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चक्र स - 06. ख्रीस्त जयन्ती (रात्रि की मिससा)

इसायाह 9:1-6; तीतुस 2:11-14; लूकस 2:1-14

फादर डोमिनिक थॉमस – जबलपूर धर्मप्रान्त


“ईश्वर की कृपा सभी मनुष्यों की मुक्ति के लिए प्रकट हो गयी है।“ (तीतुस 2:11) संत पौलुस के ये शब्द ख्रीस्त जयन्ती पर्व की इस पावन रात्रि के महती रहस्यों को प्रकट करते हैं। ईश्वर की कृपा प्रकट हो गयी है। चरनी में प्रकट हुआ इस बालक में ईश्वर का प्रेम मानवों के बीच में दृश्यगोचर हो गया है ।

यह प्रत्याशा की रात है - येसु ने बेथलेहेम में जन्म लिया। ’बेथलेहेम’ का अर्थ है “रोटी का घर”। येसु हमारे जीवन में रोटी बनकर हमें जीवन प्रदान करने आये हैं। वे हमें अपना प्यार प्रदान करने आये हैं। (योहन 3:16) येसु की चरनी व क्रूस को एक सीधी लकीर से जोडा हुआ है। यह लकीर हमें प्रेम और मुक्ति प्रदान करती है। येसु हमारे लिए जीवन की रोटी है - रोटी जो मानवों के लिए क्रूस पर तोडी गयी। “किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा मुक्ति नहीं मिल सकती; क्योंकि समस्त संसार में ईसा नाम के सिवा मनुष्यों को कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया है, जिसके द्वारा मुक्ति मिल सकती है”। (प्रेरित-चरित 4:12)

यह ज्योति की रात है तथा यह ज्योति हमारे जीवन के अंधकार की रात को मिटाती है। चरनी में लेटे बालक येसु में ईश्वर की ज्योति देदीप्यमान हो रही है। उनकी ज्योति डरावनी नहीं बल्कि प्रेम भरी है। नबी इसायस द्वारा की गयी भविष्यवाणी ’वह ज्योति’ (इसायाह 9:1) बेथलेहेम की चरनी में हम पाते हैं।

यह महिमा की रात है - जिस महिमा की उदघोषणा स्वर्गदूतों ने बेथलेहेम में की थी वह महिमा आज सारे संसार में गूँज उठती है। प्रेम, सादगी, विनम्रता और लघुत्व में ईश्वर की महिमा प्रकट हो रही है ।

यह क्रियाशील विश्वास की रात है – यह रात उन चरवाहों की रात है जिन्होंने विश्वास किया कि हमारे लिए एक बालक उत्पन्न हुआ है। (इसायाह 9:1) येसु से मिलने चरवाहे “शीघ्र ही चल पडे और मरियम, यूसुफ तथा चरनी में लेटे हुए बालक को पाया।” (लूकस 2:16) यहूदियों के नवजात राजा से मिलने पूर्व से आये तीन ज्योतिषी लोग विश्वास की अनोखी मिसाल है। (मत्ती 2:2) जबकि हेरोद राजा को इस बात से अवगत कराया गया था कि मुक्तिदाता का जन्म हुआ किंतु उस जानकारी को उसने क्रियाशील विश्वास में परिवर्तित नहीं किया और इस कारण से वह ईश्वरीय कृपा से वंचित रह गया।

यह आनन्द की रात है - क्योंकि अभी तथा सदा के लिए येसु हमारे साथ है । येसु मनुष्य बने और वह इनसान से दूर नही होंगे। “शब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया।” (योहन 1:14)

स्वर्गदूत ने मुक्तिदाता मसीह को पहचानने हेतु चरवाहों को चिन्ह दिया था – “आप एक बालक को कपडों में लपेटा और चरनी में लिटाया हुआ पायेंगे” (लूकस 2:12)। इस चिन्ह को पहचानना हमारे लिए भी अत्यन्त जरूरी है जो येसु से मिलना चाहते हैं। सादगी, विनम्रता तथा उष्मल स्नेह के बीच में ईश्वर उपस्थित है। इस चिन्ह में विरोधाभास भी है। येसु के जन्म के संदर्भ में हेरोद राजा, राज्यपाल और कई महत्वपूर्ण लोगों का उल्लेख बाइबिल में है किंतु ईश्वर की उपस्थिति उन लोगों के बीच या राज महलों में नहीं है। सादगी, उदार प्रेम और विनम्रता की उस चरनी में जहां कोई आडंबर, अधिकार या धन संम्पत्ति नहीं है, ईश्वर स्वयं मानव के बीच उपस्थित है। जीवन की सादगी के बीच विस्मित करने वाले लघुत्व को हम चरनी में अनुभव करते हैं ।

चरनी का बालक संसार के लिए एक चुनौती है क्योंकि वह बालक येसु आज भी हमारे बीच प्रकट हो रहा है। यह चुनौती उन सब बच्चों की है जो ऐसे स्थानों व परिस्थितियों में जीते है जहॉ उनकी मान मर्यादा की कोई कद्र नहीं है और उनकी मान मर्यादा भंग की जाती है। युद्ध की परिस्थिति में जीने वाले बच्चे, सडक के किनारे जीवन यापन करने वाले बच्चे, बाल मजदूर व पालायन करने के लिए मजबूर बच्चे चरनी के संदेश द्वारा हमें चुनौती दे रहे हैं।

ख्रीस्त जयंती का मर्म ज्योति और आनन्द है किंतु साथ ही इस घटना में दुखद परिवेश भी है। येसु को धारण करती हुई गर्भवती माता मरियम एवं उनके पति यूसुफ बहुत से घरों व सरायों के दरवाजे पर खटखटाते है किंतु उनके लिए दरवाजे नहीं खुले। मुक्तिदाता को जन्म देने के लिए सराय में जगह नहीं थी (लूकस 2:7) और गोशाले में येसु को जन्म देकर उस दिव्य माता ने येसु को चरनी मे लिटा दिया। बेथलेहेम के लोगों ने मुक्तिदाता को इनकार और नजरअंदाज किया। ख्रीस्त जयंती का मकसद तभी पूरा होगा जब हम येसु की ज्योति ग्रहण कर अंधकार में रहने वालों को प्रकाश दें, दुखद लोगों को आनन्द दें ।

ख्रीस्त जयंती जब केवल एक छुटटी का दिन मात्र है तो ’स्वयं और स्वार्थ’ मात्र इस त्यौहार का केन्द्र बिन्दू बन जाता है और मुक्तिदाता येसु हमसे व इस त्यौहार से कोसों दूर होगा। जब हम खरीदी और मौज मस्ती में लीन होकर दूकानों की रंगारंग रोशनी में रह कर येसु को परछाई में धकेल देते है। हम इनाम पाने और दिखावे में व्यस्त हो जाने पर पडोसी की जरूरत पर ध्यान नहीं दे पाते है। सांसारिकता ने ख्रीस्त जयंती का अपहरण कर लिया है। ख्रीस्त जयंति को सांसारिकता से मुक्त करना अतिआवश्यक है और तभी ख्रीस्त जयंति सच्चे मायने में अर्थपू बनेगा और अंधकार में भटकने वालों के लिए सच्ची ज्योति बनेगी। ख्रीस्त जयंती हमारे हृदय को परिवर्तित करें ताकि सारी मानव जाति के लिए ईश्वर की कृपा प्रकट हो जायें ।


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