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चक्र स -16. वर्ष का चैथा इतवार

यिरमियाह 1:4-5, 17-19; 1 कुरिन्थियों 12:31-13:13, या 13:4-13; लूकस 4:21-30

फादर पयस लकड़ा एस.वी.डी


आप क्या करेगें? आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी? क्या कभी आपने ठोकर खायी है? किसी ने हिन्दी में कहा है ’बिना ठोकर खाकर कोई ठाकुर नहीं बनता।

मानवीय, सामाजिक जीवन में तिरस्कार, अनादर या अस्वीकार का अनुभव कोई नई बात नहीं है। ठोकर खाना, नफरत सहन करना, तिरस्कार का अनुभव इन्सान को बनाता (make), बिगाड़ता (break), नीचे गिराता या ऊपर उठाता है। नौकरी के लिए जाओ, दाखिले के लिए जाओ, कई स्थानों पर लोगों को भेदभाव की सच्चाई का सामना करना पडता है।

आज के पहले पाठ में (यिरमियाह 1:4-15,17) नबी यिरमियाह के बुलावे के बारे में वर्णन किया गया है। प्रभु परमेश्वर नबी यिरमियाह को बुलाते समय कहते हैं-‘‘माता के गर्भ में रचने से पहले ही मैंने तुम्हें चुन लिया।’’ वह ईश्वर के ज्ञान में था, पूर्व निर्धारित नबी यिरमियाह चुन लिया गया था, नियुक्त किया गया था। ईश्वर उन्हें इस कार्य के लिए सशक्त, सक्षम बनाते हैं और चेतावनी भी देते हैं कि उन्हें तिरस्कार का सामना करना होगा और उन्हें ढ़ाढ़स देते हैं कि उन्हें घबराना नहीं चाहिए, डरना नहीं चाहिए, क्योंकि ईश्वर उन्हें आश्वासन देते हैं कि वे उनके साथ हैं और उनका उध्दार करेंगे। अपने विशेष कार्यों के लिए ईश्वर अपने चुने हुए लोगों को अलग रखते, पवित्र रखते ताकि वे दूसरों से अलग हो जो जीवित मछली की तरह रहते नहीं लेकिन मृत मछली के जैसे जो पानी के बहाव में बह जाता है।

ईश्वर के कार्य के लिए ईश्वर द्वारा चुने जाने पर और लोगों के द्वारा अस्वीकार या तिरस्कार का सामना करने पर एक असमजंस की स्थिति पैदा होती है। डर का कारण यह हो सकता है कि कोई जोखिम उठाना नहीं चाहता है। लेकिन नबी यिरमियाह हिम्मत नहीं हारते हैं क्योंकि जिनको ईश्वर बुलाते हैं, इस बुलावे के साथ-साथ उन्हें वे सशक्त और संपन्न भी करते हैं।

दूसरे पाठ के द्वारा संत पौलुस कुरिन्थियों के पहले पत्र में इस बात का उल्लेख करते हैं कि प्यार सब से बड़कर है, सर्वोपरि है। येसु को भी नबी यिरमियाह के सदृश्य अस्वीकार का सामना करना पड़ा जैसे कि संत योहन के सुसमाचार में हम पढ़ते हैं कि ईश्वर का रूप येसु मसीह में पूर्णरूप से प्रकट हुआ। वे अपने ही लोगों के बीच में आये और अपने ही लोगों ने उसे नहीं अपनाया। जब नाजरेत निवासी उनको अस्वीकार करते हैं तब इसकी प्रतिक्रिया में पुरानी कहावत प्रकट करते हैं कि अपने ही स्थान में नबी का आदर नहीं होता।

1. यह घटना हमें पुरानी कहावत याद दिलाती है - घर की मुर्गी दाल बराबर।

2. हम/वर्त्तमान में brand और label की दुनिया में जीते हैं और लोगों को भी label करते हैं।

3. बाहरी रूप रंग देखना और स्वीकार या अस्वीकार करना एक मानसिकता है ।

4. हम हमारी पूर्वधारणा या मानसिकता को छोड़ें और नवीन दृष्टिकोण अपनाएं। ताकि नाजरेत के निवासियों के समान ईसा या किसी अच्छी चीज का तिरस्कार न करें या साबूत या प्रमाण न मागें।

5. ईश्वर का नबी होना खतरों से, जोखिमों से भरा है। नबी बनने के लिए हिम्मत चाहिए, नबी होना कोई profession नहीं, पेशा नहीं लेकिन बुलाहट है।


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