पास्का का तीसरा सप्ताह - सोमवार



पहला पाठ :प्रेरित-चरित . 6:8-15

8) स्तेफनुस अनुग्रह तथा सामर्थ्य से परिपूर्ण हो कर जनता के सामने बहुत-से चमत्मकार तथा चिन्ह दिखाता था।

9) उस समय "दास्यमुक्त" नामक सभागृह के कुछ सदस्य और कुरेने, सिकन्दरिया, किलिकया तथा एशिया के कुछ लोग स्तेफनुस से विवाद करने आये।

10) किन्तु वे स्तेफ़नुस के ज्ञान का सामना करने में असमर्थ थे, क्योंकि वह आत्मा से प्रेरित हो कर बोलता था।

11) तब उन्होंने घूस दे कर कुछ व्यक्तियों से यह झूठी गवाही दिलवायी कि हमने स्तेफनुस को मूसा तथा ईश्वर की निन्दा करते सुना।

12) इस प्रकार जनता, नेताओं तथा शास्त्रियों को भड़काने के बाद वे अचानक स्तेफनुस के पास आ धमके और उसे पकड़ कर महासभा के सामने ले गये।

13) वहाँ उन्होंने झूठे गवाहों को खड़ा किया, जो बोले, "यह व्यक्ति निरन्तर मन्दिर तथा मूसा की निन्दा करता है।

14) हमने इसे यह कहते सुना कि ईसा नाज़री यह स्थान नष्ट करेगा और मूसा के समय से चले आ रहे हमारे रिवाजों को बदल देगा।"

15) महासभा के सब सदस्य स्थिर दृष्टि से स्तेफ़नुस की ओर देख रहे थे। उसका मुखमण्डल उन्हें स्वर्गदूत के जैसा दीख पड़ा।

सुसमाचार : योहन 6:22-29

22) जो लोग समुद्र के उस पास रह गये थे, उन्होंने देखा था कि वहाँ केवल एक ही नाव थी और ईसा अपने शिष्यों के साथ उस नाव पर सवार नहीं हुए थे- उनके शिष्य अकेले ही चले गये थे।

23) दूसरे दिन तिबेरियस से कुछ नावें उस स्थान के समीप आ गयीं, जहाँ ईसा की धन्यवाद की प्रार्थना के बाद लोगों ने रोटी खायी थी।

24) जब उन्होंने देखा कि वहाँ न तो ईसा हैं और न उनके शिष्य ही, तो वे नावों पर सवार हुए और ईसा की खोज में कफरनाहूम चले गये।

25) उन्होंने समुद्र पार किया और ईसा को वहाँ पा कर उन से कहा, "गुरुवर! आप यहाँ कब आये?"

26) ईसा ने उत्तर दिया, "मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- तुम चमत्कार देखने के कारण मुझे नहीं खोजते, बल्कि इसलिए कि तुम रोटियाँ खा कर तृप्त हो गये हो।

27) नश्वर भोजन के लिए नहीं, बल्कि उस भोजन के लिए परिश्रम करो, जो अनन्त जीवन तक बना रहता है और जिसे मानव पुत्र तुन्हें देगा ; क्योंकि पिता परमेश्वर ने मानव पुत्र को यह अधिकार दिया है।"

28) लोगों ने उन से कहा, "ईश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए हमें क्या करना चाहिए?"

