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चक्र स -16. वर्ष का चैथा इतवार

यिरमियाह 1:4-5, 17-19; 1 कुरिन्थियों 12:31-13:13, या 13:4-13; लूकस 4:21-30

(फादर जॉंनी पुल्लोप्पिल्लिल)


आज वर्ष का चैथा इतवार है। प्रभु प्रकाश के पर्व के तुरन्त बाद पूजन-पद्धति का साधारण काल प्रारंभ होता है। प्रभु प्रकाश तक हम प्रभु येसु के जन्म एवं उनकी बाल्यावस्था का विवरण सुनते हैं, परन्तु उसके बाद साधारण काल के प्रारंभ में प्रभु येसु के कार्यकलापों एवं जन्म के उद्देश्य का विवरण पाते हैं।

आज के सुसमाचार में भी इससे मिली-जुली एवं इसी परिपे्रक्ष्य की बातें बताई गई हैं। आज के सुसमाचार को सुनने और समझने के लिए हमें उससे पूर्व की घटनाओं को अनिवार्यतः समझना होगा। जब ईसा नाज़रेत आये, मंदिर गये और उन्हें पढ़ने के लिए नबी इसायाह की पुस्तक दी गई, तब पुस्तक खोलकर ईसा ने वह स्थान निकाला जहाँ लिखा है ‘‘प्रभु का आत्मा मुझ पर छाया रहता है, क्योंकि उसने मेरा अभिषेक किया है। उसने मुझे भेजा है, जिससे मैं दरिद्रों को सुसमाचार सुनाऊँ, बन्दियों को मुक्ति का, अंधों को दृष्टिदान का संदेश दूँ, दलितों को स्वतंत्र करूँ और प्रभु के अनुग्रह का वर्ष घोषित करूँ’’ (लूकस 4:18-19)

उपयुक्त कथन के द्वारा प्रभु येसु ने अपने जन्म का उद्देश्य सभागृह में उपस्थित जन सामान्य को बताया। साथ ही उन्होंने यह भी कहा ‘‘धर्मग्रन्थ का यह कथन आज तुम लोगों के सामने पूरा हो गया है‘‘(लूकस 4:21)।

यहूदी स्वयं को ईश्वर की प्रजा मानते थे। इसलिए वे अन्य लोगों से दूर व अलग रहते थे। उनका ऐसा विश्वास था, कि ईश्वर उनके लिए, उनके द्वारा और उनके देश में ही प्रकट हो सकते हैं। कुछ यहूदियों का यह मत था कि दलितों की सृष्टि ईश्वर ने नरक के ईंधन के रूप में की थी। जब प्रभु येसु ने अपने कार्यों एवं उद्देश्यों को इन लोगों को बताया, तो सभागृह में उपस्थित समस्त लोगों की आँखें उन पर टिकी हुई थी।

सन्त लूकस इस तथ्य की पुष्टि के लिए कि ‘प्रभु सबके लिए‘ हैं, नबी एलियस एवं नबी एलीशा के जीवन की दो घटनाएँ वर्णित करते हैं- प्रथम, सीदोन के सरेप्ता नगर की विधवा की तथा द्वितीय, अराम के राजा के सेनाध्यक्ष नामान नामक एक कोढ़ी व्यक्ति की। दोनों इस्राएल के बाहर के निवासी थे। इस्राएल में साढ़े तीन वर्षों तक वर्षा नहीं हुई तो एलियस को ईश वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी, ’’उठो! सीदोन के सरेप्ता जाओ और वहाँ रहो! मैंने वहाँ की एक विधवा को आदेश दिया कि वह तुम्हें भोजन दिया करे’’ (1 राजा 17:9)। उस समय इस्राएल में बहुत-सी विधावाएँ थी। फिर भी एलियस उन में से किसी के पास नहीं भेजा गया- वह सरेप्ता की विधवा के पास ही भेजा गया था।

इसी प्रकार कुष्ठ रोगी ‘नामान’ की कहानी के अनुसार नामान एक महान योद्धा था, परन्तु वह कोढ़ी था, वह सीरी में जो इस्राएल के बाहर स्थित था, रहता था। वह परम ईश्वर भक्त नबी एलिशा के पास पहुँचते हैं तथा एलिशा उन्हें रोगमुक्त कर देते है और कहते हैं, कि ‘‘आप जाकर यर्दन नदी में सात बार स्नान कर लीजिए, आपका शरीर स्वस्थ हो जायेगा और आप शुद्ध हो जायेंगे’’ (2 राजा 5:10)।

सन्त लूकस ने इन दोनों घटनाओं के वर्णन से इस्राएली जनता के विचारों तथा आशाओं पर पानी फेर दिया तथा यह स्थापित किया कि नबी इसायाह ने जिसकी भविष्यवाणी की थी और जिनका जन्म निश्चित समयावधि में इस दुनिया में होना था, वह ईश पुत्र न केवल इस्राएलियों वरन् सारे विश्व का ईश्वर हैं। वह बंदियों, दलितों, ग़रीबों तथा अमीरों के ईश्वर हैं। यह कहना भी उचित होगा कि वह जीवन के समस्त क्षेत्रों, वर्गों, जातियों तथा देशों के ईश्वर हैं। वह सीरी के नागरिकों, वह सीदोन निवासियों समस्त विश्व के ईश्वर हैं। ईश्वर को किसी भाषा, जाति, स्थान, देश या प्राणी मात्र में बाँटना असंभव हैं। परन्तु फिर भी किसी की ऐसी सोच है, तो यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि वह ईश्वर की नहीं स्वयं की अर्थात् स्वार्थ की पूजा करता है। क्योंकि सारे मनुष्यों को ईश्वर ने अपने प्रतिरूप बनाया है।

इसलिए सन्त पौलुस कुरिन्थियों को लिखते हुए कहते हैं, ‘‘मैं भले ही मनुष्यों तथा स्वर्गदूतों की सब भाषाएँ बोलूँ, किन्तु यदि मुझमें प्रेम का अभाव है, तो मैं खनखनाता घड़ियाल या झनझनाती झाँझ मात्र हूँ। . . . मैं भले ही अपनी सारी सम्पत्ति दान कर दूँ और अपना शरीर भस्म होने के लिए अर्पित करूँ; किन्तु यदि मुझ में प्रेम का अभाव है, तो इससे मुझे कुछ भी लाभ नहीं’’ (1 कुरिन्थियों 13:1,3)।

इसलिए हमें चाहिए कि हम मनुष्य में ईश्वर को पहचानें- चाहे वह भारतीय हो या पाकिस्तानी, चाहे वह अमीर हो या गरीब, चाहे वह ब्राह्मण हो या दलित, रोगी हो या निरोगी। क्योंकि सन्त पौलुस ने कहा है कि पारस्परिक प्रेम ही मनुष्य में ईश्वरीय पहचान, परख, अनुभूति एवं संवेदना है। अर्थात् हमें एकाकार होकर परस्पर सहायता और स्नेह करना चाहिए। प्रभु ने जिन कार्यों और उद्देश्यों को प्रारंभ किया था, हम अपने आचार-विचार और व्यवहार से उन्हें अनवरत गतिशील और क्रियान्वित करें।


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