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चक्र स - पास्का का पाँचवाँ इतवार

प्रेरित चरित 14:21.27; प्रकाशना 21:1-5अ; योहन 13:31-33अ,34-35

फादर डेन्नीस तिग्गा


प्रभु येसु कहते हैं ‘‘पूर्ण बनो जैसे कि तुम्हारा स्वर्गिक पिता पूर्ण है’’ (मत्ती 5:48)। इस संसार में मनुष्य कितना ही कमजोर क्यों न हो वह ईश्वर के समान पूर्ण बनने के लिए बुलाया गया है। पूर्ण बनना अर्थात् प्रभु ईश्वर के समान बनना है। पिता ईश्वर और पुत्र येसु एक है- (देखिए योहन 10:30)। प्रभु येसु कहते हैं जिसने मुझको देखा है, उसने पिता को देखा है (योहन 14:9)। अर्थात् येसु के समान बनना, ईश्वर के समान बनना है। प्रभु येसु के कई सारे गुण हैं जैसे प्रेम, क्षमा, संवेदनशीलता, दया आदि।

आज हम उनके उस गुण पर मनन चिंतन करेंगे जिसके कारण उन्होंने अपने प्राण दूसरों की खातिर कुर्बान कर दिया, जिसके कारण उन्होंने अपने जीवन में दर्दनाक, भयानक और असहनीय दुख उठाया, जिसके कारण उन्होंने अपने मिशन को कभी भी नष्ट नहीं होने दिया परन्तु उसे पूर्णता तक पहुँचाया। यह सब हुआ उनके एक गुण के कारण और वह है - उनकी आज्ञाकारिता, ‘‘उन्होंने मनुष्य का रूप धारण करने का बाद मरण तक, हाँ क्रूस पर मरण तक, आज्ञाकारी बन कर अपने को और भी दीन हीन बना लिया’’ (फिलिप्पियों 2:7-8)। येसु ने सदा अपने जीवन में प्रभु ईश्वर की इच्छाओं एव्मआज्ञाओं का पालन किया। उनका इस संसार में आने का मकसद ही पिता ईश्वर की इच्छा को पूरी करना था, ‘‘जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्छा पर चलना और उसका कार्य पूरा करना, यही मेरा भोजन है।’’ (योहन 4:34) उनकी आज्ञाकारिता के कारण ही उन्होंने गेथसेमनी बारी में अपना आखिरी चुनाव प्रभु की इच्छा को पूरी करना महत्वपूर्ण समझा। ‘‘मेरी नहीं, बल्कि तेरी ही इच्छा पूरी हो।’’ (मारकुस 14:36)।

अंतिम ब्यारी में प्रभु ने विदा होने से पूर्व एक नयी आज्ञा दी। आज प्रभु हमें अपनी इच्छा नहीं अपितु एक नयी आज्ञा देते है, ‘‘मै तुम लोगों को एक नयी आज्ञा देता हूँ - तुम एक दूसरे को प्यार करो। जैसे मैंने तुम्हें प्यार किया, वैसे ही तुम भी एक दूसरे को प्यार करो।’’ (योहन 13:34)। यह आज्ञा है प्रेम करने की आज्ञा, किसी और के प्रेम की तरह नहीं परन्तु जिस प्रकार प्रभु येसु ने प्रेम किया, ठीक उसी प्रकार प्रेम करने की आज्ञा। प्रभु येसु के प्रेम में पिता ईश्वर का प्रेम झलकता है। जिस प्रकार “ईश्वर ने संसार से इतना प्यार किया कि उसने उसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया।’’ (योहन 3:16), ठीक उसी प्रकार प्रभु येसु ने हम सब से इतना प्यार किया कि उसने हम सब के लिए अपने प्राण दे दिया। ‘‘इस से बड़ा प्रेम किसी का नहीं कि कोई अपने मित्रों के लिए अपने प्राण अर्पित कर दे।’’ (योहन 15:13)। ‘‘मैं भेड़ों के लिए अपना जीवन अर्पित करता हूँ।’’(योहन 10:15)

