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चक्र स - 02. आगमन का दूसरा इतवार (2015)

बारुक 5:1-9; फिलिप्पयों 1:4-6,8-11; लूकस 3:1-6

((फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांत)


इस्राएली लोग ईश्वर की चुनी हुई प्रजा थी। ईश्वर ने उन्हें सभी राष्ट्रों व देषों में से अपनी निजी प्रजा के रूप में चुन लिया था। वे नबियों के द्वारा उनसे कहते हैं - ‘‘चाहे पहाड टल जाये और पहाडियाँ डाँवाडोल हो जायें किंतु तेरे प्रति मेरा प्रेम नहीं टलेगा और तेरे लिए मेरा शाँति विधान नहीं डाँवाडोल होगा’’ (इसा. 42:6)। ‘‘तुम मेरी दृष्टी में मुल्यवान हो और महत्व रखते हो और मैं तुम्हें प्यार करता हूँ’’ (इसा. 43:4)। ‘‘क्या स्त्री अपना दूधमुहा बच्चा भुला सकती है? कया वह अपनी गोद के पुत्र पर तरस नहीं खायेगी? यदि वह भुला भी दे, तो भी मैं तुम्हें कभी नहीं भुलाऊँगा’’ (इसा. 49:15)। ऐसा अटल व घनिष्ट प्रेम था यहोवा का अपनी प्रजा के प्रति।

लेकिन इस्राएली प्रजा एक धोखेबाज प्रजा निकली। दूसरा इतिहास ग्रंथ 36:14 में प्रभु का वचन कहता है - ‘‘याजकों के नेताओं और जनता में भी बहुत अधिक अधर्म फैल गया, क्योंकि उन्होंने गैर-यहूदी राष्ट्रों के घृणित कार्यों का अनुकरण किया और प्रभु द्वारा प्रतिष्ठित येरूसालेम मंदिर को अपवित्र कर दिया।’’उन्होंने अपने प्रेमी ईश्वर को भूला कर देवी-देवताओं की पूजा की। उन्होंने उस प्रेमी पिता के प्यार को ठुकरा दिया। उन्होंने ईश्वर से बेवफाई की। उन्होंने वो सारे चिन्ह और चमत्कार भूला दिये जिसे ईश्वर ने उनकी आँखों के सामने किये थे। वचन आगे कहता है कि कई नबियों ने उन्हें बार-बार चेतावनी दी की पाप व बुराई के जिस मार्ग पर तुम चल रहे हो वह सही नहीं है; ईश्वर के धार्मिकता के मार्ग से भटक कर शैतान के मार्ग पर तुम्हारा जाना सही नहीं है। यह ईश्वर को कतई पसन्द नहीं है। तुम लौटकर वापस आ जाओ। अपना कुमार्ग त्यागकर अपने प्रेमी पिता के पास वापस आ जाओ। पर इस्राएलियों ने नबियों की बातों पर ध्यान नहीं दिया। उल्टे उन पर अत्याचार किये व कईयों को मार डाला। तब ईश्वर जो कि अब तक अपनी प्रजा के साथ था; युद्ध के समय उनकी तरफ से लडता था; शत्रुओं से उनकी रक्षा करता था; उन्हें उनसे भी अधिक शक्तिषाली राजाओं के विरूद्ध विजय दिलाता था; अब इन्हें त्याग देता है। प्रभु ने अपनी चुनी हुई प्रजा को अपने ही भाग्य पर छोड दिया। इसके विषय में प्रभु का वचन इतिहास ग्रंथ 36:15 में कहता है - ‘‘प्रभु उनके पूर्वजों का ईश्वर उनके पास अपने दूतों को निरन्तर भेजता रहा; कयोंकि उसे अपने मंदिर तथा अपनी प्रजा पर तरस आता था। किंतु उन्होंने ईश्वर के दूतों का उपहास किया, उसके उपदेषों का तिरस्कार किया और उसके नबियों की हँसी उडाई। अंत में ईश्वर का क्रोध अपनी प्रजा पर फूट पडा और उसे बचने का कोई उपाय नहीं रहा।’’

तब खल्दैयियों के राजा ने उन पर आक्रमण किया; उनकी आस्था व धार्मिकता के प्रतीक येरूसालेम मंदिर को तहस-नहस कर दिया; ईश्वर के मंदिर को सुपूर्दे खाक कर दिया। सारा देश को उजाड दिया; कईयों का वध कर दिया; व बाकि लोगों को बंदी बनाकर बाबुल देश उनकी गुलामी करने ले जाया गया। वहाँ करीब पचास साल तक वे बाबुल के निर्वासन में रहे; उनकी गुलामी करते रहे। वहाँ से इन्होंने प्रभु को पुकारा, इन्होंने अपने किये पर पश्चताप किया; इन्होंने प्रभु को अपनी दुर्दषा में पुकारा और प्रभु ने उनकी सुध ली। क्योंकि स्तोत्र 103: 10-12 में वचन कहता है ‘‘प्रभु दया और अनुकम्पा से परिपूर्ण है; वह सहनशील और अत्यंत प्रेममय है; वह सदा दोष नहीं देता और चिरकाल तक क्रोध नहीं करता।’’ और प्रव. 17:20-23 में वचन कहता है - ‘‘ईश्वर पश्चताप करने वालों को अपने पास लौटने देता और निराष लोगों को ढारस बंधाता है।’’ इसलिए प्रभु आज के पहले पाठ में उन्हें सांत्वना भरे शब्दों में कहता है - ‘‘येरूसालेम! अपने शोक और संताप के वस्त्र उतार और सादा के लिए ईश्वर की महिमा का सौंदर्य धारण कर...येरूसालेम! उठ खडा हो जा, पर्वत पर चढ़ कर पूर्व की ओर दृष्टि लगा। देख, प्रभु की आज्ञा से तेरे पुत्र पष्चिम और पूर्व से एकत्र हो गये हैं। वे आनन्द मना रहे हैं, क्योंकि ईश्वर ने उनकी सुधी ली है...दयामय तथा न्यायी ईश्वर इस्राएल को आनन्द प्रदान करेगा और अपनी महिमा के प्रकाश से उसका पथप्रदर्षन करेगा।’’

