Smiley face

चक्र स -14. वर्ष का दूसरा इतवार

इसायाह 62:1-5; 1 कुरिन्थियों 12:4-11; योहन 2:1-11

फादर डोमिनिक वेगस, एस.वी.डी.


संत योहन के सुसमाचार में येसु की माता मरियम का उल्लेख केवल दो ही बार किया गया है- एक काना के विवाह भोज में जहाँ से येसु अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत करते हैं तथा दूसरा क्रूस मरण के समय। यह एक प्रकार से हमें बताने का तरीका हो सकता है कि माता मरियम के द्वारा जो भूमिका निभाई गई है उससे यह स्पष्ट होता है वे न केवल येसु की माँ थी बल्कि वह प्रभु येसु के साथ हमारे मुक्ति कार्य में सक्रिय रुप से सहभागिनी भी थी। हमने पढ़ा है कि काना के विवाह भोज में माता मरियम आमंत्रित थी तथा स्वयं येसु और उनके शिष्य भी आमंत्रित किये गये थे। भोज शुरु होने के कुछ देर बाद ही अंगूरी समाप्त हो गई, माता मरियम स्वयं इसकी पहल करते हुये अपने पुत्र येसु से निवेदन करती है और येसु अपना प्रथम चमत्कार करते हैं।

माता मरियम को यह कैसे मालूम था कि उनका पुत्र यह कर सकते हैं? दूसरा दिलचस्प प्रश्न इस घटना से यह उठता है कि यदि माता मरियम को यह पता था कि येसु चमत्कार कर सकते हैं तो फिर भी उन्होंने कभी भी अपने परिवार के लिये यह नहीं मांगा कि रुपयों-पैसों में कुछ वृद्धि कर दो जिससे परिवार की जरुरतें पूरी की जा सके? आखिर परोपकार घर से ही तो शुरु होता है! परन्तु मरियम और येसु ने अपनी जरुरतों से कहीं अधिक सर्वप्रथम ईश्वर की इच्छा को प्रथम स्थान दिया।

येसु जानते थे कि उनमें लोगों के जीवन का उद्धार करने की शक्ति है। येसु चालीस दिन तक निर्जन प्रदेश में उपवास करते हैं। इसके बाद उन्हें भूख लगी। तब शैतान आकर उन्हें सलाह देता है कि वह पत्थरों को रोटियों में बदल ले और अपनी भूख मिटायें, परन्तु येसु यह नहीं करते हैं। लेकिन बाद में हम यह देखते हैं कि येसु रोटियों का चमत्कार कर एक बड़ी भीड़ को खिलाते हैं। काना का चमत्कार हमें क्या बताता है? क्या ईश्वरीय वरदान अपने स्वयं के लाभ के लिये है या फिर दूसरों की सेवा एवं भलाई के लिये है? आज के दूसरे पाठ में संत पौलुस पवित्र आत्मा के विभिन्न वरदानों का वर्णन करते हुये कहते हैं कि पवित्र आत्मा प्रत्येक को दूसरों की भलाई एवं सार्वजनिक कल्याण के लिये वरदान देता है।

ईश्वर ने मुझे क्या-क्या वरदान दिये हैं? क्या मैं इन वरदानों का उपयोग अपने समुदाय की सेवा एवं भलाई के लिये करता हूँ? शायद हम आश्चर्य करते होंगे कि आजकल पवित्र आत्मा के प्रकटीकरण क्यों नहीं होते हैं, जैसा कि हम बाइबिल में पढ़ते हैं। कितना अच्छा होता शायद यदि हम अपने अन्दर मौजूद वरदानों को दूसरों की भलाई के लिये उपयोग करते जैसे प्रार्थना, गीत-संगीत, पालन-पोषण, परोपकार, प्रोत्साहन, सहायता, प्रेरणा-देने, लिखने या व्याख्या आदि का वरदान। तब हम अपने जीवन में चमत्कार देखेंगे कि दूसरों के साथ सहानुभूति एक मूल चमत्कार है। हम अपने स्वयं के लिये असीसी के संत फ्रांसिस की प्रार्थना को बोल सकते हैं-

