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चक्र स - 62. वर्ष का इकतीसवाँ रविवार

प्रज्ञा 11:22-12:2; 2 थेसलनीकियों 1:11-2:2; लूकस 19:1-10

(फादर आन्टनीसामी)


हमारे सृष्टिकर्त्ता परमात्मा की यही कामना है कि हम सब सुख शांति का जीवन बिताये। जो ईश्वर की छत्र-छाया में रहकर जीवन जीते हैं, ईश्वर उनकी रक्षा करते हैं। साधारण जीवन में भी मनुष्य की महानता छुपी रहती है। हमारे कार्य हमारी आंतरिक महानता को अभिव्यक्त करते है। आशामय विचार ही जीवन को सफल बनाते है। प्रत्येक व्यक्ति सफलता की कामना कर, कल्पना की ऊँची उड़ान भरता है तथा मन को नये उत्साह से भर देता है।

जैसे सूर्य की किरणों से उसकी दमक और उसकी गति का ज्ञान होता है, उसी तरह मनुष्य के सच्चे विचार या उसके किये कर्म से उसकी विशेषता का ज्ञान होता है। आप लोग विश्व प्रसिद्ध शिल्पकार माइकल ऐंजलो के बारे में अच्छी तरह जानते होगें। वह एक मशहूर शिल्पकार थे, जो इटली के रहने वाले थे। उनकी चित्रकला से दुनिया के सब लोग भली-भांति वाकिफ़ थे। एक दिन वह घूमने के लिये बाज़ार की तरफ़ गये। जब वह दुकान की गलियों से गुज़र रहे थे तब उनकी नज़र एक दुकान के सामने बेकार पड़े एक पत्थर पर पड़ी। वह पत्थर ऐसा पड़ा था, जैसे कि उसकी कोई ज़रूरत ही नहीं, लोगों ने उसे तिरस्कृत समझा था। संभावनाओं और कल्पनाओं ने माईकल ऐंजलो के विचारों में उस पत्थर के प्रति जिज्ञासा जगाई। तुरन्त दुकानदार के पास जाकर उन्होंने पूछा, ’’महोदय, इस पत्थर की कीमत क्या है’‘? दुकानदार ने माईकल की तरफ़ देखते हुए कहा- ’’भाई साहब, क्या आपको यह पत्थर चाहिये? इस पत्थर के लिये आपको पैसे देने की कोई ज़रूरत नहीं है। आप चाहे जो इसे मुफ्त में ले जाइये। मैं अपने खर्चे से इस पत्थर को आपके घर तक पहुँचा सकता हूँ।’’ दूसरे ही दिन उस पत्थर को माईकल ऐंजलो के घर पहुँचा दिया गया, दुकानदान ने सोचा कि चलो अच्छा हुआ, मेरी दुकान के सामने बेकार पड़ा पत्थर हट गया। अब दुकान दूर से दिखने लगी थी और दुकान के आसपास भी जगह साफ-सुथरी हो गई थी।

अपने विचारों में परिवर्तन लाना कठिन है। सफलता प्राप्त करने के लिये व्यक्ति में कुछ विशेष गुणों का होना आवश्यक है। अगर मनुष्य विचारवान हो, परिश्रमी हो, तो मानसिक गुणों को परिणित करने की शक्ति उसे मिल जाती है। माईकल की पारखी नज़र ने उस पत्थर को परख लिया था। ठीक एक वर्ष के बाद माईकल ने दुकानदार को एक निमंत्रण भेजकर अपने घर बुलाया। दुकानदार उनके घर गया और बैठक कमरे में रखी हुई एक अत्यंत सुंदर मूर्त्ति को देख उसकी ओर आकर्षित हो गया। वह माँ मरियम और उनकी गोद में लेटे हुये प्रभु येसु के मृत शरीर की मूŸिा थी। दुकानदार उस मूर्त्ति को देखकर बोला, ‘‘यह मूर्त्ति कितनी सुंदर और अच्छी है’’। माईकल ने जवाब दिया, ”भाई साहब, जो पत्थर कई सालों से आपकी दुकान के सामने बेकार पड़ा था, यह वही पत्थर है और इतना ही नहीं, जब पहली बार, मेरी नज़र उस पत्थर पर पड़ी थी उसी समय मैं ने उसमें प्रभु येसु और माँ मरियम के रूपों को देख लिया था, उसी पत्थर को तराश कर मैंने इस सुन्दर मूर्त्ति को बनाया है।“

