वर्ष -1, तेरहवाँ सप्ताह, शनिवार

पहला पाठ : उत्पत्ति 27:1-5, 15-29

1) इसहाक बूढ़ा हो गया और उसकी आँखें इतनी कमजोर हो गयीं कि वह देख नहीं पाता था। उसने अपने ज्येष्ठ पुत्र एसाव को बुलाया और कहा, ''बेटा!'' एसाव ने उत्तर दिया, ''क्या आज्ञा है?''

2) इसहाक ने कहा, ''तुम देखते ही हो कि मैं बूढ़ा हो गया हूँ। न जाने कब तक जीवित रहूँगा।

3) तुम अपने हथियार, अपना तरकश और अपना धनुष ले कर जाओ और मेरे लिए शिकार ले आओ।

4) तब मेरी पसन्द का स्वादिष्ट भोजन बना कर मुझे खिलाओ। मैं मरने से पहले तुम्हें आशीर्वाद देना चाहता हूँ।''

5) रिबेका इसहाक और उसके पुत्र एसाव की बातचीत सुन रही थी।

15) रिबेका ने अपने ज्येष्ठ पुत्र के उत्तम वस्त्र, जो घर में उसके पास थे, ले लिये और अपने कनिष्ठ पुत्र याकूब को पहनाये।

16) उसने उसके हाथ और चिकनी गरदन पर बकरी का चमड़ा पहना दिया।

17) तब उसने अपने द्वारा पकाया भोजन और रोटी अपने पुत्र याकूब के हाथ में दे दी।

18) उसने अपने पिता इसहाक के पास जा कर कहा, ''पिताजी!'' उसने उत्तर दिया, हाँ, बेटा! तुम कौन हो?''

19) याकूब ने अपने पिता से कहा, ''मैं आपका पहलौठा एसाव हूँ। मैंने वही किया, जो आपने कहा था। कृपा करके आइए, बैठ कर मेरा शिकार खाइए और मुझे आशीर्वाद दीजिए।''

20) इसहाक ने अपने पुत्र से कहा, ''बेटा! तुम को कैसे यह इतने जल्दी मिल गया?'' उसने उत्तर दिया, ''यह प्रभु, आपके ईश्वर, की कृपा है''।

21) इसहाक ने याकूब से कहा, ''बेटा! मेरे पास आओ। मैं टटोल कर जान लेना चाहता हूँ कि तुम सचमुच मेरे पुत्र एसाव हो।''

22) याकूब अपने पिता इसहाक के पास आया। इसने उसे टटोल कर कहा, ''आवाज तो याकूब की है लेकिन हाथ एसाव के है''।

23) वह याकूब को नहीं पहचान पाया, क्योंकि उसके हाथ उसके भाई एसाव के हाथों की तरह रोयेदार थे और इसलिए उसने उसे आशीर्वाद दिया।

24) उसने कहा, ''क्या तुम सचमुच मेरे पुत्र एसाव हो?'' उसने उत्तर दिया ''हाँ, मैं वही हूँ''।

25) तब इसहाक ने कहा, ''मुझे अपना शिकार ला कर खिलाओ और मैं तुम्हें आशीर्वाद दूँगा''। याकूब भोजन लाया और इसहाक खाने लगा। इसके बाद उसने अंगूरी ला कर इसहाक को पिलायी।

26) तब उसके पिता इसहाक ने कहा, ''बेटा! आओ और मुझे चुम्बन दो''।

27) उसने अपने पिता के पास आ कर उसका चुम्बन किया। को उसके वस्त्रों की गन्ध मिली और उसने यह कहते हुए उसे आशीर्वाद दिया, ''ओह! मेरे पुत्र की गन्ध उस भूमि की गन्ध-जैसी है, जिसे प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त है।

28) ईश्वर तुम्हें आकाश की ओस, उपजाऊ भूमि और भरपूर अन्न तथा अंगूरी प्रदान करे।

29) अन्य जातियाँ तुम्हारी सेवा करें, राष्ट्र तुम्हारे सामने झुकें। तुम अपने भाइयों के स्वामी होओ और तुम्हारी माता के पुत्र तुम को दण्डवत् करें। जो तुम को अभिशाप दे, वह अभिशप्त हो और जो तुम को आशीर्वाद दे, उसे आशीर्वाद प्राप्त हो।''

सुसमाचार : मत्ती 9:14-17

14) इसके बाद योहन के शिष्य आये और यह बोले, ’’हम और फरीसी उपवास किया करते हैं। आपके शिष्य ऐसा क्यों नहीं करते?’’

15) ईसा ने उन से कहा, ’’जब तक दूल्हा साथ है, क्या बाराती शोक मना सकते हैं? किन्तु वे दिन आयेंगे, जब दुल्हा उन से बिछुड़ जायेगा। उन दिनों वे उपवास करेंगे।

16) ’’कोई पुराने कपडे़ पर कोरे कपडे़ का पैबंद पहीं लगाता, क्योंकि वह पैबंद सिकुड़ कर पुराना कपड़ा फाड़ देता है और चीर बढ़ जाता है।

17) और लोग पुरानी मशकों में नयी अंगूरी नहीं भरते। नहीं तो मशकें फट जाती हैं, अंगूरी बह जाती है और मशकें बरबाद हो जाती हैं। लोग नयी अंगूरी नयी मशकों में भरते हैं। इस तरह दोनों ही बची रहती हैं।’’


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Praise the Lord!