वर्ष - 2, बीसवाँ सप्ताह, शुक्रवार

📒 पहला पाठ : एज़ेकिएल का ग्रन्थ 37:1-14

1) प्रभु का हाथ मुझ पर पड़ा और प्रभु के आत्मा ने मुझे ले जा कर एक घाटी में उतार दिया, जो हड्डियों से भरी हुई थी।

2) उसने मुझे उनके बीच चारों ओर घुमाया। वे हाड्डियाँ बड़ी संख्या में घाटी के धरातल पर पड़ी हुई थीं और एकदम सूख गयी थीं।

3) उसने मुझ से कहा, "मानवपुत्र! क्या इन हाड्डियों में फिर जीवन आ सकता है?" मैंने उत्तर दिया, "प्रभु-ईश्वर! तू ही जानता है"।

4) इस पर उसने मुझ से कहा, "इन हाड्डियों से भवियवाणी करो। इन से यह कहो, ’सूखी’ हड्डियो! प्रभु की वाणी सुनो।

5) प्रभु-ईश्वर इन हड्डियों से यह कहता है: मैं तुम में प्राण डालूँगा और तुम जीवित हो जाओगी।

6) मैं तुम पर स्नायुएँ लगाऊँगा तुम में मांस भरूँगा, तुम पर चमड़ा चढाऊँगा। तुम में प्राण डालूँगा, तुम जीवित हो जाओगी और तुम जानोगी कि मैं प्रभु हूँ।"

7) मैं उसके आदेश के अनुसार भवियवाणी करने लगा। मैं भवियवाणी कर ही रहा था कि एक खडखडाती आवाज सुनाई पडी और वे हाड्डिया एक दूसरी से जुडने लगीं।

8) मैं देख रहा था कि उन पर स्नायुएँ लगीं; उन में मांस भर गया, उन पर चमड़ा चढ गया, किंतु उन में प्राण नहीं थे।

9) उसने मुझ से कहा, "मानवपुत्र! प्राणवायु को सम्बोधिक कर भवियवाणी करो। यह कह कर भवियवाणी करो: ’प्रभु-ईश्वर यह कहता है। प्राणवायु! चारों दिशाओं में आओ और उन मृतकों में प्राण फूँक दो, जिससे उन में जीवन आ जाये।"

10) मैंने उसके आदेशानुसार भवियवाणी की और उन में प्राण आये। वे पुनर्जीवित हो कर अपने पैरों पर खड़ी हो गयी- वह एक विशाल बहुसंख्यक सेना थी।

11) तब उसने मुझ से कहा, "मानवपुत्र! ये हड्डियाँ समस्त इस्राएली हैं। वे कहते रहते हैं- ’हमारी हड्डियाँ सूख गयी हैं। हमारी आशा टूट गय है। हमारा सर्वनाश हो गया है।

12) तुम उन से कहोगे, ’प्रभु यह कहता है: मैं तुम्हारी कब्रों को खोल दूँगा। मेरी प्रजा! में तुम लोगों को कब्रों से निकाल का इस्राएल की धरती पर वापस ले जाऊँगा।

13) मेरी प्रजा! जब मैं तुम्हारी कब्रों को खोल कर तुम लोगों को उन में से निकालूँगा, तो तुम लोग जान जाओगे कि मैं ही प्रभु हूँ।

14) मैं तुम्हें अपना आत्मा प्रदान करूँगा और तुम में जीवन आ जायेगा। मैं तुम्हें तुम्हारी अपनी धरती पर बसाऊँगा और तुम लोग जान जाओगे कि मैं, प्रभु, ने यह कहा और पूरा भी किया’।"

📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती 22:34-40

34) जब फरीसियों ने यह सुना कि ईसा ने सदूकियों का मुँह बन्द कर दिया था, तो वे इकट्ठे हो गये।

35) और उन में से एक शास्त्री ने ईसा की परीक्षा लेने के लिए उन से पूछा,

36) गुरुवर! संहिता में सब से बड़ी आज्ञा कौन-सी है?’’

