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चक्र स -17. वर्ष का पाँचवाँ इतवार

इसायाह 6:1-2अ, 3-8; 1 कुरिन्थियों 15:1-11 या 15:3-8,11; लूकस 5:1-11

फादर पयस लकड़ा एस.वी.डी


‘‘मैं किसको भेजूं, मेरा संदेश कौन लेके जाएगा,

फिर मैंने कहा - मैं यहाँ प्रस्तुत हूँ मुझे लीजिए।’’

आज सामान्य काल का पांचवाँ रविवार है। आज के पाठों के द्वारा प्रतीत होता है कि अपने सन्देश/सुसमाचार को दूसरों तक पहुँचाने के लिए, ईश्वर को हमारी आवश्यकता है - चाहे वह एक सहभागी के तौर पर हो या फ़िर शिष्य के तौर पर या एक सन्देशवाहक के तौर पर।

पहले पाठ में नबी इसायाह के दिव्य दर्शन या बुलावे के बारे में वर्णन है तो वहीं आज दूसरे पाठ में संत पौलुस उनकी खुद की बुलाहट का वर्णन करते हैं और सुसमाचार में हम येसु के प्रारंभिक शिष्यों के बुलावे का वर्णन पाते हैं।

ईसा पूर्व सातवीं सदी में तत्कालीन यूदा के राजा उज़्ज़ीया के मृत्यु वर्ष में, नबी इसायाह को बुलावा मिला। इस पाठ के अनुसार नबी इसायाह को ईश्वर का दर्शन मिलता है और इसका संदर्भ है मंदिर का वातावरण तथा पूजा अर्चना का मुहूर्त। नबी इसायाह को एहसास होता है कि ईश्वर अति पवित्र, शक्तिशाली, और मनुष्य से परे है। उनकी वाणी से सब कुछ काँपता है वे सर्वशक्तिमान है। धुआँ उनकी पूर्ण उपस्थिति को प्रतीत करता है । ईश्वर के पवित्र होने के ठीक विपरीत, नबी इसायाह को अपनी मानवीय स्थिति जो कि बिल्कुल पापमय, अपवित्र है का एहसास होता है। लेकिन स्वर्ग दूत, नबी इसायाह की जिव्हा में अंगार से स्पर्श कर उन्हें पवित्र करते हैं तथा उन्हें नबी बनने के लिए आह्वान करते हैं। ईश्वर अति पवित्र है, और पवित्रतम् ईश्वर के कार्य करने के लिए पवित्र व्यक्ति चाहिए, शुध्दीकरण नितांत आवश्यक है।

संत पौलुस कहते हैं, “मैं जो हूँ वह प्रभु की कृपा से, और ईश्वर की कृपा मेरे प्रति व्यर्थ नहीं”। दूसरा पाठ कुरिन्थयों के पहले पत्र अध्याय 15:1-11 से लिया गया है जहाँ हम पाते हैं कि प्रभु येसु ख्रीस्त ने संत पौलूस को सुसमाचार की घोषणा करने के लिए चुन लिया है और जो सुसमाचार वह घोषित करता है वह उन्हें ईसा मसीह से मिला है और यह ईश्वर की कृपा है तथा इस बुलावे को क्रियान्वित करने के लिए वह लगन से परिश्रम करता है। प्रभु की कृपा से कोई भी सुसमाचार प्रचारक बन सकता है इसके लिए प्रभु का बुलावा आवश्यक है साथ-साथ जीवन में परिवर्तन या बदलाव भी जरूरी है।

प्रभु अयोग्य को भी योग्य बनाता, जो अपने आप को खाली, नगण्य करता उसे ईश्वर संपूर्ण करता है। “जाल गहरे पानी में डालो”। संत लूकस के सुसमाचार अध्याय 5:1-11 में संत लूकस येसु के प्रारंभिक शिष्यों के बुलावे के बारे में वर्णन करते हुये बताते हैं कि वे व्यवसाय से मछुवारे थे। चमत्कारिक तरीके से, येसु के आदेशानुसार, "आपके कहने पर..." जाल डालने पर उन्हें अनोखा अनुभव होता है।

येसु मसीह सभी व्यवसाय में माहिर हैं पारिवारिक पेशे से बढ़ाई होते हुए भी उन्हें मछली मारने का सूत्र और मंत्र मालूम है। इससे हमें येसु सिखाते है कि वे हमारे जीवन में चमत्कार करते हैं, यदि हम उनकी सुनते हैं।

इस घटना के द्वारा उन्होंने येसु को पहचान लिया और सब कुछ छोड़ कर येसु के शिष्य हो गये और उनके पीछे हो लिये। इसके पूर्व वे किसी और व्यवसाय, धन्धे के पीछे जाते थे। अब वे येसु के पीछे जाएगें और उनकी बातों पर ध्यान देगें। ईश्वर जिनको चाहता है उनको बुलाता है किसी भी परिस्थिति में और परिस्थिति से। येसु के हस्तक्षेप के लिए हमें हमेशा तैयार रहना चाहिये। ईश्वर हमें अपने व्यवसाय के लिए कुशल और खुशहाल बनाते हैं। ईश्वर आपको भी बुला रहे हैं; क्या आप ईश्वर को एक मौका देगें?


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