परिवार में मेल-मिलाप की विधि

काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा 1430-31 :- “पश्चात्ताप तथा तपस्या करने का प्रभु येसु का आह्वान उनके पहले के नबियों के आह्वान के समान नहीं हैं जिन्होंने टाट पहनने, राख में बैठने, उपवास, प्रायश्चित्त जैसे बाहरी कार्यों पर जोर दिया था। परन्तु येसु ने आन्तरिक पश्चात्ताप और बदलाव के लिए लोगों को प्रेरित किया। यह मनोभाव भी प्रायश्चित्त के कार्य करने की प्रेरणा देता है। आन्तरिक पश्चात्ताप से तात्पर्य हमारे जीवन के पुनर्मूल्यांकन, पूरे हृदय से ईश्वर के पास वापस लौट आने, पापों को छोड़ने, पापों से मुँह मोड़ने और अपने किये गये पापों के लिए अफसोस से है। इस के अतिरिक्त, वह हमें ईश्वर की दया तथा कृपा पर निर्भर रह कर एक नया जीवन प्रारंभ करने की प्रेरणा प्रदान करता है।“

प्रस्तावना

(हमें विशेष कर प्रार्थना के द्वारा अपने आप को प्रभु ईश्वर की क्षमा प्राप्त करने के लिए तैयार करना चाहिए। हमें प्रभु येसु के जीवन तथा शिक्षा के आधार पर अपने व्यवहार तथा कर्मों को जाँच कर प्रभु से अपने पापों के लिए क्षमा की याचना करनी चाहिए।)

(इस के लिए अपने घर के प्रार्थना के कमरे या जगह पर एक टेबल को सजा कर उस पर क्रूसितरूप तथा मोम्बत्ती रखें और परिवार के सदस्य उस के सामने एकत्र हों। )

गीत

(एक उपयुक्त गीत गायें।)

पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर। आमेन।

(पवित्र आत्मा से आत्मज्ञान तथा ईश्वर पर भरोसे के लिए प्रार्थना करें।)

हे पवित्र आत्मा, सच्ची ज्योति, प्रज्ञा, ज्ञान तथा समझदारी के स्रोत, एक अच्छे मेलमिलाप की तैयारी में मेरी सहायता कर। मेरे मन को आलोकित कर और अब मुझे अपने पापों को याद करने में मदद कर। मुझे अपने बुरे कर्मों का एहसास करा और ऐसे अवसरों का भी जब जो भले कार्य मैं कर सकता था उन्हें नहीं किया। मुझे अपने पापों के लिए हार्दिक खेद का अनुभव करा ताकि मैं पश्चात्ताप कर के अपने पापों के लिए क्षमा प्राप्त कर सकूँ। आमेन !

पवित्र वचन की विधि

(पवित्र वचन हमें अपने पापों का बोध कराता तथा पश्चात्ताप करने की प्रेरणा प्रदान करता है।)

पहला पाठ

इसायाह 43:1-3 अथवा एज़ेकिएल 18:20-32 अथवा योएल 2:12-14

स्तोत्र 32

अनुवाक्य : हे प्रभु, अपनी दया से मेरे पापों को क्षमा कर।

1. धन्य है वह, जिसका अपराध क्षमा हुआ है, जिसका पाप मिट गया है! धन्य है वह जिसे ईश्वर दोषी नहीं मानता, जिसका मन निष्कपट है!

2. जब तक मैं मौन रहा, तब तक मेरे निरन्तर कराहने से मेरी हड्डियाँ छीजती रहीं; क्योंकि दिन-रात मुझ पर तेरे हाथ का भार था। मेरा शक्ति-रस मानो ग्रीष्म के ताप से सूखता रहा।

3. मैंने तेरे सामने अपना पाप स्वीकार किया, मैंने अपना दोष नहीं छिपाया। मैंने कहा, "मैं प्रभु के सामने अपना अपराध स्वीकार करूँगा"। तब तूने मेरे पाप का दोष मिटा दिया।

4. इसलिए संकट के समय प्रत्येक भक्त तुझ से प्रार्थना करता है। बाढ़ कितनी ऊँची क्यों न उठे, किन्तु जलधारा उसे नहीं छू पायेगी।

