जीवन की स्थिरता एवं ईश्वर की प्रतीक्षा

Smiley face दैनिक जीवन की स्थिरता एवं निश्चितता हमें आभास दिलाती है कि जो कुछ भी हम कर रहे हैं वह सही है। यदि कोई भ्रष्ट तरीकों से धन कमा रहा हो तथा इससे उसकी संपदा बढती जाती है तो वह इस समृद्धि को वास्तविकता तथा उचित मान लेता है। उसके जीवन में ’भ्रष्टाचार शिष्टाचार बन जाता है।’ यदि कोई अनैतिकता, व्यभिचार एवं रंगरैलियों का जीवन बिताकर खुशी एवं स्थिरता का अनुभव करता है तो वह भी इस भ्रामक सुख को जीवन का स्थायित्व मानकर झूठ की बुनियाद पर अपने जीवन को जीता है।

इस प्रकार जब लोगों का निर्बाध्य सामान्य जीवन उन्हें इस बात की सांत्वना देता है कि सबकुछ ठीक चल रहा है तब वे ईश्वर पर श्रद्धा न रखकर, उनकी शिक्षाओं को भुला देते हैं। वे समझते हैं कि उनको ईश्वर के वचन पर इतना गंभीर होने की कोई जरूरत नहीं, क्योंकि उन्को लगता है कि उसका पालन किये बिना भी जीवन सुगमता से चल सकता है। किन्तु यह सत्य नहीं है। बल्कि यह स्थिति अत्यंत खतरनाक है क्योंकि यह हमसे प्रभु के मिलने की तत्परता तथा तैयारी का अवसर छीन लेती है। संत पौलुस ऐसी स्थिति के विरूद्ध लोगों को चेताते हुए कहते हैं, ’’जब लोग यह कहेंगे: ’अब तो शांति और सुरक्षा है’, तभी विनाश उन पर गर्भवती पर प्रसव-पीड़ा की तरह, अचानक आ पडेगा और वे उस से बच नहीं सकेंगे।’’ (1 थेस. 5:3) प्रभु येसु स्वयं कहते हैं, ’’जो नूह के दिनों में हुआ था, वही मानव पुत्र के आगमन के समय होगा। जलप्रलय के पहले, नूह के जहाज पर चढ़ने के दिन तक, लोग खाते-पीते और शादी-ब्याह करते रहे। जब तक जलप्रलय नहीं आया और उसने सबको बहा नहीं दिया, तब तक किसी को इसका कुछ भी पता नहीं था। मानव पुत्र के आगमन के समय वैसा ही होगा।’’ (मत्ती 24:37) नूह के समय भी लोग अपने जीवन में व्यस्त थे। जब नूह ने प्रभु की आज्ञानुसार पोत का निर्माण किया तब किसी ने भी नूह के इस कार्य को गंभीरता से नहीं लिया। वे सब अपने जीवन में मग्न थे। यही सांसारिक शांति एवं सुरक्षा उनके विनाश का कारण बन जाती है।

इस स्थिति की तुलना हम ऐसे मनुष्य से कर सकते हैं जो अपने स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रखता। उसका खानपान असंतुलित हो, नियमित व्यायाम न करता हो, इन सबके बावजूद भी वह स्वस्थ हो तो वह सोचता है कि सब कुछ ठीकठाक है तथा उनके रहन-सहन का तरीका उचित है। किन्तु बीमारी एवं दुर्घटना कभी पूर्व सूचना के बाद नहीं आते। ऐसी विपत्ति की घडी में उसका शरीर अत्यंत पीड़ा का सामना करता है। किन्तु उसे अपने लापरवाही के जीवन की कीमत चुकानी पड़ती है। अपने व्यवहारिक ज्ञान के द्वारा हम जानते हैं कि हमें अपने स्वास्थ्य का नियमित ध्यान रखना चाहिए।

