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चक्र स - 32. पास्का का चौथा इतवार

प्रेरित चरित 13:14,43-52; प्रकाशना 7:9,14ब-17; योहन 10:27-30

फादर डेन्नीस तिग्गा


जब ईसा गलीलिया में घूम-घूमकर लोगों को उपदेश देते थे, विभिन्न चमत्कार करते थे, तो बहुत सारे लोग आश्चर्य में पड़ जाते थे और सब के मन में यही प्रश्न होता था कि यह कौन है? (मारकुस 4:41 लूकस 4:22) इस प्रकार का प्रश्न पिलातुस के मन में भी था इसलिए वह सत्य को जानना चाहता था (देखिए योहन18:38)। प्रभु येसु ने संत योहन के सुसमाचार के द्वारा अपने विषय में कई सारी बातें इस विषय में बताई है कि वे कौन हैं। वे कहते हैं, ’’जीवन की रोटी मैं हूँ’’, ‘‘संसार की ज्योति मैं हूँ’’, ‘‘पुनरूत्थान और जीवन मैं हूँ,’’ ’’मार्ग, सत्य और जीवन मैं हूँ,’’ ’’मैं दाखलता हूँ,’’ और ’’भला गडेरिया मैं हूँ,’’। आज का सुसमाचार हमें चरवाहा और भेड़ों के बीच के रिश्ते पर मनन चिंतन करने के लिए आह्वान करता है।

प्रभु येसु संत योहन के सुसमाचार 10:11 में कहते हैं कि भला गडेरिया मैं हूँ। भले गडेरिये के कुछ गुण होते हैं जैसे- भला गडेरिया अपनी भेड़ों के लिए अपने प्राण दे देता है, अपने भेड़ों को जानता है, भेड़ों को हरे मैदानों में बैठाता और शांत जल के पास ले जा कर उनमें नवजीवन का संचार करता है। भला चरवाहा एक भेड़ के भटक जाने पर निन्यानवे भेडों को छोड़ उस भटकी हुई भेड़ को खोजने जाता है। ये सब गुण हम प्रभु येसु के जीवन में पाते हैं। प्रभु येसु सचमुच में भले गडेरिये है जो अपनी भेड़ों के लिए अपने प्राण अर्पित करते है। वे भटकी हुई भेड़ की खोज में जाते है। प्रभु ने अपने जीवन के द्वारा यह सिद्ध किया कि वे सचमुच में भले गडेरिया है।

लेकिन आज का सुसमाचार भले गडेरिये के ऊपर नहीं परन्तु भली भेड़ के ऊपर है। आज हम सब के लिए बड़ा प्रश्न यह है कि प्रभु येसु तो सचमुच में भले गडेरिये हैं परंतु क्या हम उस भले गडेरिये की भली भेड़ें हैं। वे हम सभी भेड़ों को नाम से जानते हैं और सदा हमें अपने पास बुलाते हैं, पर क्या हम भली भेड़ के समान अपना जीवन व्यतीत करते हैं?

भली भेड़ या सच्ची भेड़ का चिन्ह क्या है? आज का सुसमाचार के अनुसार सच्ची भेड़ भले चरवाहे की आवाज़ पहचानती है तथा उनका अनुसरण करती है। प्रभु येसु या ईश्वर की आवाज़ पहचानना एक सच्ची भेड़ की अहम निशानी है। बाइबिल में हम देखते हैं कि कौन-कौन ईश्वर की आवाज़ पहचानता एवं सुनता था।

बाइबिल में हम नूह, इब्राहिम, इसहाक, याकूब, युसूफ, मूसा, योशुआ, कई न्यायकर्ताओं, कई नबियों को जानते हैं जो ईश्वर की आवाज़ सुनते और उनका अनुसरण करते थे। हम अपने जीवन में किसकी आवाज़ बहुत अच्छी से पहचानते है? जाहिर सी बात है कि हम अपने जीवन में अपने माता-पिता या परिवार वालों की आवाज़ अच्छे से पहचानते हैं। वह किस लिए? क्योंकि हम अपना ज्यादातार समय अपने परिवार के साथ बिताते हैं तथा उनकी आवाज़ को सुनते रहते हैं। इसी तरह हम किसी व्यक्ति को पंसद करते हैं तथा रोजाना उससे बात करते हैं - आमने सामने या मोबाईल पर - तब हम उसकी आवाज़ को पहचानने लगेंगे। अर्थात् जितना ज्यादा सम्पर्क हम किसी भी व्यक्ति से बनाते हैं - चाहे वह परिवार का हो या परिवार से दूर का हो - उतना ज्यादा हम उसकी आवाज़ को पहचानते हैं। इसलिए अगर वे किसी अन्जान नम्बर से फोन करेंगे तब भी हम उनकी आवाज़ पहचान जायेंगें। आज के इस आधुनिक युग में क्या हम येसु की आवाज़ पहचानते हैं? येसु की आवाज़ कौन पहचान पायेगा? वही जो येसु के साथ ज्यादा सम्पर्क में रहा है। येसु के साथ सम्पर्क में रहने का तात्पर्य है उसके साथ प्रार्थना में जुडे रहना, रोजाना प्रार्थना करना, बाइबिल पठन करना, वचनों पर मनन चिंतन करना, यूखारिस्त में भाग लेना। इन सबके द्वारा हम येसु के सम्पर्क में बने रहते हैं। और जितना ज्यादा हम उनसे जुड़े रहेंगे उतने स्पष्ट रूप से हम येसु की आवाज़ सुन पायेंगे और पहचान पायेंगे।

येसु की आवाज़ सुनना ही काफी नहीं परन्तु उनका अनुसरण करना ही हमें स्च्ची भेड़ होने का दर्जा देता है। हम प्रभु की आवाज़ बाइबिल से, पवित्र आत्मा से, अभिषिक्त पुरोहितों से, प्रार्थनामय इंसान से सुन सकते हैं। परंतु उनका पालन करना या न करना हम पर निर्भर करता हैं। प्रभु कहते हैं कि जो मेरा अनुसरण करना चाहता है वह आत्मत्याग करे, अपना क्रूस उठायें और मेरे पीछे हो ले। प्रभु की वाणी के अनुसार चलने के लिए हमें सर्वप्रथम आत्मत्याग की जरूरत है। जब तक हम अपने शरीर की इच्छाओं का दमन नहीं करेंगे तब तक हम आत्मा के अनुसार नही चल पायेंगे क्योंकि ‘‘आत्मा और शरीर एक दूसरे के विरोधी है’’ (गलातियों 5:17)। इसलिए हमें हमेशा प्रार्थना करते रहना चाहिए क्योंकि आत्मा तो तत्पर है परन्तु शरीर दुर्बल है (देखिए मारकुस 14:38)। हम सब प्रभु की सच्ची भेड़ बनने के लिए बुलाये गये हैं। प्रभु कहते हैं, ‘‘मैं द्वार के सामने खड़ा हो कर खटखटाता हूँ। यदि कोई मेरी वाणी सुन कर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके यहाँ आ कर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ’’ (प्रकाशना 3:20)। आज हम सब को उनकी आवाज़ पहचानते हुए उनका अनुसरण करने की जरूरत हैं जिससे हम उनके सच्चे शिष्य, सच्ची भेड़ सिद्ध हो जाएँ। ’’यदि तुम मेरी शिक्षा पर दृढ़ रहोगे, तो सचमुच मेरे शिष्य सिद्ध होगे’’ (योहन 8:31)


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