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चक्र स -50. वर्ष का उन्नीसवाँ इतवार

प्रज्ञा 18:6-9; इब्रानियों 11:1-2,18-19; या 11:1-2, 8-12; लूकस 12: 32-48 या 12:35-40

(फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांत)


आज के वचनों द्वारा प्रभु हमें विश्वास में मजबूत बनने, उनसे मिलने का बेसब्री इंतजार करने व हमेशा उनके लिए तैयार रहने का उपदेश देते हैं ।

आज का वचन अब्राहम के विश्वास का हवाला देते हुए हमें उनके समान विश्वास बनने को कहता है। उनके सामने कई प्रकार की कठोर परीक्षायें आयी पर वह नहीं डिगा, नहीं डगमगाया। ईश्वर ने अब्राहम के जिस बेटे से असंख्य संतानें उत्पन्न करने का वादा किया था उसे ही बली चढाने का आदेश दिया। इस विडम्बना भरी परिस्थिति में भी उसने प्रभु पर भरोसा किया उन्हें मालुम था कि ‘‘ईश्वर मृतकों को भी जिला सकता है’’ (इब्रानियों 11:19)। उसे पता था कि ईश्वर असम्भव को भी सम्भव कर सकता है। इसे कहते हैं विश्वास। आज के पहले पाठ में विश्वास की बहुत ही सुन्दर परिभाषा दी गई है। ‘‘विश्वास उन बातों की स्थिर प्रतीक्षा है, जिनकी हम आषा करते हैं और उन वस्तुओं के अस्तित्व के विषय में दृढ़ धारणा है, जिन्हें हम नहीं देखते।’’

एक बार एक घर में आग लग गई। पूरा घर आग की लपटों से घिरा हुआ था। ऊपरी मंजिल पर एक नन्हीं बालिका सो रही थी। उसके पिता जी नीचे थे। वे उसे नीचे से पुकारते हैं- “बेटी खिडकी से नीचे कूद जाओ।“ ऊपर से जवाब आता है, “पिताजी मैं आपको नहीं देख पा रही हूँ।“ पिताजी कहते हैं - “बेटी कूद जाओ, नहीं डरो। भरोसा रखो, मैं यहाँ हूँ।“ बच्ची ऊपर से कूद पडती है और पिता उसे अपनी बाहों में समेट लेते हैं। इसे कहते हैं भरोसा, यही है विश्वास। जब हम विश्वास करते हैं, हम अनिष्चिता के अंधकार में कूद पडते हैं। क्या होगा क्या नहीं, कुछ नहीं पता, बस इतना पता रहता है कि मेरा प्रभु मेरे साथ है वह मेरा नुकसान होने नहीं देगा। वचन कहता है - ‘‘उसकी लाठी उसके व उसके डंडे पर मुझे भरोसा है’’ (स्तोत्र 23:4)। वह तुम्हारे पैरों को फिसलने नहीं देगा . . . प्रभु ही तुम्हारा रक्षक है वह छाया की तरह तुम्हारे दाहिने रहता है’’ (स्तोत्र 121:2)। ‘‘तुमने सर्वोच्च इष्ष्वर को अपना शरणस्थान बनाया है। तुम्हारा कोई अनिष्ट नहीं होगा’’ (स्तात्र 91:9-10)।

इस दुनिया में हम ‘‘परदेषी एवं मुसाफिरों के समान’’ हैं (इब्रानियों 11:13)। ‘‘हम हमारा स्वदेश खोज रहे हैं (इब्रानियों 11:14)। हमारा सारा जीवन हमारे वास्तविक निवास, हमारे वास्तविक घर की ओर एक यात्रा है। हर विश्वासी को अब्राहम की तरह अनजान राहों पर, खुदा पर भरोसा करते हुए इस यात्रा पर निकल पडना चाहिए। हम इस संसार में हमेशा के लिए डेरा नहीं डाल सकते, हमें चलते रहना है। हम इस जग में उस चिडिया के समान है जो कि एक सूखी डाली पर बैठी हुई है। डाली कभी भी टूट सकती है। पर चिडिया को उसकी चिंता नहीं, क्योंकि वह उडकर कहीं ओर जाने के लिए हमषा तैयार है। हमें भी वैसे ही हमेशा इस जग से उड जाने के लिए तैयार रहना चाहिए। एक बार संत डोन बोस्को गली में बच्चों के साथ फुटबाँल खेल रहे थे। किसी ने उनसे पूछा यदि तुम्हें ये पता चले कि तुम कुछ ही क्षणों बाद मर जाने वाले हो तो तुम क्या करोगे? उन्होंने बडी शालीनता से जवाब दिया - ‘‘मैं बच्चों के साथ फुटबाँल खेलता रहूँगा।’’ उन्हें कोई परवाह नहीं। क्योंकि वे उस चिडिया की तरह कभी भी उड जाने के लिए तैयार थे।

