Smiley face

चक्र स - 52. वर्ष का इक्कीसवाँ इतवार

इसायाह 66:19-21; इब्रानियों 12:5-7,11-13; लूकस 13:22-3

(फादर साइजू कोलारिक्कल)


आज के सुसमाचार द्वारा हमें यह मालूम होता है कि येरूसालेम जाते-जाते प्रभु येसु ख्रीस्त हर गाँव में परमेवर के राज्य की घोषणा करते थे। हम देखते हैं कि भीड़ में से कोई व्यक्ति जो शायद मुक्ति पाना चाहता था, प्रभु येसु से पूछता है, “प्रभु! क्या थोडे़ ही लोग मुक्ति पाते हैं?” हम भी कभी-कभी यही प्रश्न आपस में या स्वयं से पूछते हैं। मगर इससे बेहतर प्रश्न यह होगा कि ’क्या मैं मुक्ति प्राप्त करूँगा या नहीं’ इससे भी ज्यादा अच्छा यही होगा कि हम यह प्रश्न ईवर से ही करें, क्योंकि सिर्फ़ वे ही हमारी रक्षा कर सकते हैं। हम उम्मीद रखें कि उनका जवाब यही होगा कि तुम अवश्य ही बचा लिए जाओगे, अगर तुम वाकई मुक्ति प्राप्त करने के लिए दृढ़ संकल्प हो तो। लेकिन मुक्ति पाने या न पाने का क्या अभिप्राय है। मुक्ति प्राप्त करने का मतलब है परमेवर के साथ अपना भावी जीवन जीना, ईश्वर का वास्तविक रूप देखना, उनके साथ जीवन बाँटना। मुक्ति प्राप्त न करने का मतलब है ईश्वर की उपस्थिति में शामिल न होना, उनके जीवन॔ से वंचित रह जाना और बिना आशा के साथ उनकी खुशी से दूर रहना। इसलिए हम कहते हैं कि स्वर्ग राज्य में प्रवेश पाने का मतलब ईवर के साथ रहना और नरक का मतलब है ईवर की उपस्थिति से वंचित रह जाना। ईवर हमेश हम सबों की मुक्ति चाहते हैं। वे चाहते हैं कि हम सब उनके राज्य में, उनके साथ रहें। इसी लक्ष्य को लेकर ही प्रभु येसु इस दुनिया में आए ताकि हम सब मुक्ति पाए। इसी कारण प्रभु येसु ने हमें क्षमा तथा पवित्र् आत्मा में जीवन जीने का पाठ सिखाया। प्रभु येसु के संसार में आने का मुख्य उद्देश्य था कि हम सभी को स्वर्ग में उनके तथा पिता परमेवर के साथ नया जीवन मिलें। उनका मानवरूप धारण करना इस बात का साक्ष्य है कि ईवर मनुष्य को प्रेम करते हैं। यह बात प्रभु येसु ने स्पष्ट शब्दों में कही जब वे निकोदेमुस से बात कर रहे थे, “ईवर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने उसके लिए अपने इकलौते पुत्र् को अपिर्त कर दिया, जिससे जो उसमें विवास करता है, उसका सर्वनाश न हो, बल्कि अनन्त जीवन प्राप्त करें” (योहन 3:16)। संत पौलुस भी तिमथी को लिखते हुए कहते हैं, “यह कथन सुनिश्चिचत और नितान्त विवसनीय है कि ईसा मसीह पापियों को बचाने के लिए संसार में आए, और उन में सर्वप्रथम मैं हूँ” (1 तिमथी 1:15)। “ईश्वर चाहते हैं कि सभी मनुष्य मुक्ति प्राप्त करें और सत्य को जानें” (1 तिमथी 2:4)। ईवर की ओर से मुक्ति का द्वार सब के लिये खुला है। परन्तु परमेवर किसी को भी जबरदस्ती नहीं बचाएंगे। हर एक व्यक्ति ईवर का मुक्ति कार्य स्वीकार या अस्वीकार करने के लिये स्वतंत्र् है। यह भी है कि सिर्फ़ किसी एक समाज का अंग होना मुक्ति प्राप्त करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। पुराने विधान में कई इस्राएलियों का और नए विधान में फ़रीसियों का यह विचार था कि सिर्फ़ वे ही मुक्ति प्राप्त करेंगे, बाकी सब नरक के ही योग्य हैं। लेकिन प्रभु येसु अपने वचन तथा जीवन द्वारा हम सबों को यही समझाना चाहते हैं कि हम ईमानदारी से परमेवर द्वारा दिए गए कार्य को समपर्ण के मनोभाव से करें तथा पश्चात्तापी हृदय से अपने पापों का प्रायिश्चित्त` करें। इन सब बातों को हमें समझाते हुए प्रभु येसु आज के सुसमाचार में कहते हैं कि “सँकरे द्वार से प्रवेश करने का पूरा-पूरा प्रयत्न करो, क्योंकि मैं तुमसे कहता हूँ- प्रयत्न करने पर भी बहुत से लोग प्रवेश नहीं कर पाएंगे॔’ (लूकस 13:2४)। इसका मतलब यह है कि साधारणतः उस दरवाजे से निकलना मुश्किल है। इसलिये जब हम पाप के बडे़ बोझ ढ़ो कर उस दरवाजे से निकलने की कोशिश करते हैं तो वह कितना अधिक कठिन होगा, शायद असंभव भी। दूसरी बात यह है कि, अगर प्रवेश द्वार छोटा है, जैसे हमें ग्रामीण क्षेत्र् के मकानों में देखने को मिलता है, उस द्वार से सीधे जाना मुश्किल है, वहाँ हमें झुकना पड़ेगा, तब हम अन्दर जा पाएंगे। अगर स्वर्ग राज्य में प्रवेश पाना है तो अपना घामंड दूर करना अनिर्वार्य होगा क्योंकि यह घामंड, फ़रीसी लोगों के लिए स्वर्गराज्य में प्रवेश न पाने का कारण बना। हम स्वर्गराज्य में अपने पापमय जीवन एवं घमंड के साथ प्रवेश नहीं कर पाएंगे। तो आइए, हम इस मिस्सा बलिदान में ईवर से प्राथर्ना करें कि हमारे जीवन द्वारा, हमारे कर्मों द्वारा स्वर्गराज्य में प्रवेश पाने के लिए रास्ता साफ रखें और एक दूसरे को भी वहाँ पहुँचने में मदद करें।


Copyright © www.jayesu.com
Praise the Lord!