37) ईसा ने उस से कहा, ’’अपने प्रभु-ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा और अपनी सारी बुद्धि से प्यार करो।

38) यह सब से बड़ी और पहली आज्ञा है।

39) दूसरी आज्ञा इसी के सदृश है- अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो।

40) इन्हीं दो आज्ञायों पर समस्त संहिता और नबियों की शिक्षा अवलम्बित हैं।’’

📚 मनन-चिंतन

जब इस्राएली लोग हताश-निराश हो हो गये तो कराह उठे, “हमारी हड्डियाँ सूख गयी हैं, हमारी आशा टूट गयी है, हमारा सर्वनाश हो गया है।” लेकिन ईश्वर उन्हें भरोसा दिलाता है कि उसका प्रेम उनके लिए अनन्त है और उसके लिए कुछ भी असम्भव नहीं है। नबी एजेकियेल के माध्यम से वह बताते हैं कि वह सूखी हड्डियों में भी जान फूंक सकता है क्योंकि उसका प्रेम असीम है। पहला पाठ लोगों के लिए ईश्वर प्रेम को दर्शाता है और सुसमाचार उस प्रेम के प्रति हमारे प्रत्युत्तर को दर्शाता है। इसलिए हमें अपने प्रभु ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा और अपनी सारी शक्ति से प्रेम करना है, और ऐसा करने का पहला कदम है अपने पड़ौसी को प्यार करना।

ईश्वर की पहली और सबसे महत्वपूर्ण आज्ञा है ईश्वर को सबसे अधिक और सबसे बढ़कर प्यार करना, और इस आज्ञा का दूसरा पहलू अपने पड़ौसी को अपने समान प्यार करना क्योंकि अपने पड़ौसी को प्यार किए बिना हम ईश्वर को प्यार नहीं कर सकते। सन्त योहन कहते हैं कि यदि तुम अपने भाई या बहन से नफ़रत करते हो तो ईश्वर को प्यार नहीं कर सकते, (1 योहन 4:20-21)। चूँकि दूसरी आज्ञा के बिना पहली आज्ञा का पालन नहीं कर सकते, इसलिए प्रभु येसु इन दोनों आज्ञाओं को एक साथ रखते हैं। लेकिन इन दोनों आज्ञाओं से पहले एक तीसरी आज्ञा भी है जो इन दोनों के बीच में छुपी हुई है, वह है - अपने आप को प्यार करना। यदि आप खुद को प्यार नहीं कर सकते तो दूसरों को कैसे प्यार करोगे, और यदि आप दूसरों को प्यार नहीं कर सकते तो ईश्वर को प्यार कैसे करोगे? आइए हम ईश्वर से कृपा माँगें कि हम दूसरों में और खुद के अन्दर ईश्वर की उपस्थिति को पहचानें और सबसे बढ़कर उसे प्यार करें। आमेन।

- फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

When the Israelites became hopeless and moaned “Our bones are dried up, our hope is lost and we are cut off.” But God gives them assurance that he loves them and for him nothing is impossible. Through prophet Ezekiel he shows that he can give new life even to the dry bones, because his love is everlasting. The first reading indicates God’s love towards people and gospel of today tells about our response to God’s love. That is why we have to love our God with all our heart, with all our soul and with all our mind and to do that first step is to love our neighbour as ourselves.

First and most important commandment is to love God above and more than everything and the second part of this commandment is love our neighbour as ourselves because without loving our neighbour we cannot love God. St. John says that you cannot love God if you hate your brother or sisters (Cf. 1Jn.4:20-21). That’s why first commandment cannot be fulfilled without the second one and therefore Jesus puts them together. But before these both, there is third commandment hidden in the second, that is love yourself. If you do not love yourself how can you love others and if you cannot love others, then how can you love God? Let us pray for the grace to realise the presence of God within us and others and love him above everything else.

-Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)


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Praise the Lord!