Smiley face

चक्र स - 44. वर्ष का तेरहवाँ इतवार

1 राजाओं 19:16ब,19-21; गलातियों 5:1,13-18; लूकस 9:51-62

(फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांत)


आज हम बुलाहट के ऊपर मनन चिंतन करेंगे. पुराने विधान में राजाओं के ग्रन्थ से हम सुनते है कि किस प्रकार नबी एलिशा अपना सर्वस्व त्याग कर सेवकाई करने के लिए आगे आते है. व सुसमाचार में प्रभु येसु इसी बात पर जोर देते हुए कहते है की यदि हम दुनियादारी को प्रभु से ज्यादा महत्व देंगे तो हम उनके शिष्य कभी नहीं बन सकते।

पहले पाठ और सुसमाचार के प्रसंगों में रोचक संबंध है। सुसमाचार में प्रभु येसु उस व्यक्ति को डाँटते हैं जो प्रभु येसु के पीछे जाने के पहले अपने माँ-बाप से विदा लेना चाहता है- एक बार हल का मूठ पकड़ने के बाद जो पीछे मुड़कर देखता है वह स्वर्ग राज्य के योग्य नहीं है। परन्तु राजाओं के पहले ग्रंथ में अपना अनुसरण करने के लिये नबी एलीयाह, एलीशा को खेत और बैल को त्यागने के पूर्व उसके पिता से विदा लेने की इजाजत देते हैं।

इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि नये विधान के अनुयायी पुराने विधान की मान्याताओं को नज़रअंदाज करते हों। नबी एलीशा नये विधान के प्रभु येसु के शिष्यों से कम समर्पित नहीं थे। उनके पास बारह जोडी़ बैल थे, यानि वह धनी व्यक्ति था और क्षण भर में उन्हें त्यागने का निर्णय कर लेता है।

नबी एलियाह ने एलीशा के कंधों पर अपनी चादर डालकर अपना उद्देश्य प्रकट कर दिया और एलीशा को पिता से विदा लेने की इजाजत देने से उस उदे्श्य में न कुछ कम हुआ और न कुछ बढ़ा। पुराने विधान में इस प्रतीकात्मक कार्य का बहुत महत्व था। किसी व्यक्ति की चादर या वस्त्र के बारे में यह धारणा होती थी कि उसमें उनकी आत्मा का वास है। एलीशा के ऊपर अपना वस्त्र डालने का तात्पर्य स्पष्ट था कि नबी एलियाह उसे अपना उत्तराधिकारी बनाकर अपना अधिकार उसे सौंप रहे थे।

परन्तु प्रभु येसु ने अपने किसी भी शिष्य के साथ ऐसा नहीं किया। उन्होंने किसी को भी अपना उत्तराधिकारी नहीं बनाया। उनके सभी शिष्य, यहाँ तक संत पेत्रुस भी उनका अनुयायी मात्र ही बना रहा। कोई भी मसीह का स्थान नहीं ले सकता। आज का सुसमाचार बताता है कि मसीह स्वर्ग में आरोहित कर लिये गये परन्तु उन्होंने हमें नहीं छोड़ा है। मसीह कलीसिया में वास करते हैं और कलीसिया के द्वारा संसार में कार्य करते हैं।

“लोमड़ियों की अपनी माँदें हैं और पक्षियों के अपने घोंसले।“ बाइबिल के विद्वानोें का यह मानना है कि लोमड़ी का संकेत राजा हेरोद और उसके अनुयायियों से है और पक्षी रोमियों से संबंधित हो सकता है। इसलिये प्रभु येसु के पीछे जाने का अर्थ है सिर छिपाने की जगह भी नहीं होना- यानि हेरोद या रोमी साम्राज्य के मित्रों की तरह, प्रभु के अनुयायियों के जीवन में सुख-सुविधाओं और आराम के लिये स्थान नहीं है।

