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चक्र स - पुण्य शुक्रवार

इसायाह 52:13-53:12; इब्रानियों 4:14-16;5:7-9; योहन 18:1-19:42

फादर फ्रांसिस स्करिया


एक गैरख्रीस्तीय व्यक्ति अपनी पत्नी को लेकर ख्रीस्तीय मिशनरियों द्वारा संचालित एक अस्पताल गया। उसकी पत्नी गंभीर रूप से बीमार थी। इसलिए वह बहुत चिंतित और बेचैन था। उसने वहाँ एक प्रार्थनालय देखा। उसने सोचा कि मन को शान्त करने के लिए थोडी देर प्रार्थनालय में बैठ जाता हूँ। उसने प्रार्थनालय में प्रवेश किया। उसने क्रूसित प्रभु की मूर्ति की ओर देखा और सोचने लगा कि यह तो मुझ से भी ज़्यादा परेशान दिख रहा है, यह मेरी मदद कैसे कर सकता है? परन्तु, कुछ ही क्षण में उसकी सोच बदल गयी। उसे लगा कि यह मुझ से भी ज़्यादा परेशान है, इसने मुझ से भी ज़्यादा दुख-दर्द का अनुभव किया। इसलिए यह मेरी परेशानी को आसानी से समझेगा, यह मेरे दुख-दर्द को ठीक से जानता है। फिर वह जोर-जोर से चिल्ला-चिल्ला कर अपनी समस्याओं को क्रूसित प्रभु के सामने रखने लगा। उसे एक प्रकार की शांति महसूस हुयी। उसे लगा कि उसका बोझ हलका हो गया।

पवित्र वचन कहता है, “हमारे प्रधानयाजक हमारी दुर्बलताओं में हम से सहानुभूति रख सकते हैं, क्योंकि पाप के अतिरिक्त अन्य सभी बातों में उनकी परीक्षा हमारी ही तरह ली गयी है। इसलिए हम भरोसे के साथ अनुग्रह के सिंहासन के पास जायें, जिससे हमें दया मिले और हम वह कृपा प्राप्त करें, जो हमारी आवश्यकताओं में हमारी सहायता करेगी।” (इब्रानियों 4:15-16)

यह सच है कि इतिहास में प्रभु येसु के समान किसी ने इतना दुख-दर्द नहीं सहा। कई धर्मों के देवी-देवताएं शारीरिक रीति से ही बहुत शक्तिशाली दिखते हैं। किसी के कई हाथ होते हैं, किसी के कई सिर और कई देवताओं के हाथों में भाले या तलवार जैसे हथियार भी होते हैं। अगर कोई वर्तमान युग में देवी-देवताओं की कल्पना करता है तो वे शायद ए.के-47 राइफल लेकर खडे होते नजर आयेंगे। यह सच नहीं है कि हमारे प्रभु ईश्वर के पास कोई अस्त्र-शस्त्र नहीं हैं। उनके पास एक अन्य प्रकार के अस्त्र शस्त्र हैं। हमारे प्रभु येसु ख्रीस्त के अस्त्र-शस्त्र आध्यात्मिक जीवन के अस्त्र-शस्त्र होते हैं। वे हमारे पास प्यार, दया और अनुकम्पा लेकर आते हैं। संत पौलुस हमें बताते हैं कि प्रभु येसु के अनुयायियों को किस प्रकार के अस्त्र-शस्त्र धारण करना चाहिए। “आप ईश्वर के अस्त्र-शस्त्र धारण करें, जिससे आप दुर्दिन में शत्रु का सामना करने में समर्थ हों और अन्त तक अपना कर्तव्य पूरा कर विजय प्राप्त करें। आप सत्य का कमरबन्द कस कर, धार्मिकता का कवच धारण कर और शान्ति-सुसमाचार के उत्साह के जूते पहन कर खड़े हों। साथ ही विश्वास की ढाल धारण किये रहें। उस से आप दुष्ट के सब अग्निमय बाण बुझा सकेंगे। इसके अतिरिक्त मुक्ति का टोप पहन लें और आत्मा की तलवार - अर्थात् ईश्वर का वचन - ग्रहण करें।” (एफेसियों 6:13-17)

क्रूस पर टंगे प्रभु येसु हमारे लिए केवल एक आदर्श नहीं हैं। वह हमारे ईश्वर है जो हमारे सामने हमारे अपने जीवन के रहस्यों को प्रकट करते हैं। जो जीवन हमने उनसे पाया है, उस जीवन को हमें किस प्रकार निभाना चाहिए – यह भी प्रभु हमें बताते हैं। क्रूस विश्वासियों के दैनिक जीवन का अभिन्न अंग है। इसी कारण प्रभु ने अपने शिष्यों से अपने प्रतिदिन के क्रूस उठा कर उनके पीछे चलने को कहा है (देखिए लूकस 9:23)। क्रूस हमारी मुक्ति का मार्ग है। प्रवक्ता ग्रन्थ, अध्याय 4 इस बात पर प्रकाश डालता है कि ईश्वर की प्रज्ञा की खोज में निकलने वालों के साथ क्या होता है। ईश्वर उन्हें प्यार करते हैं, उन्हें आशीर्वाद और सुरक्षा प्रदान करते हैं। लेकिन यह सब प्रदान करने की प्रक्रिया उतनी सरल नहीं है। पवित्र वचन कहता है, “प्रारम्भ में प्रज्ञा उसे टेढ़े-मेढ़े रास्ते पर ले चलेगी और उसकी परीक्षा लेगी। वह उस में भय तथा आतंक उत्पन्न करेगी। वह अपने अनुशासन से उसे उत्पीड़ित करेगी और तब तक अपने नियमों से उसकी परीक्षा करती रहेगी, जब तक वह उस पूर्णतया विश्वास नहीं करती। इसके बाद वह उसे सीधे मार्ग पर ले जा कर आनन्दित कर देगी और उस पर अपने रहस्य प्रकट करेगी। वह उसे ज्ञान और न्याय का विवेक प्रदान करेगी।” (प्रवक्ता 4:18-21) अगर हम इन वचनों पर ध्यान देंगे तो हमें पता चलेगा कि मुक्ति का मार्ग क्रूस का मार्ग है और क्रूस के बिना हमें मुक्ति नहीं मिल सकती। जो ईश्वर की प्रज्ञा की इस प्रक्रिया में सकारात्मक रवैया नहीं अपनायेगा, वह मुक्ति से वंचित रह जायेगा। इसलिए पवित्र वचन आगे कहता है, “किन्तु यदि वह भटक जायेगा, तो वह उसका त्याग करेगी और उसे विनाश के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए छोड़ देगी” (प्रवक्ता 4:22)। यही प्रभु येसु की शिक्षा का सारांश भी है। प्रभु येसु कहते हैं, “सॅकरे द्वार से प्रवेश करो। चौड़ा है वह फाटक और विस्तृत है वह मार्ग, जो विनाश की ओर ले जाता है। उस पर चलने वालों की संख्या बड़ी है। किन्तु सॅकरा है वह द्वार और संकीर्ण है वह मार्ग, जो जीवन की ओर ले जाता है। जो उसे पाते हैं, उनकी संख्या थोड़ी है।” (मत्ती 7:13-14)

आईए, आज के दिन हम अपने क्रूस के लिए ईश्वर को धन्यवाद दें, क्योंकि वह हमारी मुक्ति का मार्ग है। हम पिता ईश्वर से निवेदन करें कि वे हमें अपने क्रूस को ढोने की शक्ति प्रदान करें।


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