जी हाँ, उत्साह, साहस तथा कर्मठता की मानसिक स्थिति हमारी इच्छा शक्ति के वश में होती है। सफलता पाने की ललक और आत्म विश्वास कलाकार के गुण हैं। आन्तरिक शक्तियों का ज्ञान होने पर मनुष्य में कार्यक्षमता का विकास होता है। आशामय विचार ही जीवन को सफल बनाते हैं। मन को नया उत्साह मिलता है।

आज के सुसमाचार में हम इसी प्रकार के व्यक्ति को पाते है, जो समाज की दृष्टि में बेकार एवं स्वार्थी था। वह लोगों से चुँगी वसूल कर अपने स्वार्थ की पूर्ति करता था और गलत तरीके से धन कमाता था। इसलिये वह लोगों की नज़र में एक पापी मनुष्य था, एकदम उस बेकार व तिरस्कृत पत्थर के समान।

जब प्रभु येसु येरीखो में प्रवेश कर रहे थे उस समय सैकड़ों लोग उनके साथ जा रहें थे, उनके साथ विशाल भीड़ थी, लेकिन उन में से किसी ने भी, गूलर के पेड़ पर बैठे ज़केयुस को नहीं देखा, केवल येसु ने ही उसको देखा। प्रभु येसु ने पहली नज़र में ही ज़केयुस के हृदय में अटूट विश्वास को परखा, उस पापी मनुष्य में छिपे हुए हृदय परिवर्तन को पहचाना। उसके येसु के दर्शन पाने की जिज्ञासा को देखते हुए येसु सोचने लगे, कि यह भी मेरा परम प्रिय शिष्य बनना चाहता है। येसु ने उससे कहा ”ज़केयुस तुम नीचे आओ,“ क्योंकि आज तुम्हारे घर में मुक्ति आने वाली है। तुम्हें नई जिंदगी मिलने वाली है, तुम्हारे घर में अनन्त शांति ठहरने वाली है। मैं तुम्हारे हृदय रूपी घर को मेरा निवास स्थान बनाने जा रहा हूँ। आओ, आकर इसमें सम्मिलित हो जाओ, मेरे साथ एक हो जाओ।

प्रशंसात्मक और प्रोत्साहित करने वाली बातें एवं विचार एक शक्ति देने वाली औषधी का काम करती हैं। जी हाँ, जिस प्रकार माईकल ने बेकार पड़े पत्थर में येसु व माँ मरियम के रूपों को पहचाना, उसी प्रकार ज़केयुस के हृदय में छिपे अटूट विश्वास को और उसके आन्तरिक मनोभावों को येसु पहचान चुके थे। यही कारण था कि वह अपना धन-दौलत त्यागते हुए येसु का सच्चा और योग्य सेवक बन गया।

लेकिन हमें आज क्या करना है? ईश्वर हमसे क्या चाहते हैं? इसका जवाब आज के पहले पाठ में मिलता है। ईश्वर किसी पापी का तिरस्कार नहीं करते हैं। वे किसी पापी को नष्ट नहीं करना चाहते हैं, बल्कि हर एक व्यक्ति को, चाहे वह अच्छा या बुरा हो, पापी या संत हो, मित्र या शत्रु हो, सबको एक समान प्यार करते हैं। ईश्वर हम सबों से यही चाहते हैं कि हम अपना पापमय जीवन छोड़कर उनके द्वारा बताये गये मार्ग पर चलें और सबों में ईश्वर को पहचानते हुए, उन्हें प्यार करें तथा उनकी सेवा करते हुए, ईश्वर की दया, करुणा, प्रेम व क्षमादान को एक दूसरे में बाँटें।


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Praise the Lord!