पास्का का पाँचवाँ सप्ताह - मंगलवार



पहला पाठ : प्रेरित-चरित 14:19-28

19) इसके बाद कुछ यहूदियों ने अन्ताखिया तथा इकोनियुम से आ कर लोगों को अपने पक्ष में मिला लिया। वे पौलुस को पत्थरों से मार कर और मरा समझ कर नगर के बाहर घसीट ले गये;

20) किन्तु जब शिष्य पौलुस के चारों ओर एकत्र हो गये, तो वह उठ खड़ा हुआ और नगर लौट आया। दूसरे दिन वह बरनाबस के साथ देरबे चल दिया।

21) उन्होंने उस नगर में सुसमाचार का प्रचार किया और बहुत शिष्य बनाये। इसके बाद वे लुस्त्रा और इकोनियुम हो कर अन्ताखिया लौटे।

22) वे शिष्यों को ढारस बँधाते और यह कहते हुए विश्वास में दृढ़ रहने के लिए अनुरोध करते कि हमें बहुत से कष्ट सह कर ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना है।

23) उन्होंने हर एक कलीसिया में अध्यक्षों को नियुक्त किया और प्रार्थना तथा उपवास करने के बाद उन लोगों को प्रभु के हाथों सौंप दिया, जिस में वे लोग विश्वास कर चुके थे।

24) वे पिसिदिया पार कर पम्फुलिया पहुँचे

25) और पेरगे में सुसमाचार का प्रचार करने के बाद अत्तालिया आये।

26) वहाँ से वे नाव पर सवार हो कर अन्ताखिया चल दिये, जहाँ से वे चले गये थे और जहाँ लोगों ने उस कार्य के लिए ईश्वर की कृपा माँगी थी, जिसे उन्होंने अब पूरा किया था।

27) वहाँ पहुँचकर और कलसिया की सभा बुला कर वे बताते रहे कि ईश्वर ने उनके द्वारा क्या-क्या किया और कैसे गै़र-यहूदियों के लिए विश्वास का द्वार खोला।

28) वे बहुत समय तक वहाँ शिष्यों के साथ रहे।

सुसमाचार : योहन 14:27-31

27) मैं तुम्हारे लिये शांति छोड जाता हूँ। अपनी शांति तुम्हें प्रदान करता हूँ। वह संसार की शांति-जैसी नहीं है। तुम्हारा जी घबराये नहीं। भीरु मत बनो।

28) तुमने मुझ को यह कहते सुना- मैं जा रहा हूँ और फिर तुम्हारे पास आऊँगा। यदि तुम मुझे प्यार करते, तो आनन्दित होते कि मैं पिता के पास जा रहा हूँ, क्योंकि पिता मुझ से महान है।

29) मैंने पहले ही तुम लोगों को यह बताया, जिससे ऐसा हो जाने पर तुम विश्वास करो।

30) अब मैं तुम लोगों से अधिक बातें नहीं करूँगा क्योंकि इस संसार का नायक आ रहा है। वह मेरा कुछ नहीं बिगाड सकता,

31) किन्तु यह आवश्यक है कि संसार जान जाये कि मैं पिता को प्यार करता हूँ और पिता ने मुझे जैसा आदेश दिया है मैं वैसा ही करता हूँ। उठो! हम यहाँ से चलें।’’

📚 मनन-चिंतन

जब जीवन में सब अस्त वयस्त हो और ह्दय व्याकुल हो तो केवल शांति ही हमें उस अवस्था से उबार सकता है। प्रभु येसु शांति के राजा है, तथा पुनरुत्थान के बाद जब वे शिष्यों को बंद कमरे में दर्शन देते है तो सबसे पहले यही आशिष देते है कि तुम्हें शांति मिले।