हे प्रभु मुझे अपनी शांति का साधन बना।

जहाँ घृणा हो, वहाँ मैं प्रेम भर दूँ।

जहाँ आघात हो वहाँ क्षमा भर दूँ।

जहाँ शंका हो वहाँ विश्वास भर दूँ ।

जहाँ निराशा हो वहाँ मैं आशा जगा दूँ।

जहाँ अंधकार हो वहाँ मैं ज्योति जला दूँ।

जहाँ खिन्नता हो वहाँ मैं हर्ष भर दूँ।

हे मेरे ईश्वर मुझे यह वरदान दो कि मैं

सान्त्वना पाने की आशा न करूँ बल्कि सान्त्वना देता रहूँ

समझा जाने की आशा न करूँ, बल्कि समझता ही रहूँ

प्यार पाने की आशा न करूँ, बल्कि प्यार देता ही रहूँ

क्योंकि त्याग के द्वारा ही प्राप्ति होती है,

माफ करने से ही माफी मिलती है, तथा मृत्यु के द्वारा ही अनन्त जीवन की प्राप्ति होती है।

सुसमाचार लेखक संत योहन यह नहीं कहते हैं कि येसु ने चमत्कार या आश्चर्यजनक कार्य किये बल्कि वे उन्हें ‘चिन्ह‘ कहते हैं क्योंकि वे हमें अधिक गहराई से समझने की ओर इशारा करते हैं जो हमारी आँखों के परे है। सही अर्थों में यह ‘चिन्ह‘ ही है जो येसु ने प्रदर्शित किया था जो उनके व्यक्तित्व और उसके मनुष्यों को बचाने की शक्ति को वर्णन करते हैं। जो चमत्कार काना के विवाह भोज में हुआ था यह उसकी शुरुआत थी। यह एक नमूना था कि येसु इस प्रकार के अन्य कार्य अपने पूरे जीवन काल में करेंगे।

बहुत से लोगों को चर्च के कार्यों को जीवन प्रदान करने वाला नहीं बल्कि पूजन समारोह उन्हें निरर्थक लगता है। कलीसिया की ओर से उन्हें उन चिन्हों को देखने की जरुरत है जो अधिक स्नेहशील एवं जीवन-दायक हैं, जिससे कि ख्रीस्तीयों में प्रभु येसु के दुःखों और कष्टों को दूर करने की क्षमता को देख सकें। कोई भी ऐसी खबर को नहीं सुनना चाहता जो उन्हें खुशी प्रदान नहीं करती और विशेषकर जब सुसमाचार अधिकार जताते हुये और प्रवचन धमकी भरे शब्दों में दिया जाये? प्रभु येसु ख्रीस्त प्यार करने की शक्ति और हमारे अस्तित्व को महत्व देने ही आये ताकि हम समझदारी एवं आनंद का जीवन जी सकें। अगर आज लोग केवल सैद्धांतिक धर्म के बारे में जानते हैं तो वे कभी भी येसु के द्वारा फैलाई गई खुशी का अनुभव नहीं कर पायेंगे और बहुत से लोग अपने को ईश्वर से दूर रखेंगे।

विवाह समारोह में पानी, दाखरस के रुप में तभी अनुभव किया गया जब वह ‘बढ़ाया गया‘ अथार्त जब उसे छः बडे़ पानी के मटकों में भरा गया जो यहूदियों के शुध्दीकरण के लिये प्रयोग किया जाता था। सिद्धांत पर आधारित धर्म आज समाप्त हो चुका है। उसमें जीवनदायक जल नहीं है जिसमें सभी मानवीय जरुरतों को शुद्ध तथा संतुष्ट करने की क्षमता हो। येसु के परिवर्तन लाने वाली शक्ति को व्यक्त करने के लिये केवल शब्द ही पर्याप्त नहीं है वरन् सेवा भावना की जरुरत है। सुसमाचार का प्रचार मात्र बात करना, प्रवचन देना, शिक्षा देना, किसी का न्याय करना, डराना और दोषी ठहराना नहीं है। हमें जरुरत है कि हम स्वयं की जीवन-शैली के माध्यम से प्रसन्नचित येसु को दर्शा सकें। आज हमारे धर्म को जरुरत है कि यह एक आनंद एवं समारोह का स्थान हो जहाँ विश्वासीगण अपनेपन का अहसास कर सके जैसा कि काना के विवाह भोज में हुआ था।


Copyright © www.jayesu.com
Praise the Lord!