Francis Scaria

चक्र स - पुण्य गुरुवार

निर्गमन 12:1-8,11-14; 1 कुरिन्थियों 11:23-26; योहन 13:1-15

फादर फ्रांसिस स्करिया


आज की धर्मविधि में हम विभिन्न रहस्यों का सामना करते हैं। प्रभु येसु अटारी में अपने बारह प्रेरितों के साथ अपने सार्वजनिक जीवन का अंतिम भोजन करते हैं। दुख भोगने के पहले अपने शिष्यों के साथ भोजन करने की उनकी तीव्र इच्छा थी (देखिए लूकस 22:15)। उस भोजन के दौरान वे अपने शिष्यों के पैर धोते हैं। साथ ही साथ दो संस्कारों की स्थापना भी करते हैं – पुरोहिताई और यूखारिस्त।

अपने शिष्यों के पैर धोने के बाद उन्होंने उन्हें एक बहुत ही महत्वपूर्ण शिक्षा दी – “तुम मुझे गुरु और प्रभु कहते हो और ठीक ही कहते हो, क्योंकि मैं वही हूँ। इसलिये यदि मैं- तुम्हारे प्रभु और गुरु- ने तुम्हारे पैर धोये है तो तुम्हें भी एक दूसरे के पैर धोने चाहिये।” (योहन 13:13-14) मसीह के आगमन के बारे में नबी इसायाह की भविष्यवाणियों में मसीह को प्रभु का सेवक कहा गया है। और प्रभु येसु कहते हैं कि वह “अपनी सेवा कराने नहीं, बल्कि सेवा करने तथा बहुतों के उद्धार के लिए अपने प्राण देने आया है” (मत्ती 20:28)। दूसरे एक अवसर पर वे अपने शिष्यों से कहते हैं, "जो पहला होना चाहता है, वह सब से पिछला और सब का सेवक बने" (मारकुस 9:35)। इस प्रकार प्रभु येसु अपने जीवन और अपनी शिक्षा से सेवक बनने तथा सेवा करने की ज़रूरत पर जोर देते हैं।

मुझे लगता है कि आज हमें प्रभु येसु ने जिन संस्कारों की स्थापना अंतिम भोजन के समय की थी, उन संस्कारों के सेवाभाव से संबंध पर ध्यान देना चाहिए। पुरोहिताई संस्कार सेवा का संस्कार है। वह उनके लिए हैं जो ईश्वर और उनकी प्रजा की सेवा करना चाहते हैं और उसके लिए अपने जीवन को पूर्ण रूप से समर्पित करते हैं। पुरोहित को ईश्वर उनकी प्रजा की सेवा के लिए ही बुलाते हैं। मूसा, हारून, एली और समुएल को ईश्वर ने इस्राएलियों की सेवा के लिए बुलाया। प्रेरितों को प्रभु येसु ने ईश्वर की पवित्र प्रजा की सेवा के लिए बुलाया। प्रभु ने उन्हें अपनी भेड़ों के लिए अपने जीवन की कुर्बानी देकर भी उनकी सेवा करने की शिक्षा दी। इसलिए पुरोहित लोगों की सेवा के लिए बुलाये गये हैं। संत पापा जो पुरोहितों में सर्वोच्च हैं, स्वयं भी ’सेवकों का सेवक’ जाने जाते हैं।

यूखारिस्तीय बलिदान हमें सेवा करने की चुनौती देता है। यूखारिस्तीय बलिदान में हमारी मुलाकात अपनी जान देकर भी हमारी सेवा करने वाले हमारे प्रभु से होती है। इस विषय में संत पौलुस कहते हैं, “हम पापी ही थे, जब मसीह हमारे लिए मर गये थे। इस से ईश्वर ने हमारे प्रति अपने प्रेम का प्रमाण दिया है” (रोमियों 5:8)। हमारी सेवा में उन्होंने सब कुछ त्याग कर अपने को दीन-हीन बनाया (देखिए फिलिप्पियों 2:5-11)। इस संस्कार में प्रभु येसु हमें एक दूसरे की पैर धोने अर्थात एक दूसरे की सेवा करने की चुनौती देते हैं।

ख्रीस्तीय विश्वासी दूसरों के सेवक हैं। ख्रीस्तीय जीवन सेवा का जीवन है। हमें यूखारिस्तीय बलिदान से दूसरों की सेवा करने की प्रेरणा और शक्ति मिलती है। लूमन जेन्सियुम 11 में द्वितीय वतिकान महासभा हमें सिखाती है कि यूखारिस्तीय बलिदान हमारे ख्रीस्तीय जीवन के उद्गम और चरम-बिन्दु है। कोलकात्ता की संत तेरेसा के जीवन में यह सच्चाई एक अनोखे ढ़ंग से झलकती है। उन्होंने अपनी धर्मबहनों को अपने सेवामय जीवन के लिए मिस्सा बलिदान से प्रेरणा पाने की सलाह दिया। भले समारी के दृष्टान्त में ज़रूरतमन्द व्यक्ति की सेवा करने में तत्परता दर्शाने वाले समारी यात्री को येसु याजक और लेवी से भी अधिक महत्व देते हैं। रविवारीय मिस्सा बलिदान में भाग लेने वाले विश्वासी लोग पूरे सप्ताह के सेवाकार्य के लिए प्रेरणा तथा शक्ति पाकर ही गिरजाघर से निकलते हैं। मिस्सा बलिदान में अपने आप को हम सब के लिए पूरी तरह देने वाले प्रभु येसु हमें निस्वार्थ भाव से सेवा करने की शिक्षा देते हैं। वे कहते हैं, “सभी आज्ञाओं का पालन करने के बाद तुम को कहना चाहिए, ‘हम अयोग्य सेवक भर हैं, हमने अपना कर्तव्य मात्र पूरा किया है’” (लूकस 17:10)।

आईए पुरोहित जो येसु के प्रतिनिधि बनकर मिस्स बलिदान चढ़ते हैं और हरेक व्यक्ति जो प्रभु की प्रिय प्रजा बन कर मिस्स बलिदान चढ़ाते हैं मिस्सा बलिदान सेवा करने तथा सेवक बनने की प्रेरणा और ऊर्जा पायें।


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