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चक्र स - 13. प्रभु येसु का बपतिस्मा

इसायाह 42:1-4, 6-7 ; प्रेरित-चरित 10:34-38; लूकस 3:15-16

(फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांत)


आज हम हमारे प्रभु येसु ख्रीस्त के बपतिस्मा का पर्व मना रहे हैं। हर साल प्रभु के बपतिस्मा के साथ ख्रीस्त जंयती काल समाप्त होता है और हम साधारण पूजनविधी में प्रवेष करते हैं। पवित्र सुसमाचार में प्रभु के जन्म व बाल्यकाल के बारे हम थोडा ही वर्णन पाते हैं। पवित्र सुसमाचार उनके बारह से तीस साल तक के जीवन के बारे में हमें कुछ भी नहीं बताता। संत लूकस इसके बारे में सिर्फ इतना कहते हैं कि ‘‘ईसा अपने माता-पिता के साथ नाजरेत गये व उनके अधीन रहे।’’ याने उन्हेंने 18 साल का अपना जीवन अपने माता-पिता के साथ बिताया, उनके अधीन रहकर, उनकी आज्ञाओं का पालन करते हुए व उनके दैनिक कार्यों में उनकी मदद करते हुए। इसके बाद तीस वर्ष की आयु होने पर वे अपना घर व माता-पिता को छोडकर जिस मिषन को व जिस उद्देष्य को लेकर इस संसार में आये थे उसे पूरा करने के लिए चल पडते हैं। सार्वजनिक रूप से लोगों के सामने स्वयं को प्रकट करने के पहले वे यर्दन नदी की ओर जाते हैं जहाँ पर योहन बपतिस्ता लोगों को पाप क्षमा का बपतिस्मा दे रहा था। प्रभु स्वयं वहाँ लागों की भीड में योहन बपतिस्ता से बपतिस्मा लेने के लिए पानी में उतरते हैं। पवित्र त्रित्व का दूसरा व्यक्ति, इस दुनिया का सृष्टिकर्ता, अनादिकाल से पिता के साथ विद्यमान वचन आज यर्दन नदी में योहन के सामने अपना सिर झूकाकर उनसे बपतिस्मा ग्रहण कर रहा हैं। यह वही योहन बपतिस्ता है जिसने लोगों से प्रभु के विषय में कहा था कि मेरे बाद जो आने वाला है वो मुझसे इतना महान है कि मैं झूककर उसके जूते का फिता खोलने के लायक भी नहीं हूँ (मत्ती 3:11, योहन 1:27)। लेकिन आज उसी योहन बपतिस्ता के सामने प्रभु अपना सिर झूकाकर बपतिस्मा ग्रहण करते हैं।

वास्तव में देखा जाए तो उन्हें व्यक्तिगत रूप से किसी बपतिस्मा की जरूरत नहीं थी। वे तो निष्पाप थे परन्तु फिर भी वे पापियों की कतार में हम सब पापियों का प्रतिनिधित्व करते हुए वहाँ खडे थे। वे अपने निजी पापों के लिए नहीं हमारे पापों के पश्चताप हेतु वहाँ खडे थे। उन्होंने हमारे जैसा मानवीय स्वभाव धारण किया व हम पापियों का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने हम सबों के पापों को अपने ऊपर ले लिया। संत योहन के सुसमाचार अध्याय 1:29 में जब योहन बपतिस्ता प्रभु येसु को अपनी ओर आते हुए देखता है तो अपने षिष्यों से कहता है - ‘‘देखो-ईश्वर का मेमना जो संसार के पाप हरता है।’’ जि हाँ, प्रभु येसु वह मेमना है जिसके ऊपर पिता ने सारे संसार के पापों को लाद दिया है। नबी इसायस 52:6 में वचन कहता है- ‘‘हम सब अपना-अपना रास्ता पकड कर भेडों की तरह भटक रहे थे। उसी पर प्रभु ने हम सबों के पापों का भार डाल दिया है।’’ इसलिए प्रभु यर्दन नदी के पानी में हम सब के पापों को लेकर खडे थे। उन्होंने इसके साथ अपने उस मुक्ति कार्य को प्रारम्भ किया जिसके लिए वे इस संसार में आये थे। यह बपतिस्मा तो बस एक प्रतीक व शुरूआत थी उस महान मुक्ति कार्य की जिसे पूरा करने के लिए प्रभु व्याकुल थे। संत लूकस के सुसमाचार 12:50 में प्रभु कहते हैं -‘‘मुझे एक (और) बपतिस्मा लेना है और जब तक वह नहीं हो जाता, मैं कितना व्याकुल हूँ’’। यर्दन नदी में जो प्रतिकात्मक रूप में प्रारम्भ हुआ उसे प्रभु ने कलवारी पर अपने बलिदान द्वारा पूर्ण किया। वहाँ पर सचमुच बली का एक मेमना बनकर उन्होंने हमारे पापों को अपने ऊपर ले लिया। इसी रक्त के बपतिस्मा लिए वे व्याकुल थे। संत पेत्रुस हमसे कहते हैं कि - ‘‘वह अपने शरीर में हमारे पापों को कू्रस के काठ पर ले गये, जिससे हम पाप के लिए मृत हो कर धार्मिकता के लिए जीने लगें’’ (1पेत्रुस 2:24)।