आज का सुसमाचार हमारे बीच में येसु और शिष्यों के बीच में उस वार्तालाप को रखता है जो प्रभु येसु ने पवित्र आत्मा के आने के विषय बताने के बाद कही थी। प्रभु येसु को ज्ञात था कि उनके मरण के बाद पेंतेकोस्त तक शिष्य व्याकुल हो जायेगंे, घबरा जायेंगे इसलिये प्रभु उन से कहते है, ‘‘मैं तुम्हारे लिये शांति छोड़ जाता हूॅं। अपनी शांति तुम्हें प्रदान करता हॅूं। वह संसार की शांति जैसी नहीं है। तुम्हारा जी घबराये नहीं। भीरु मन बनों।’’

मैं तुम्हारे लिये शांति छोड़ जाता हॅूं। अपनी शांति तुम्हें प्रदान करता हॅूं - प्रभु येसु जाते जाते यह आश्वसन देते जाते हैं वह जाते जाते अपनी शांति देकर जाऐंगे। प्रभु की शांति किस प्रकार की है? प्रभु की शांति इस संसार की शांति से परे है। जब शिष्यगण येसु के साथ झील पार कर रहे थे तब अचानक झंझावट उठा और नाव पानी से भरी जा रही थी। येसु दुम्बाल में तकिया लगाकर सो रहे थे तब शिष्यों ने उन्हे जगाया और प्रभु ने वायु को डॉंटा और पूर्ण शांति छा गई (मत्ती 8ः23-27)। शिष्य उस घटना के समय बहुत डर गये थे क्योकि झंझावट केवल बाहर ही नहीं परंतु उनके भीतर उनके ह्दय में भी था। प्रभु येसु उस झंझावट भरी घटना में जहॉं बहुत शोरगुल था, लहरो का नाव से टकराव था ऐसी स्थिति में भी वे शांत भाव से सो रहे थे क्योकि प्रभु के भीतर झंझावट नहीं परंतु शांति था। प्रभु की शांति का राज-पिता ईश्वर के प्रति पूर्ण रूप से समर्पण तथा विश्वास होना। अर्थात् भले ही मेरे चारों ओर तबाही हो हाहाकार हो फिर भी विश्वास होना कि प्रभु मेरे साथ है, मेरे भीतर है वह मेरा कुछ भी अनिष्ठ नहीं होने देगा। यह विश्वास और शांति केवल येसु ही हमें प्रदान कर सकते है।

आइये हम प्रभु की शांति को ग्रहण करने उसको महसूस करने के लिए आज के वचन के द्वारा प्रार्थना करें।

फ़ादर डेनिस तिग्गा

📚 REFLECTION


When there is turmoil in the life and heart is anxious then only peace can overcome that situation. Jesus is the Prince of Peace, and after the Resurrection when he meets the disciples in the closed room he first and foremost gives the blessing of peace.

Today’s Gospel keeps before us the conversation between Jesus and the disciples about the situation after telling about coming of Holy Spirit. Lord Jesus knew that after his death till the Pentecost disciples will be disturbed, frighten that’s why Lord says to them, “Peace I leave with you; my peace I give to you. I do not give to you as the world gives. Do not let your hearts be troubled, and do not let them be afraid.”

Peace I leave with you; my peace I give to you- Before leaving Jesus gives the assurance of his peace. What kind is the Peace of the Lord? Peace of God is different from the peace of the world. When disciples were crossing the sea along with Jesus, suddenly a windstorm arose on the sea, so great that the boat was being swamped by the waves. Jesus was sleeping and the disciples woke him and Jesus rebuked the winds and the sea; and there was a dead calm (Mt 8:23-27). Disciples were very frightened of that incident because the storm was not only outside but also inside of them, in their hearts. Jesus in that incident full of storm where there was lot of alarm and excursions, boat was being swamped by the waves; even in this situation Jesus was sleeping peacefully because the inside Jesus there was peace not the storm. The secret of Jesus’ peace is the full trust and surrender in the Abba Father. That means to say even if I am surrounded by the destruction or outcry then also having strong believe that God is with me, inside me and he will never allow anything to harm me. This kind of trust and peace only Jesus can give us.

Let’s pray through today’s word that we may receive and experience Lord’s peace.

-Fr. Dennis Tigga


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Praise the Lord!