उस व्यक्ति द्वारा यह कहना कि मुझे अपने पिताजी को दफनाने दीजिए का मतलब यह नहीं कि उस व्यक्ति के पिता की मृत्यु हो गई थी। यदि ऐसा हुआ होता तो यह सम्भव नहीं है कि वह व्यक्ति प्रभु येसु से बातचीत करने के लिए वहाँ मौजूद होता। उस समय वह व्यक्ति मृत पिता की देह को दफनाने की तैयारी और आवश्यक रीति-रिवाज सम्पन्न करने में व्यस्त होता, न कि मार्ग में खड़ा रहकर बातों में समय बिताता। वास्तव में वह व्यक्ति अपने बूढ़े पिता की मृत्यु तक साथ रहकर अपने पारिवारिक दायित्व को पूर्ण करना चाहता था। जो अपने पिता को अलविदा कहना चाहता है, उस व्यक्ति का मनोभाव स्पष्ट है कि वह अपने पिता की आज्ञा के बिना अपना घर नहीं छोड़ेगा। उसके जीवन में प्रथम स्थान अपने पिताजी का है न कि प्रभु येसु का।

प्रभु येसु तुरन्त इन दोनों चरित्रों पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं कि इस प्रकार के लोग ईश्वर के राज्य की अपेक्षा सांसारिक वस्तुओं को ज्यादा महत्व देते हैं। प्रभु येसु ने उनको समझाया कि तुम्हारा प्रथम कत्र्तव्य ईश्वर के राज्य का प्रचार करना है। संसार में ऐसा कार्य कौन कर सकता है? कौन अपने बूढे माता-पिता या परिवार के प्रति अपने दायित्वों को छोड़कर सुसमाचार के प्रचार के लिये जा सकता है?

परन्तु प्रभु येसु के कठोर शब्द हमें हतोत्साहित करने के लिये नहीं है। प्रभु ने कठोरता पूर्वक इन शब्दों को इसलिये कहा कि हम उन पर चिंतन और मनन कर सकें। ये कठोर शब्द हमें मजबूर करते हैं कि हम अपने अंतरतम् को परखें और स्वर्ग राज्य के मार्ग में आने वाली चुनौतियों पर विजय प्राप्त करें.। जीवन में चुनौतियाँ और प्रलोभन आवश्यक हैं, उससे आज तक कोई नहीं बच पाया है। इन चुनौतियों के बीच जब हम अपने को दो राहों के बीच पाते हैं, उस समय प्रभु येसु हमसे ये चाहते हैं कि हम वह मार्ग चुनें जिस पर बहुत कम लोग जाते हैं। इसलिये प्रभु येसु कठोर शब्दों का इस्तेमाल कर हमें दृढ़तापूर्वक निर्णय लेने में सक्षम बना रहे हैं।

सुसमाचार के इस पाठ में तीन प्रकार के लोग हैं। पहला वह जो बढ़-चढ़ कर येसु के पीछे जाने का वादा करते हैं। प्रथम दृष्टि में ही उनकी बातें सतही और असत्य प्रतीत होती हैं। इसलिये प्रभु ने उनके प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया और लोमड़ियों और पक्षियों की कहावत का प्रयोग किया। दूसरे दो व्यक्तियों को प्रभु ने स्वयं अपने पीछे चलने को कहा। ये लोग सम्भवतः उस मार्ग से अनेकों बार गुजरते होंगे, परन्तु एक दिन प्रभु से उनकी मुलाकात हुई जिन्होंने उन्हें अपना अनुसरण करने के लिये बुलाया। परन्तु वे इस बुलाहट के लिये तैयार नहीं थे और अनेक प्रकार के बहानें बनाकर प्रभु के पीछे जाने से इंकार करते है। यही आज का महत्वपूर्ण संदेश है कि हम अपने आपको पूर्ण रूप से तैयार रखें क्योंकि हमें भी अचानक प्रभु का अनुसरण करने की पुकार को स्वीकार या अस्वीकार करने की चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।

हम अपने जीवन मार्ग में सतर्कता पूर्वक आगे बढें, प्रभु उस मार्ग पर जरूर आयेंगे और साधारण, परन्तु चुनौतीपूर्ण शब्द कहेंगे- मेरे पीछे चले आओ। क्या हम मत्ती की तरह उठकर उनके पीछे होने के लिए तैयार हैं?


Copyright © www.jayesu.com
Praise the Lord!