प्रभु ने यर्दन नदी में बपतिस्मा ग्रहण करके बपतिस्मा के जल को पवित्र कर दिया है। और हमारे लिए स्वर्ग का द्वार फिर से खोल दिया है। पुराने विधान में योशुआ के ग्रंथ में हम पढते हैं कि इस्राएली लोग मिश्र की गुलामी से आजाद होकर प्रतिज्ञात देश में प्रवेष कर रहे थे उस समय उनको यर्दन नदी को पार करना था। उस समय योशुआ ने प्रभु के विधान की मंजुषाधारी पुरोहितों को नदी के बीचों-बीच खडा कर दिया और नदी का पानी एक बाँध की तरह रूक गया और इस्राएलियों ने सुखे पाँव नदी को पार किया था। आज प्रभु उसी यर्दन नदी के बीचों बीच खडे हैं नये विधान की मंजूषा बनकर। आज वो हमसे यही चाहते हैं कि हम भी बपतिस्मा द्वारा हमारी पापमय दासता से मुक्त होकर सूखे पाँव इस लोक से स्वर्ग लोग की ओर गमन करें। जब तक सारे इस्राएली यर्दन के उस पार नहीं चले गये तब तक प्रभु के विधान की मंजूषा वहीं पर नदी के बीच में रही। प्रभु येसु नये विधान की मंजूषा के रूप में हम सब का इंतजार करते हुवे यर्दन नदी की बीचों बीच खडे रहते हैं। आज के पहले पाठ में हमने सुना है कि वह न तो थकता न हिम्मत हारता है, जब तक वह पृथ्वी पर धार्मिकता की स्थापना न कर दे। याने जब तक हम यर्दन के उस पार न निकल जायें, जब तक हम मुक्ति प्राप्त न कर लें प्रभु हमारी मुक्ति का कार्य जारी रखता है।

प्रभु हर एक इंसान को अपने इस मुक्ति कार्य में सम्मिलित करना चाहता है। वे चाहते हैं कि हर कोई उद्धार पाये, मुक्ति पाये और बच जाये। आज के दूसरे पाठ में वचन हमसे कहता है- ‘‘इश्वर किसी के साथ पक्षपात नहीं करता। मनुष्य किसी भी राष्ट्र का क्यों न हो, वह ईश्वर पर श्रद्धा रखकर धर्माचरण करता है, तो वह ईश्वर का कृपापात्र बन जाता है।’’ याने यर्दन पार कर प्रतिज्ञात दष में जाने के लिए, मुक्ति पाने के लिए, व प्रभु के कृपापात्र बनने के लिए हमें उन पर श्रद्धा रखकर धर्माचरण करने की जरूरत है। आईये तो हम हमारी अधर्म की राहों को छोडें, पाप की राहों को छोडें, शैतान का व उसके सारे प्रपचों का परित्याग करें, सारे कुकर्मों का परित्याग करें व पवित्र त्रियेक इश्वर पर अपने अटूट विश्वास में दृढ बने रहें जिसे हमने हमारे बपतिस्मा के समय स्वीकार किया था।


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