29) ईसा ने उत्तर दिया, "ईश्वर की इच्छा यह है- उसने जिसे भेजा है, उस में विश्वास करो"।

📚 मनन-चिंतन

आज का पहला पाठ स्तेफनुस के धार्मिक व्यक्त्वि के बारे बताता है। स्तेफनुस उन सात धर्म सेवकों में सम्मल्लित था जिन्हें प्रेरितों पर भोजन के वितरण की जिम्मेदारी सौंपी थी। स्तेफनुस एक साहसी विश्वासी थे जिन्होंने येसु के लिये शहादत स्वीकारी तथा आने वाली पीढीयों के लिये इसका एक आदर्श रखा। वे पवित्र आत्मा से पूर्ण थे। उनमें पवित्र आत्मा की प्रज्ञा समायी थी। इनके विरोधी यहूदी लोग संहिता एवं पुरर्खों की पंरपरा में परांगत थे किन्तु स्तेफनुस की प्रज्ञा के सामने वे निरूत्तर रह गये थे। स्तेफनुस प्रभु ईश्वर के बारे में अकाट्य विश्वास के साथ बोल रहे थे। उनका विश्वास इतना दृढ था वे उनके विरोधियों के झूठे आरोपों के सामने भी अविचलित रहे। वे कृपा से पूर्ण थे। इससे यह तात्पर्य है कि उन्हें येसु का व्यक्तिगत अनुभव एवं समझ रही होगी। ईश्वर ने उन्हें असीम कृपा प्रदान की थी।

स्तेफनुस शक्ति और सामर्थ्य से भी पूर्ण थे। ईश्वर ने उन्हें जनता के सामने बहुत चमत्कार और चिन्ह दिखाने का सामर्थ्य प्रदान किया था। लोग उनके व्यक्त्वि एवं कार्यों से विस्मित थे। उनकी इस महानता तथा चमत्कारों के कारण यहूदी भीषण ईर्ष्या से भर गये थे।

इस प्रकार स्तेफनुस के ईश्वरीय गुण जैसे पवित्र आत्मा से परिपूर्णता, प्रज्ञा, विश्वास, अनुग्रह, साहस, शक्ति एवं सामर्थ्य इस बात की निशानी थे कि वे ईश्वर से बडी गहरायी से जुडे थे। स्तेफनुस ने इन सभी ईश्वर वरदानों को प्रभु येसु का साक्ष्य देने में लगाया।

हम में से हरेक बपतिस्मा प्राप्त व्यक्ति पर पवित्र आत्मा की मुहर अंकित है। हमने पवित्र आत्मा के उपहारों को ग्रहण किया है। हमें विवेचना करना चाहिये कि क्या हम इन वरदानों के बारे में जागरूक है या फिर ये वरदान हम में सुप्त अवस्था में है। हमें संत स्तेफनुस के सामन प्रार्थना और विश्वास के जीवन के द्वारा इस बात की खोज करना चाहिये तथा उनके समान इन वरदानों का उपयोग प्रभु के कार्यों में करना चाहिये।

फादर रोनाल्ड वाँन

📚 REFLECTION


Today’s first reading presents us the godly personality of Stephen who was one of seven deacons selected by the apostles to oversee the distribution of the food. Stephen was a courageous man who set a trend of martyrdom for the generations to follow. He was the man of full of Holy Spirit. He had the wisdom that the Holy Spirit provides. Those traditional Jews were well versed in their tradition however could not match the wisdom with which Stephen spoke. Stephen spoke with audacious conviction in the sovereign God. His faith was so strong that he remained undeterred by the false and manipulated accusations of the crowd. Stephen was also full of grace. It would mean that he had a personal understanding and experience of Jesus. And God had blessed him with his grace in great measure.

Stephen was also full of power. God gave Stephen the ability to perform “great wonders and signs among the people” (6:8). People were amazed and overwhelmed by Stephen. These works of power had definitely provoked great envy in the traditional Jews who were opposing him.

Thus, Stephen’s inner qualities, being full of the Holy Spirit, wisdom, faith, grace, and power, show his deep-rootedness in God. Stephen made use of these gifts to give powerful witnessing of Jesus whom he had trusted.

Every baptised person has been sealed with the Holy Spirit. We all have received the gifts of the Holy Spirit. Either we are not aware or they are in dormant state we need to discover it with a life of prayer and faith like Stephen and use them for the glory of God.

-Fr. Ronald Vaughan


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Praise the Lord!