5. प्रभु! तू मेरा आश्रय है। तू संकट से मेरा उद्धार करता और मुझे शान्ति के गीत गाने देता है।

6. मैं तुझे शिक्षा दूँगा, तुम को मार्ग दिखाऊँगा; तुम्हें परामर्श दूँगा और तुम्हारी रक्षा करूँगा।

7. नासमझ घोड़े या खच्चर-जैसे न बनो, जिन्हें लगाम और रास से बाध्य करना पड़ता है; नहीं तो वे तुम्हारे वश में नहीं आते। दुष्ट को बहुत से दुःख झेलने पड़ते हैं, किन्तु जो प्रभु पर भरोसा रखता है, उसे प्रभु की कृपा घेरे रहती है।

8. धर्मियों! उल्लसित हो कर प्रभु में आनन्द मनाओ। तुम सब, जिनका हृदय निष्कपट है, आनन्द के गीत गाओ।

दूसरा पाठ

रोमियों 6:16-23 अथवा एफेसियों 2:1-10

सुसमाचार

मत्ती 18:12-14 अथवा लूकस 19:1-10 अथवा लूकस 23:39-43

(कुछ समय के लिए मौन साध कर ईश्वर की अपार दया, पश्चात्ताप, पाप-स्वीकार, प्रायश्चित्त तथा भलाई के कार्य करने की हमारी आवश्यकता पर मनन्‍-चिंतन करें)

अन्तकरण की जाँच

(इस समय अपने छोटे-बड़े सब पापों को पश्चात्तापपूर्ण हृदय से याद करें। जो भी पाप हमने ईश्वर की आज्ञा तथा कलीसिया के नियमों के विरुध्द किये हैं, उन सब को याद करें और यह एहसास करें कि उन पापों के द्वारा मैंने अपने प्रेममय स्वर्गिक पिता को चोट पहुँचायी है। करण तथा अकरण (commission and omission) के पापों को याद करें।)

पछतावे की विनती

हे मेरे ईश्वर, मैं दिल से उदास हूँ कि मैंने तेरी असीम भलाई और बड़ाई के विरूद्ध अपराध किया है। मैं अपने सब पापों से बैर और घृणा करता हूँ, इसलिए कि तू, हे मेरे ईश्वर, जो मेरे पूरे प्रेम के इतने योग्य है, मेरे पापों से नाराज हो जाता है। और मैं यह ढृढ़ संकल्प करता हूँ कि तेरी पवित्र कृपा से, तेरे विरूद्ध अपराध और कभी नहीं करूँगा और पाप के ज़ोखिमों से दूर रहूँगा। आमेन।

(थोडी देर मौन साधने के बाद)

भाईयों (और बहनों), मैं सर्वशक्तिमान् ईश्वर और आप लोगों के सामने, स्वीकार करता हूँ कि मैंने मन-वचन-कर्म से और अपना कर्तव्य पूरा न करने से बार-बार पाप किया है; (छाती पीट ले) मैं अपना दोष स्वीकार करता हूँ। इसलिए मैं धन्य कुँवारी मरियम से, सब स्वर्गदूतों, सब संतों और आप लोगों से - भाइयों (और बहनों), - विनती करता हूँ - कि आप लोग मेरे लिए प्रभु ईश्वर से प्रार्थना करें।
हे प्रभु दया कर!
हे ख्रीस्त दया कर!
हे प्रभु दया कर!

दया-याचना का गीत

(दया-याचना का कोई गीत गायें)

अंतिम प्रार्थना

हे प्रभु येसु, मैं तुझे धन्यवाद देता हूँ क्योंकि तूने मुझ में पश्चात्ताप उत्पन्न किया और मुझे क्षमा प्रदान की। मैं तुझ से विनती करता हूँ कि मेरी सहायता कर ताकि मैं फिर कभी पाप कर तुझ से अलग न हो जाऊँ। हे माता मरिया, मेरे लिए प्रभु येसु से प्रार्थना कर! हे मेरे संरक्षक दूत मेरी रक्षा कर।

धन्यवाद का गीत



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