प्रभु के आगमन की शुभ घड़ी

Smiley face पवित्र ग्रन्थ में हम येसु को दो बार रोते हुए पाते हैं। लाज़रुस की कब्र के सामने वहाँ उपस्थित लोगों के दुख में शामिल होकर प्रभु येसु रोते हैं। (देखिए योहन 11: 35) उस समय प्रभु येसु के दुख का कारण तो साफ है – उनके मित्र लाज़रुस की मृत्यु।

दूसरी बार येसु को हम उस समय रोते हुए पाते हैं जब वे येरूसालेम के निकट आते हैं। उस समय प्रभु जो कहते हैं, उस से हमें उनके दुख के कारण का पता चलता है। येरूसालेम शहर को सम्बोधित करते हुए वे कहते हैं, ‘‘हाय! कितना अच्छा होता यदि तू भी इस शुभ दिन यह समझ पाता कि किन बातों में तेरी शान्ति है! परन्तु अभी वे बातें तेरी आँखों से छिपी हुई हैं। तुझ पर वे दिन आयेंगे, जब तेरे शत्रु तेरे चारों ओर मोरचा बाँध कर तुझे घेर लेंगे, तुझ पर चारों ओर से दबाव डालेंगे, तुझे और तेरे अन्दर रहने वाली तेरी प्रजा को मटियामेट कर देंगे और तुझ में एक पत्थर पर दूसरा पत्थर पड़ा नहीं रहने देंगे; क्योंकि तूने अपने प्रभु के आगमन की शुभ घड़ी को नहीं पहचाना।’’ (लूकस 19:42-44)

इसके पहले के घटनाक्रम को जानने पर हम इस दुख को अच्छी तरह समझ सकेंगे। एक गदही के बछडे पर सवार हो कर प्रभु येरूसालेम शहर में प्रवेश करते हैं। देहात के साधारण लोग रास्ते पर अपने कपड़े बिछाते जा रहे हैं। जब वे जैतून पहाड़ की ढाल पर पहुँचते हैं, तो पूरा शिष्य-समुदाय आनंदविभोर हो कर आँखों देखे सब चमत्कारों के लिए ऊँचे स्वर से इस प्रकार ईश्वर की स्तुति कर बोलने लगते हैं – “धन्य हैं वह राजा, जो प्रभु के नाम पर आते हैं! स्वर्ग में शान्ति! सर्वोच्च स्वर्ग में महिमा!” (लूकस 19:36-38) इन साधारण लोगों ने अपने प्रभु के आगमन की शुभ घड़ी को पहचान लिया था। उन्होंने येसु में अपने प्रभु को पहचाना। परन्तु फरीसियों ने येसु में केवल एक ज्ञानी गुरु को देखा। इसलिए उन्होंने येसु से कहा, ‘‘गुरूवर! अपने शिष्यों को डाँटिए’’। परन्तु ईसा ने उत्तर दिया, ‘‘मैं तुम से कहता हूँ, यदि वे चुप रहें, तो पत्थर ही बोल उठेंगे’’ (लूकस 19:40)। क्या येसु का इशारा इस बात की ओर नहीं था कि पत्थर भी अपने प्रभु के आगमन की शुभ घड़ी को पहचान रहा है, परन्तु तुम नहीं?

गणना ग्रन्थ के अध्याय 22 में एक विरोधाभास है। वह यह है कि प्रभु के नाम पर भविष्यवाणी सुनाने के लिए चुने गये बिलआम नामक नबी ने रास्ते में खडे ईश्वर को नहीं पहचान पाते हैं, बल्कि उसकी गधी उन्हें देख कर पहचान लेती है।

प्रभु को न पहचानने के क्या कारण हैं? इसके विभिन्न कारण हैं। जहाँ हम उन्हें देखना चाहते हैं, वहाँ नहीं, बल्कि जहाँ हम उनको देखने की आशा नहीं करते हैं, वहीं वे दिखायी देते हैं। जिस रूप में हम उन्हें देखना चाहते हैं, उस रूप में वे नहीं आते हैं। बल्कि वे उस रूप में आते हैं, जिस रूप में हम उन्हें देखने की आशा नहीं करते हैं। जिस समय हम उन्हें देखने की आशा करते हैं, उस समय नहीं, बल्कि जब हम उनके आगमन की आशा नहीं रखते हैं, उसी समय वे आते हैं।

