जनवरी 07

संत रेमंड डी पेन्याफ़ोर्ट

संत रेमन्ड का जन्म स्पेन के बार्सिलोना शहर के समीप सन् 1175 को एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। संत रेमन्ड बहुत ही ज्ञानी तथा लगन के पक्के व्यक्ति थे। वे अरागोन के राजा का संबन्धी थे। बचपन से वे माता मरियम के भक्त थे। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने एक शिक्षक के रूप में काम किया औ इस कार्य में वे प्रसिद्ध बने। वे उन सब उपलब्धियों को त्याग कर सन्त डोमिनिक के धर्मसमाज के सदस्य बने। रेमंड बहुत विनम्र थे और उनका विश्वास बहुत गहरा था। अपने अथाह परिश्रम से उन्होंने कई आत्माओं को ईश्वर की ओर आकर्षित किया।

तीस वर्ष की आयु में कलीसिया के कानून की पढाई करने गये तथा इस विषय में डाक्टर की उपाधि प्राप्त कर अध्यापन कार्य करने लगे। 1219 में बार्सिलोना के धर्माध्यक्ष बेरेगारियस ने रेमन्ड को अपना महोपयाजक नियुक्त किया। अपनी लगन, भक्ति तथा निर्धनों के प्रति असीम उदारता के कारण रेमन्ड याजक तथा जनसाधारण के बीच आदर्ष स्वरूप बन गए।

पापा ग्रेगोरी नवें के आदेश पर इन्होने ’’डेक्रेटल की पुस्तक’’ नामक किताब सम्पादित की। संत रेमन्ड अपने धर्मसमाज के सर्वोच्च पद के लिए चुने गये तथा बडे ही विवेकपूर्ण तरीके से इन्होंने अपने धर्मसमाज का संचालन किया। अपने धर्मसमाज के सन्यासियों में उन्होंने नियमनिष्ठता, एकांतप्रियता, अध्ययनषीलता तथा पुरोहितिक उत्तरदायित्व की भावना भरने का प्रयत्न किया। संत रेमन्ड का सबसे उल्लेखनीय लेखन कार्य ’’सम्मरी ऑफ केसेसे’’ था जिसमें उन्होंने पाश्चाताप संस्कार को अच्छी तरह संचालित करने के नियम निर्धारित किये। संत रेमन्ड का निधन 100 वर्ष की आयु में सन् 1275 को हुआ। इसके बाद संत की समाधि पर अनेक चमत्कार होने लगे और उनकी समाधि जनता का तीर्थस्थान बन गया। सन्त रेमंड कलीसियाई कानून के विशेषज्ञों का संरक्षक सन्त माने जाते हैं।


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