प्रभु का प्रेम क्षमा से भरा प्रेम है। उन्होंने व्यभिचार में पकडी गयी स्त्री से कहा, ‘‘मैं भी तुम्हें दण्ड नहीं दूँगा। जाओ और अब से फिर पाप नहीं करना’’(योहन 8:11)। उनका प्रेम पापियों के मन फिराव के लिए क्षमा से परिपूर्ण प्रेम है। उन्होंने जकेयुस को क्षमा करते हुए उसके साथ भोजन किया – इस में उनका प्रेम पापियों नाकेदारों के प्रति प्रकट होता है। ‘‘नीरोगियों को नहीं परन्तु रोगियों की वैद्य की जरूरत होती है’’ (लूकस 5:32)।

प्रभु का प्रेम असीमित और पूर्ण प्रेम है, ‘‘तुम लोगों ने सुना है कि कहा गया है- अपने पड़ोसी से प्रेम करो और अपने बैरी से बैर; परन्तु मैं तुम से कहता हूँ- अपने शत्रुओं से प्रेम करो ....यदि तुम उन्हीं से प्रेम करते हो, जो तुम से प्रेम करते हैं, तो पुरस्कार का दावा कैस कर सकते हो?’’(मत्ती 5:44,46)। उन्होंने अपना प्रेम सब के लिए प्रकट किया है चाहे वे बड़े हो या बच्चे या स्त्रियाँ; धर्मी हो या पापी; यहूदी हो या गैर-यहूदी, दोस्त हो या दुश्मन; अपना हो या पराया; उनका भला चाहने वाला हो या बुरा चाहने वाला। इस प्रकार उनका प्रेम असीमित और पूर्ण है।

प्रभु का प्रेम संवेदनशील प्रेम है, ‘‘लोगों को देख कर ईसा को उन पर तरस आया, क्योंकि वे बिना चरवाहे की भेड़ों की तरह थके-माँदे पड़े हुए थे’’ (मत्ती 9:36)। ‘‘निकट पहुँचने पर ईसा ने शहर को देखा; वे उस पर रो पडे़’’(लूकस 19:41)। ‘‘ईसा, उसे और उसके साथ आये हुए यहूदियों को रोते देख कर, बहुत व्याकुल हो उठे....कब्र के पास पहुँचने पर ईसा फिर बहुत व्याकुल हो उठे’’(योहन 11:33,38)।

प्रभु येसु का प्रेम सच्चा प्रेम है जिसकी व्याख्या संत पौलुस ने अपने पत्र में की है, ‘‘प्रेम सहनशील और दयालु है। प्रेम न तो ईर्ष्या करता है, न डींग मारता, न घमण्ड करता है। प्रेम अशोभनीय व्यवहार नहीं करता। वह अपना स्वार्थ नहीं खोजता। प्रेम न तो झुँझलाता है और न बुराई का लेखा रखता है। वह दूसरों के पाप से नहीं, बल्कि उनके सदाचरण से प्रसन्न होता है। वह सब कुछ ढाँक देता है, सब कुछ पर विश्वास करता है, सब कुछ की आशा करता और सब कुछ सह लेता है।’’(1कुरि0 13:4-7)

इस प्रकार का प्रेम प्रभु येसु ने इस संसार से, हम प्रत्येक से किया है और उनकी आज्ञा है कि हम सब भी उनके समान एक दूसरे से प्यार करें - उनके समान क्षमा पूर्ण प्रेम, असीमित और पूर्ण प्रेम, संवेदनशील प्रेम और सच्चा प्रेम। इस प्रकार के प्रेम के बारे में सुनकर हमारे मन में शायद यह विचार आयेगा कि इस प्रकार का प्रेम असंभव है। परन्तु प्रभु येसु हमारे लिए उदाहरण छोड़ गये है और उन्होंने अपने जीवन में इसे पूर्ण कर हमें बताया है कि यह सम्भव है। ‘‘इसलिए तो आप बुलाये गये हैं, क्योंकि मसीह ने आप लोगों के लिए दुःख भोगा और आप को उदाहरण दिया, जिससे आप उनका अनुसरण करें (1 पेत्रुस 2:21)।

आइए हम पूर्ण बनें जैसे कि हमारा स्वर्गिक पिता पूर्ण है और उनके शिष्य सिद्ध हो जायें।


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