ठीक इसी प्रकार हमारा आध्यात्मिक जीवन भी है। जब तक सबकुछ ठीकठाक चलता है हम ईश्वर को गंभीरता से नहीं लेते हैं या फिर सोचते हैं कि बाद में सुधार ले आयेंगे। येसु हमें इस भ्रामक स्थिति से बचने तथा सदैव ईश्वर के लिए तैयार एवं तत्पर रहने की शिक्षा देते हुए कहते हैं, ’’इसलिए जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारे प्रभु किस दिन आयेंगे। यह अच्छी तरह समझ लो- यदि घर के स्वामी को मालूम होता कि चोर रात के किस पहर आयेगा, तो वह जागता रहता और अपने घर में सेंध लगने नहीं देता। इसलिए तुम लोग भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी तुम उसके आने की नहीं सोचते, उसी घड़ी मानव पुत्र आयेगा।’’ (मत्ती 24:42-44)

येसु यही बात संत पेत्रुस से भी कहते हैं कि जागते रहो। किन्तु वे यह भी जोड देते हैं कि ’’जागते रहो और प्रार्थना करते रहो, जिससे तुम परीक्षा में न पडो।’’ (मत्ती 26:41) इस प्रकार यदि हम शिथिलता एवं आलस्य के जीवन से बचकर तत्परता का जीवन जीना चाहते हैं तो हमें सदैव प्रार्थना करनी चाहिए जिससे संसार की भ्रामक शांति एवं सुरक्षा हमें ठग न पाये।

संत पौलुस कहते हैं कि हमें सभी अंधकार की बातों का त्याग कर देना चाहिए क्योंकि अंधकार की बातें हमें सांसारिक विषय-वासना की ओर ले जाती है। ’’अन्धकार के कर्मों को त्याग कर, ज्योति के शस्त्र धारण कर लें। हम दिन के योग्य सदाचरण करें। हम रंगरलियों और नशेबाजी, व्यभिचार और भोगविलास, झगड़े और ईर्ष्या से दूर रहें। आप लोग प्रभु ईसा मसीह को धारण करें और शरीर की वासनाएं तृप्त करने का विचार छोड़ दें।’’ (रोमियों 13:13-14)

मूसा से भी इस्राएलियों के समुदाय ने यही शिकायत की थी कि उनका जीवन मिस्र में कितना अच्छा था। वे प्रभु के प्रतिज्ञात देश में पहुँचने के प्रति उतने उत्साहित नहीं थे जितने मिस्र की गुलामी की रोटी खाने। वे गुलामी के जीवन की स्थिरता को ही वास्तविक मानकर उसी स्थिति में जीना चाहते थे। उनका कहना था कि, ’’हम जिस समय मिस्र देश में मांस की हड्डियों के सामने बैठते थे और इच्छा भर रोटी खाते थे, यदि हम उस समय प्रभु के हाथ मर गये होते तो कितना अच्छा होता! आप हम को इस मरूभूमि में इसलिए ले आये हैं कि हम सब के सब भूखों मर जाये।’’(निर्गमन 16:3) ’’उन्होंने मूसा से कहा, ’’क्या मिस्र में हम को कब्रें नहीं मिल सकती थीं, जो आप हम को मरूभूमि में मरने के लिए यहाँ ले आये है?...क्या हमने मिस्र में रहते समय आप से नहीं कहा था कि हमें मिस्रियों की सेवा करते रहने दीजिए? मरूभूमि में मरने की अपेक्षा मिस्रियों की सेवा करना कहीं अधिक अच्छा है।’’(निर्गमन 14:11-12) जीवन की निश्चितता हमें प्रभु की प्रतीक्षा करने के विरूद्ध प्रलोभन देती है।

आइये हम भी अपने सामान्य जीवन को उस तालाब के पानी के समान देखें जो उपर से तो शांत एवं स्वच्छ दिखाई देता है किन्तु उसकी गहराई में गंदगी पलती रहती है। माता कलीसिया हमें ऐसे शांत एवं सामान्य जीवन के छल से बच कर इस आगमन काल में परिवर्तन लाने की चुनौती प्रस्तुत करती है।

- फ़ादर रोनाल्ड वॉन