जहाँ हम उन्हें देखना चाहते हैं, वहाँ नहीं, बल्कि जहाँ हम उनको देखने की आशा नहीं करते हैं, वहीं वे दिखायी देते हैं। साधारणत: कोई भी सोचेगा कि राजाओं के राजा, प्रभुओं के प्रभु किसी राजमहल में जन्म लेंगे। परन्तु प्रभु येसु एक गरीब परिवार के सदस्य के रूप में एक गोशाले में जन्म लेते हैं। ईश्वर की बराबरी करने का पूरा अधिकार रखने वाले मसीह दास का रूप धारण कर मनुष्यों के समान बनकर अपने को दीनहीन बनाकर एक चरनी में जन्म लेते हैं। उन्हें पहचानना गरीब गडेरियों के लिए आसान था। वे उनसे मुलाकात कर उनको दण्डवत करते हैं। ईश्वर को खोजने वाले ज्योतिषी भी उनको पहचान कर उनकी आराधना करने पहुँचते हैं। परन्तु शास्त्री, फरीसी और राजा उनको पहचान नहीं पाते हैं।

जिस रूप में हम उन्हें देखना चाहते हैं, उस प्रकार वे नहीं आते हैं। बल्कि वे उस रूप में आते हैं, जिस रूप में हम उन्हें देखने की आशा नहीं करते हैं। मत्ती 25:31-46 में प्रभु हमको समझाते हैं कि हमें उनको भूखों, प्यासों, वस्त्रहीनों, बेघरों, कैदियों तथा बीमारों में पहचान कर उनकी सेवा करनी चाहिए। प्रभु येसु ने संत पौलुस को दर्शन दे कर उनको समझाया कि वे ख्रीस्तीय विश्वासियों के समुदाय में रहते हैं (देखिए प्रेरित-चरित 9:1-5)।

जिस समय हम उन्हें देखने की आशा करते हैं, उस समय नहीं, बल्कि जब हम उनके आगमन की आशा नहीं रखते हैं, उसी समय वे आते हैं। इसलिए प्रभु स्वयं कहते हैं, ’’तुम्हारी कमर कसी रहे और तुम्हारे दीपक जलते रहें। तुम उन लोगों के सदृश बन जाओ, जो अपने स्वामी की राह देखते रहते हैं कि वह बारात से कब लौटेगा, ताकि जब स्वामी आ कर द्वार खटखटाये, तो वे तुरन्त ही उसके लिए द्वार खोल दें। धन्य हैं वे सेवक, जिन्हें स्वामी आने पर जागता हुआ पायेगा! मैं तुम से यह कहता हूँ: वह अपनी कमर कसेगा, उन्हें भोजन के लिए बैठायेगा और एक-एक को खाना परोसेगा। और धन्य हैं वे सेवक, जिन्हें स्वामी रात के दूसरे या तीसरे पहर आने पर उसी प्रकार जागता हुआ पायेगा! यह अच्छी तरह समझ लो-यदि घर के स्वामी को मालूम होता कि चोर किस घड़ी आयेगा, तो वह अपने घर में सेंध लगने नहीं देता। तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी तुम उसके आने की नहीं सोचते, उसी घड़ी मानव पुत्र आयेगा।’’ (लूकस 12:35-40) मत्ती 25:1-13 में दस कुँवारियों के दृष्टान्त द्वारा प्रभु हमें बताते हैं कि हमें समझदार कुँवारियों के समान येसु का इंतज़ार करना चाहिए। “जागते रहो, क्योंकि तुम न तो वह दिन जानते हो और न वह घड़ी।“ (मत्ती25:13) आगमन का समय प्रभु की राह देखने का समय है। प्रभु का समुचित रीति से स्वागत करने का समय है। आईए, हम अपने प्रभु आगमन की शुभ घडी को पहचानने की हर संभव कोशिश करें।

- फादर फ़्रांसिस स्करिया