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चक्र स - 64. वर्ष का तैंतीसवाँ इतवार

मलआकी 3:19-20अ; 2 थेसलनीकियों 3:7-12; लूकस 21:5-19

फादर प्रीतम वसुनिया (इन्दौर धर्मप्रांत)


आज के तीनों पाठों में हम अंत के बारे में सुनते हैं। पवित्र धर्मग्रंथ बाइबल हमें बताता है कि इस दुनिया का अंत होगा। और अंतिम दिनों में हमें विचलित करने वाली कई घटनायें घटेगी। हमारे सेमिनारी जीवन में एक पूरा साल सिर्फ अध्यात्मिकता के लिए होता है जिसमें हम सालभर बाइबल के गहन पठन, मनन चिंतन प्रार्थना व त्याग तपस्या में बिताते हैं। इसी के तहत, मैं अपने साथियों के साथ वर्ष 2011-12 में आद्यात्मिक साधना केंद्र रिसदा, बिलासपुर में था। और शायद आप लोगों को याद होगा कि उन दिनों 2012 में दुनिया के अंत होने की एक अपवाह फैली थी। जिसे टीवी, अखबार व सोशल मिडिया ने भी बहुत जोर-शोर से उछाला था। मैं वास्तव में इस प्रकार की बातों पर न तो विश्वास करता हूँ और न ही इन्हें अधिक महत्व देता हूँ। पर उस साल हुआ यूँ कि 31 दिसम्बर मध्य रात्री की मिस्सा के बाद बारिश शुरू हुई, इसलिए मिस्सा के तुरन्त बाद हम सब जाकर सो गये। हम जाकर सोये ही थे कि इतनी तेज हवा चलने लगी कि कई खडकी दरवाजे जोर-जोर से टकराने लगे। कुछ खिडिकियों के काँच भी टूट गये। बाहर झाँककर देखा तो बडे-बडे ओले गिर रहे थे। मुझे ये सब देखकर डर लगने लगा, मैं सोचने लगा कि कहीं जो भविष्यवाणी की गयी थी वो सही तो नहीं हो रही है। लेकिन थोडे समय बाद सब कुछ सामान्य हो गया। आज जब मैं उस समय के बारे में सोचता हूँ तो स्वयं से पूछता हूँ कि मुझे आखिर डर किस बात का लग रहा था। मरने का? मरना तो मुझे एक न एक दिन है ही। तो फिर डर किस बात का था? मुझे डर इस बात का था कि मैं तैयार नहीं था। मैं मरने के लिए तैयार नहीं था। मुझे यह भय सता रहा था कि अगर मैं उस घडी मर जाता तो क्या मैं स्वर्ग पहूँच पाता? क्या मैं प्रभु के न्याय-सिंहासन के सामने खडे होकर खुद को निर्दोष साबित करने की स्थिति में था? वो दिन भले ही मेरे जीवन का अंतिम दिन नहीं था पर मेरे अंतिम दिन के बारे में मुझे कुछ सिखा गया।

आज के पहले पाठ में प्रभु का वचन कहता है- ‘‘वह दिन उन्हें भस्म कर देगा। उनका न तो डंठल रह जायेगा और न जड ही।’’ वहीं प्रभु येसु आज के सुसमाचार में कहते हैं - ‘‘राष्ट के विरूद्ध,राष्ट उठ खडा होगा, ... भारी भूकम्प होंगे; जहाँ-तहाँ महामारी तथा अकाल पडेगा। आतंकित करने वाले दृष्य दिखाई देंगे।’’ कुल मिलाकर अंत में एक भयंकर तबाही का मंज़र होगा। अंत के बारे में ये सारी बातें एक सामन्य व्यक्ति को बहुत विचलित कर सकती हैं। परन्तु इन सब भयभीत करने वाली बातों के बाद प्रभु येसु हमें एक बहुत ही सांत्वना भरी बात कहते हैं – “फिर भी तुम्हारे सिर का बाल भी बाँका नहीं होगा। अपने धैर्य से तुम अपनी आत्माओं को बचा लोगे”। कितनी सुन्दर बात प्रभु ने हम से कही है कि इतनी सारी तबाही के बाद भी हमारे सिर का बाल भी बाँका नहीं होगा। आज के पहले पाठ में भी प्रभु ने कहा है – “किंतु तुम जो मुझ पर श्रद्धा रखते हो, तुम्हारे ऊपर धर्म के सूर्य का उदय होगा और उसकी किरणें तुम्हें स्वास्थ्य प्रदान करेंगी। तब तुम उसी प्रकार उछलोगे, जैसे बछडे बाडे से निकल कर उछलने कूदने लगते हैं।“

