Smiley face

चक्र स - 41. वर्ष का दसवाँ इतवार

1 राजाओं 17:17-24; गलातियों 1:11-19; लूकस 7:11-17

(फादर आन्टनीसामी)


कहा जाता है, गम बाँटने से कम हो जाता है। यानी दुख बाँटने से मन का बोझ हल्का हो जाता है। इसके बिलकुल विपरीत खुशी बाँटने से दुगनी हो जाती है। हम चाहते हैं कि सभी सुखी रहें, किसी को कोई दुख न हो। लेकिन आज का मनुष्य अपने जीवन स्तर को बदलने में इस कदर व्यस्त हो चुका है कि इस आधुनिक समाज में दुखों को बाँटने वाले व्यक्ति को पाना बहुत कठिन है। मनुष्य के मन में बडे़-बडे़ संघर्ष चल रहे हैं। आज का मनुष्य दिखावे और आडम्बर की जिंदगी जी रहा है। आज कौन अपनी भलाई के साथ-साथ दूसरों की भलाई की कामना करता है? आज इन्सानियत तहज़ीब का दरवाजा खटखटा रही है। इन्सानियत दम तोड रहीं है। हर व्यक्ति दिन रात सिर्फ अपनी इच्छाओं की पूर्ति में व्यस्त है। आपा-धापी, भाग-दौड, प्रतिस्पर्धा के संघर्षशील जीवन के आज के युग को तकनीकी एवं कम्प्यूटर युग कहते हैं। आज मनुष्य अल्प समय में ही अपनी मंजिल पाना चाहता है। वह उन्नति के पथ पर बढ़ते हुए मानव धर्म से कितना भटक गया है। इसलिये उसके पास दूसरों के लिये समय नहीं है। दूसरों की चिंता करने वाला कोई नहीं है, यहाँ तक कि अपने परिवार के लिये, पड़ोसी के लिये भी समय नहीं है। परिणामस्वरूप मनुष्य स्वार्थी बनते जा रहा है।

इस संदर्भ में मुझे एक वास्तविक घटना की याद आती है। एक बार बाम्बे हाइकोर्ट में एक केस चल रहा था। एक वकील अपने मुलज़िम को निर्दोष एवं बेगुनाह साबित करने के लिये वाद विवाद कर रहा था। गरमा गरम विवाद चल रहा था। इसी बीच उस वकील को एक तार आया। अपनी बहस को कुछ क्षण रोक कर वह उस तार को पढ़ता है और पढ़ने के बाद, उसे उसी तरह मोड़कर अपनी जेब में रख लेता है और फिर से केस में उलझ जाता है। लगभग दो घंटंे तक केस चलता है। अन्त में उनके मुलज़िम को निर्दोष एवं निरपराधी होने का फैसला सुनाया जता है।

सभी लोगों के जाने के बाद उनके सभी साथी वकीलों ने उसे शबाशी दीं। उनमें से एक ने उससे पूछा ”भई साहब, आपको एक तार आया था न? सब कुछ ठीक तो है न“ ? वकील ने जवाब दिया, ”वह मेरी पत्नी के बारे में था, जिसमें लिखा था, ’’आपकी पत्नी का देहान्त हो चुका है जल्दी घर आ जाओ“। यह सुनकर सब स्तब्ध रह गये। उनमें से एक वकील बोला, ’’भाई साहब, क्या पत्नी से भी बढ़कर यह केस महत्वपूर्ण था? आपको तो केस छोड़कर, तुरन्त घर चले जाना था।’’ जीवन का आनंद कर्म है, कर्म करते समय मनुष्य अपने दुखों को भूल जाता है। इस बात के जवाब में उसने मुस्कुराते हुए कहा ”दोस्त मेरी पत्नी पुनः जीवित हाने वाली तो नहीं है। हाँ, यदि मैं इस केस पर आज विवाद नहीं करता तो मेरे मुलज़िम की जान चली जाती। इसीलिये उसकी जान बचाना मेरा परम धर्म एवं कर्त्तव्य था।“

क्या आप जानना चाहते हैं कि वह वकील कौन था? वह था हमारे देश के लौह पुरूष सरदार वल्ल्भ भाई पटेल जो अपनी पत्नी, परिवार की चिन्ता न करते हुए उस बेगुनाह निर्दोष व्यक्ति की जान बचाने में जुटे थे। उन्होंने कई चुनौतियों का सामना किया। जिनका व्यवहार सहानुभूति और प्रेम से भरा होता है, वे बडे़ से बड़ा बलिदान करने को तैयार रहते हैं। उसी प्रकार हमारे कर्त्तव्य, मन के विचार और संकल्प जीवन में कण कण पर अमिट छाप छोड़ देते हैं। विचारों की दृढ़ता से ही कर्मठता आती है।

आज के पहले पाढ़ में हम देखते हैं कि भलाई करते करते जब नबी एलियाह सरेप्ता की विधवा के पास गये और जब वह विधवा नबी से अपने मृत पुत्र के जीवन लौटाने की याचना करती है तो नबी तरस खाकर ईश्वर से अनुनय विनय कर उस लड़के की जान लौटा देते हैं। इसी प्रकार आज के सुसमाचार में प्रभु येसु प्रकट होते हैं जो सदैव मानव जाति के लिये अपना सारा जीवन समर्पित करते हैं। वे हर एक व्यक्ति को आनंद जीवन, खुशी और शान्ति देने के लिये हर प्रकार का जोखिम उठाने के लिये तत्पर हैं। उन्हें फ़रीसियों तथा सदूकियों से कई प्रकार की चुनौतियों एवं परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है, लेकिन वे अपना मुक्ति-कार्य जारी रखते हैं। येसु ने एक विधवा के दुख को अत्यन्त गहराई से पहचानकर उसके मृत पुत्र को नवजीवन दिया। उस दुखिया माँ की मदद करने वाला, उसके सुख-दुख में सम्मिलित होने वाला एकमात्र व्यक्ति उसका बेटा था। उसे नवजीवन देकर प्रभु उस विधवा की जिंदगी में पुनः खुशी लौटा देते हैं। इस चमत्कार से यह ज्ञात होता है कि उस अभागी महिला के प्रति उनकी करुणा और दया कितनी थी।

प्रभु हमें दया और परोपकार का सबक सिखाते हैं। आज का वर्तमान युग भौतिक युग के नाम से प्रसिद्व है। आधुनिक समाज में मनुष्य क्षणिक सुख आनंद के पीछे भाग रहा है। झूठी प्रतिष्ठा के लिये प्राणों की बाजी लगा रहा है। समाज में हर व्यक्ति प्रतिष्ठा, मान सम्मान, प्रसिद्वि पाने के लिये मदद और सेवा करते हैं। परन्तु ज़रूरतमंद, लाचार लोगों की सेवा करने के लिए कोई भी आगे नहीं आता है। क्या, हमारे भाई बहनों, पड़ोसियों की ज़रूरतो के प्रति हमारे दिल में ज़रा भी संवेदना है? आज, माता कलीसिया हम सबों से यही अपेक्षा करती है कि हम करुणा, दया, प्यार तथा सेवा की भावना के साथ हमारे भाई बहनों के उद्वार के लिये अपना जीवन समर्पित करें।


Copyright © www.jayesu.com
Praise the Lord!