में एक काँटा चुभा दिया गया है। मुझे शैतान का दूत मिला है, ताकि वह मुझे घूँसे मारता रहे और मैं घमण्ड न करूँ।’’ पौलुस ने प्रभु से इसे दूर करने की प्रार्थना की परन्तु प्रभु ने उससे कहा, ’’मेरी कृपा तुम्हारे लिए पर्याप्त है, क्योंकि तुम्हारी दुर्बलता में मेरा सामथ्र्य पूर्ण रूप से प्रकट होता है।’’ इसी मनोभावना को अपनाते हुए पौलुस अपने प्रेरिताई कार्य को जारी रखते हैं।

प्रभु के सुसमाचारीय कार्य में हमें एकाग्रता देखने को मिलती है। लोगों के चले जाने के कारण वे अपनी षिक्षा में कोई परिवर्तन नही लाये। लोगों को आकर्षित करने के लिए उन्होंने कोई लोकप्रिय बात नहीं कहीं जो सुसमाचारीय मूल्यों के विरुद्ध है। पिता ने जो कार्य उन्हें सौप दिया था, वह बहुत ही कठिन था, फिर भी उन्होंने उसे पूरा किया। उनकी श्रद्धा-भक्ति सम्पूर्ण रीति से पिता की योजना पर ही केन्द्रित थी। इसलिए वे कहते हैं, ’’जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्छा पर चलना और उसका कार्य पूरा करना, यही मेरा भोजन है।’ (योहन 4:34)

प्रभु के कार्य करने वालों को विभिन्न प्रकार की कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। उन्हें बाहरी ताकतों का सामना करना है जो शैतान का पक्ष लेकर उनके विरुद्ध खडे़ होती हैं। इसके अलावा उन्हें अपने भीतर ही एक संघर्ष का सामना करना पड़ता है। इस विषय में संत पौलुस खुद कहते हैं, ’’मैं जो भलाई चाहता हूँ, वह नहीं कर पाता, बल्कि मैं जो बुराई नहीं चाहता, वही कर डालता हूँ।’’ (रोमियों 7:19)। जब तक हम इस दुनिया में रहेंगे हमें शैतानी ताकतों से संघर्ष करते रहना पडे़गा।

सुसमाचार के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित लोगों की बडी ज़रूरत है। हमें ज्ञात है कि इस दुनिया में हज़ारों लोग आतंकवाद फैलाने में जुडे़ हैं। उनमें से कई लोग अपनी जान हथेली पर रख कर अपना काम करते हैं। जिस मतलब के लिए वे लड़ रहे हैं उस के लिए अपना जीवन देने के लिए भी उनमें से कई लोग तैयार हैं। कभी कभी मैं सोचता हूँ कि जितने लोग आज की दुनिया में आतंकवाद जैसी बुराई फैलाने के लिए दृढसंकल्प हैं अगर उतने ही लोग उसी प्रकार की निष्ठा की भावना से प्रभु येसु के शांति-मार्ग को फैलाने में अपनी जान की कुर्बानी देने के लिए आगे आते तो हमारी यह दुनिया कितनी बदल गई होती!

डेविड लिविंगस्टोन अफ्रीका में सेवा करने गये मिशनरियों में प्रथम थे। उन्होंने 29,000 मील से ज्यादा पैदल यात्रा की थी। उनके विवाह के कुछ ही साल बाद उनकी पत्नी की अचानक मृत्यु हो गयी। उनको अफ्रीका में विभिन्न प्रकार की मुसीबतों का सामना करना पड़ा। उन्हें कई बार जंगली जानवरों से भी मुकाबला करना पडा। वे कई बार बीमार भी हुए। लेकिन उनकी कत्र्तव्यनिष्ठा तथा स्वर्गराज्य के प्रति समर्पण हम सब के लिए एक उदाहरण है। उन्होंने अपनी डायरी में एक प्रार्थना लिखी थी, ’’हे प्रभु, मुझे कहीं भी भेज, लेकिन मेरे साथ तू भी चल। मेरे ऊपर कोई भी बोझ रख, पर मुझे गिरने न दे, मुझे सब बन्धनों से छुडा, पर तेरे साथ हमेशा बन्धे रहने की कृपा दे’’। उनकी दृढ़ धारणा और धर्मोत्साह उन्हें कभी भी निष्क्रिय नहीं रहने देती थी। उनकी मिशनरी यात्राओं में जो उत्साह हमें देखने को मिलता है वह अतुलनीय है। आइए, प्रभु येसु के सार्वजनिक जीवन तथा संत पौलुस के उत्साह से हम हमेशा प्रेरणा पाते रहें।


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Praise the Lord!