संतगण ऐसे ही होते हैं। वे प्रभु से अपने मिलन को बेताब रहते हैं। वे प्रभु के बुलावे के इंतजार में रहते हैं कि कब उनकी आत्मा का समागम उस परमात्मा में हो जाये। स्तोत्र ग्रंथ 42:2-3 में प्रभु भक्त कहता है - ‘‘ईश्वर! जैसे हरिणी जलधारा के लिए तरसती है, वैसी मेरी आत्मा तेरे लिए तरसती है। मेरी आत्मा ईश्वर की जीवन्त ईश्वर की प्यासी है। मैं कब जाकर ईश्वर के दर्शन करूँगा।’’ तथा स्तोत्र 63:2 में वचन कहता है - ‘‘ईश्वर तू ही मेरा ईश्वर है! मैं तुझे ढूँढता रहता हूँ। मेरी आत्मा तेरे लिए प्यासी है। जल के लिए सूखी संतप्त भूमि की तरह, मैं तेरे दर्शनों के लिए तरसता रहता हूँ।’’ प्रभु येसु आज के सुसमाचार में हम से कहते हैं ‘‘तुम लोग उन लोगों की तरह बन जाओ जो अपने स्वामी की राह देखते रहते हैं कि वह बारात से कब लौटेगा, ताकि जब स्वामी आकर द्वार खटखटायगा तो तुरन्त ही उसके लिए द्वार खोल दें’’ (लूकस 12:36)। हमें प्रभु का इंतजार करते रहना है। यहूदी लोगों ने कई सालों तक मसीहा के आने का इंतजार किया। प्रभु येसु ने स्वयं अपना सार्वजनिक जीवन प्रारम्भ करने व लोगों को स्वर्गराज्य के रहस्यों की शिक्षा देने की शुरूआत करने के लिए 30 सालों तक इंतजार किया। पुनरूत्थित प्रभु ने अपने शिष्यों को येरूसालेम में तब तक इंतजार करने को कहा जब तक कि वे पवित्र आत्मा की शक्ति से न भर जायें। (प्रे. च. 1:4)। इंतजार करने की एक अपनी एक अद्यात्मिकता है। प्रार्थना के द्वारा हम प्रभु को हमारे जीवन में आने के लिए इंतजार करते हैं। प्रभु के लिए इंतजार करके हम यह जाहिर करते हैं व स्वीकार करते हैं कि प्रभु के बिना हम कुछ नहीं कर सकते। हमें हमारे जीवन में उनकी बेहद जरूरत है। इसीलिए हम उनका इंतजार करते हैं। स्तोत्र ग्रंथ 130:5-6 में वचन कहता है - ‘‘मैं प्रभु की प्रतीक्षा करता हूँ। मेरी आत्मा उसकी प्रतिज्ञा पर भरोसा रखती है। भोर की प्रतीक्षा करने वाले पहरेदार से भी अधिक मेरी आत्मा प्रभु की राह देखती है।’’

हम इंतजार तभी कर सकते हैं जब हम तैयार हैं। यदि हमारे घर कोई मेहमान आने वाला हो और घर में तैयारियाँ पूरी न हुई हो तो हम यही सोचेंगे कि हमारा मेहमान अभी नहीं पहुंचे, थोडी देर बाद आये ताकि हम तैयारियाँ पूरी कर लें। प्रभु हम से आज के सुसमाचार में कहते हैं - ‘‘तुम. . . तैयार रहो, क्योंकि जिस घडी तुम उसके आने की नहीं सोचते, उसी समय मानव पुत्र आयेगा’’ (लूक 12:40)।

हमें विश्वास की जरूरत है। हमें दया, करूणा व प्रेम से संचालित विश्वास की जरूरत है जो हमें सच्चे प्रेम से प्रेरित कार्य करने के लिए सिखायेगा। हमें चट्टाने से भी मजबूत व अडिग विश्वास की जरूरत है जो आंधी, तुफान एवं बवंडर में भी विचलित नहीं होगा। हमें हिम्मतवान विश्वास की जरूरत है जो हमें बिना किसी झिझक के ईश्वर के लिए व आत्माओं की मुक्ति के लिए महान कार्य करने के लिए प्रेरित करे। हमें वह विश्वास चाहिए जो एक जलती मषाल के समान है, जो अंधकार की शक्तियों से लड सकता है, जो अपनी रोषनी से अज्ञानियों को सही राह दिखा सकता है व पापियों को प्रभु के उजाले में ला सकता है, जो कुनकुने हैं उन में विश्वास व प्रभु के प्रेम की ज्वाला प्रज्वल्लित कर सकता है, जो पाप में मर चुके हैं उन्हें प्रभु की मुक्ति की एक आशा किरण दिखा सकें तथा अपने मधुर व शक्तिशाली शब्दों से कठोर से भी कठोर दिल को पिघला सकें तथा शैतान का हर समय हिम्मत के साथ सामना कर सकें। जब हमें इस प्रकार का विश्वास मिल जाता है, तब हम सब प्रभु की उत्कंठा से राह देख सकते हैं। तब हम उसका इंतजार कर सकते हैं। संत फिलिप नेरी की तरह तब हम भी तैयार रह सकेंगे। और खुशी-खुशी उनके राज्य में प्रविष्ठ हो जायेंगे जहाँ हम सब के लिए हमारे प्रभु येसु ने स्थान तैयार कर रखा है।

आमेन।


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