हम पर, जो उनपर श्रद्धा रखते हैं प्रभु यह कृपा करेंगे और हमें अपने सूर्य जैसे स्वर्गिक प्रकाश में ले जायेंगे। स्वर्गिक आनन्द की तुलना यहाँ बाडे से बाहर निकलने पर मस्ती में उछलते बछडे से की गई है। जिसने अपने बाडे से बाहर निकले बछडे या फिर रस्सी से छोडे गये बछडे को देखा है वही इस आज़दी के आनन्द को समझ सकता है।

परन्तु यह आनन्द हमें यूँ ही नहीं मिल जाने वाला है। संत पौलुस अपने जीवन के अंत में इस आनन्द व मुक्ति के मुकुट को पाने की अभिलाषा रखते हुए कहते हैं – “अब मेरे लिए धार्मिकता का वह मुकुट तैयार है, जिसे न्यायी विचारपति प्रभु मुझे उस दिन (न्याय के दिन) प्रदान करेंगे।”

परन्तु उस मुकुट को प्राप्त करने के लिए वे कहते हैं - उन्हें एक अच्छी लडाई लडनी पडी, उन्हें एक दौड पूरी करनी पडी, और वे पूर्ण रूप से उन सब बातों में वफादार व ईमानदार रहे जिसे प्रभु ने उन्हें सौंपा था। जी हाँ, प्यारे मित्रों, हमें भी हमारे इस दुनियाई जीवन में एक अच्छी लडाई लडनी है। अपने मित्रों व परिजनों से नहीं बल्कि शैतान और उसकी ताकतों से जैसा कि एफेसियों को लिखे पत्र 6:12 में संत पौलुस स्वयं कहते हैं – “हमें निरे मनुष्यों से नहीं, बल्कि अंधकारमय संसार के अधिपतियों, अधिकारियों तथा शासकों और आकाश के दुष्ट आत्माओं से संघर्ष करना पडता है।’’

और आगे संत पौलुस हमें बताते हैं कि हमें कैसे शैतान व उसकी सारी शक्तियों को कुचलना है। उसके लिए हमें आध्यात्मिक हत्यारों से अपने को लेस करना है। ये हत्यार हैं - सत्य, धार्मिकता, सुसमाचार का उत्साह, विश्वास, तथा ईश्वर का का वचन।

पहले पाठ में जिन्हें प्रभु पर श्रद्धा रखने वाले लोग कहा गया है वे वही लोग होंगे जो अपने जीवन संघर्ष में इन अध्यात्मिक हत्यारों का उपयोग करते हुए हमेशा, शैतान का सामना करते हैं और कभी भी उसकी अधीनता स्वीकार नहीं करते। वे सब अंत में महिमा और सम्मान का मुकुट प्राप्त करेंगे। ऐसे लोगों को अंत समय का डर नहीं सताता, वे तो संत पौलुस की तरह बडी उत्सुकता से उस महिमामय समय की राह देखते रहते हैं। हम अपने आप से पूछें, क्या हम संत पौलुस की तरह हमारे अंत का इंतजार करते हैं या फिर हमारे अंत की खबर हमें विचलित कर देती है? आमेन।


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