बपतिस्मा ग्रहण करके हम सभी प्रभु की चुनी हुई प्रजा बन गये हैं। हम सब नये येरूसालेम यानी कलीसिया के सदस्य हैं; हम सब नयी इस्राएली प्रजा कहलाते हैं। प्रभु ने हम सब से अनन्त प्रेम से प्रेम किया है। जो प्रेमभरे वचन प्रभु ने इस्राएली जनता से कहे थे वे आज हमसे भी कहते हैं। तुम मेरी दृष्टि में मुल्यवान हो...चाहे माँ अपने दुधमुँहे बच्चे को भूला भी दे तो भी मैं तुम्हें नहीं भूलाऊँगा आदि। आईये हम अपने आप का जाँच करके देखें कि हम उन इसा्रएली लोगों से कितने भिन्न हैं। क्या हम, भी हमसे प्रेम करने वाले ईश्वर को त्याग कर बुराई के मार्ग पर नहीं चलते? क्या हम भी हमारे कार्यों द्वारा उनको अप्रसन्न नहीं करते? क्या हमने भी जानबुझकर हमसे अनन्त प्रेम करने वाले ईश्वर के दिल को नहीं तोडा? क्या हमने उनको अपने पापों के कारण दुःख नहीं पहुँचाया?

तो आईये हम भी प्रभु के पास वापस लौट चलें। यह आगमन का समय हमारे लिए प्रभु के पास पुनः लौट आने का उचित समय है। आइये हम आज के सुसमाचार के वचनों पर मनन चिंतन करें। आज के सुसमाचार में संत योहन बपतिस्ता हमें अपने पापों पर पश्चताप करते हुए प्रभु के लिए अपने आपको तैयार करने को कहते हैं। वे कहते हैं ‘‘प्रभु का मार्ग तैयार करो’’ हम सब को प्रभु के लिए मार्ग तैयार करने की ज़रूरत है। योहन बपतिस्ता का काम था प्रभु के रास्ते को सीधा करना। हमें भी पश्चताप, क्षमा, शाँति, प्रेम व पवित्रता के जीवन द्वारा प्रभु के रास्ते को सीधा करना है। ‘‘हर पहाड व पहाडी समतल की जाये’’ हमें हमारे जीवन से घमंड के पहाडों को खोदकर समतल करना है। ‘‘हर घाटी भर दी जाये’’ घाटी को भरना अथवा खाई को पाटना, हमें याद दिलाता है हमारी खोखली धार्मिकता की। जिस विश्वास की हम घोषणा करते हैं और जिस प्रकार का जीवन हम रोज वास्तव में जीते हैं इसके बीच एक बहुत बडी खाई है, जिसे हमें समतल करना है। हमें हमारे विश्वास व दैनिक जीवन के बीच की खाई को भरकर दोनों में समानता लाना है। हमारी कथनी व करनी में समानता लाना है। ‘‘टढे-मेढे रास्ते सीधे कर दिये जायेंगे’’ हमारे पापमय रास्ते, बुराईयों भरे रास्ते को हमें सीधा करना है। बुराईयों के टेढे-मेढे रास्ते को सुधारकर हमें सीधा करना है। याने हमारे जीवन में सुधार लाना है।

यह सब करना तभी संभव है जब हमें हमारी गलतियों का आभास होगा। जब हमें लगेगा कि हाँ मैं सचमुच प्रभु से दूर हो गया हूँ, मुझे जब ये लगने लगेगा कि हाँ मुझे प्रभु के पास लौट आना चाहिए। और इसके लिए सच्चे मन से पश्चताप करते हुवे पापस्वीकार संस्कार के द्वारा प्रभु से व अपने पडोसियों से मेलमिलाप करने व पवित्र युखरिस्त में भाग लेने से बेहतर रास्ता और क्या हो सकता है। माता कलीसिया इस आगमनकाल में हमें पश्चताप करने व अपनी पापमय जिंदगी से मन फिराकर प्रभु के पास लौटने का एक सुअवसर प्रदान करती हैं। आईये हम इस पवित्र समय का पूरा लाभ उठायें। व प्रभु के लिए स्वयं को अच्छी तरह से तैयार करें।

आमेन।


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