Smiley face

चक्र स -19. वर्ष का सातवाँ इतवार

1 समूएल 26:2, 7-9, 12-13, 22-23; 1 कुरिन्थियों 15:45-49; लूकस 6:27-38

फादर पयस लकड़ा एस.वी.डी


हर इन्सान खुद का मित्र है या शत्रु। अक्सर देखा जाता है कि हमारे विरोधी या शत्रु हमारे दिमाग और मन में ज्यादा समय निवास करते हैं। प्रेम सब कुछ प्रेमपूर्ण बनाता। घृणा सब कुछ घृणित बनाती हैं।

समूएल के पहले ग्रंथ में राजा दाऊद और राजा साऊल की कहानी काफी रोचक है। दाऊद की बालक के सदृश्य प्रगति, असर और प्रभाव और दाऊद के प्रति साऊल की जलन को हम जानते हैं।

राजा साऊल दाऊद का सर्वनाश करना चाहता था और पीछा करता था - एक शत्रु और दुश्मन के तौर पर। दाऊद के हाथ में फंस जाने पर भी उसने साऊल की हत्या नहीं की। क्योंकि वह ईश्वर के द्वारा अभिषिक्त का आदर करता था। यह सच है कि इस्राएलियों की पराम्परा में राजा ईश्वर का प्रतिनिधित्व करता था। इसलिए राजा का तिरस्कार करना अर्थात ईश्वर का तिरस्कार करना था और दाऊद की यह बड़ी उदार, निस्वार्थ सोच, मनोभाव साऊल के जीवन में परिवर्तन लाता है, न सिर्फ परिवर्तन लाता है बल्कि साऊल के नजर में दाऊद आर्शीवाद का पात्र बनता है।

जान लेना पाप है।

ईश्वर की नियुक्ति पर विरोध नहीं करना चाहिये।

दयालुता अर्थात बडे दिल वाला होना है।

प्रेम और क्षमा इन्सान को बदल देती है। प्रेम से सब कुछ पर विजय प्राप्त की जा सकती है।

येसु ख्रीस्त ने एक बहुत ही क्रांतिकारी शिक्षा पेश की और उनकी यह क्रांतिकारी शिक्षा प्रभावशाली इसलिए है कि बहुतों ने उस शिक्षा को अपने जीवन में लागू किया। यह दुनिया की आम सोच से बिल्कुल अलग या हट के है। दुनिया की रीति है कि जो हमें प्यार करते है उन्हीं से हम प्यार करते हैं और जो हमसे बैर रखते उनसे बैर। लेकिन इसके ठीक विपरीत वे कहते हैं अपने शत्रु से प्रेम करो, उनकी शुभ चिंता रखो और उनके लिए प्रार्थना भी करो। हम बदले की भावना या गलती के लिए दण्ड देना सामाजिक दृष्टि से न्याय समझते हैं। लेकिन वे कहते है कि कोई तुम्हें एक गाल पर थापड़ मारे तो दूसरा गाल भी दिखा दो। हमें यह सब इसलिए करना है कि हम उस स्वर्गिक पिता की संतान हैं जो अत्यंत प्रेमी, दयालु, क्षमाशील हैं और यह उचित है कि उनकी संतान, जो येसु में विश्वास करती है उनके सदृश्य बने। ख्रीस्तीयों के लिए येसु मसीह उच्च कोटि का मापदण्ड/जीने का standard प्रस्तुत करते हैं। और यह दुनिया को बदल देता है| जैसे उदाहरण के लिए चोट के बदले प्रतिक्रियात्मक ढंग ये बदला ले तो यह cycle क्रिया चलती ही रहेगी। गैर ख्रीस्तीय और ख्रीस्तीय में फिर क्या फर्क है? इसलिए येसु कहते हैं कि हमें नमक जैसे बन जाना चाहिए, दीपक जैसे बन जाना है ताकि सब कुछ नया हो जाएगा। एक प्रकार से प्रतिक्रिया न करके, दूसरे तरीके से हम हमारे शत्रु पर विजय पाते हैं और उनमें परिवर्तन या बदलाव लाते हैं।

येसु मसीह स्वर्गराज्य का निर्माण करने आये और उस राज्य के नियम, संहिता, सिध्दांत बिल्कुल सर्वोपरि गुणवत्ता quality के हो। ख्रीस्तीय प्रेम इसी में प्रदर्शित होता है और दिखाई देता है अपनी ऑखों के सामने ही स्वयं येसु ने अपने शत्रुओं को मरते समय क्षमा किया। “प्रभु इन्हें क्षमा कर क्योंकि ये नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं”। यदि हर कोई बदला ले तो इस संसार में सब अन्धे, लगड़े, लूले ही मिलेगें।

दूसरे दृष्टिकोण से यह भी बोला जा सकता है कि पड़ोसी-प्रेम का सिंध्दात् यह है कि मेरे प्रेम से, दूसरों की भलाई में कोई भी वंचित न रहें। ईश्वर की शिक्षा का सांराश यही है कि हम पिता के सदृश्य दयालु बने अर्थात् ईश्वर प्रेम में बढ़े, साथ ही साथ येसु के सदृश्य पड़ोसी प्रेम में भी बढ़ते जाएँ अर्थात यह काफी नहीं कि सिर्फ मैं चिंता ही करूँ कि कैसे स्वर्ग पहुँच जाऊँ किन्तु यह भी आवश्यक है कि मैं अकेले नहीं अपने पड़ोसी को भी स्वर्गराज्य का सदृश्य बनाऊँ, साथ ले चलुँ।

क्षमाशीलता ही ख्रीस्तीय धर्म का सारांश है।


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