फरवरी 11

लूर्द की निष्कलंक कुँवारी - ऐच्छिक स्मृति

11 फरवरी 1858 को, फ्रांस की लूर्द नामक जगह पर माता मरियम ने बेर्नादिक्त नामक एक चौदह साल की लड़की को एक गुफे में दर्शन दिया। उस समय बर्नादिक्त अपने घर से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर अपनी बहन और एक सहेली के साथ जलाऊ लकड़ी बटोर रही थी। तत्पश्चात्‍ माता मरियम ने उसी साल उन्हें 18 बार दर्शन दिये। अपने दर्शनों में माता मरियम ने बर्नादिक्त से कहा कि वे इस दुनिया में उन्हें खुश रखने का वादा नहीं करती है, बल्कि परलोक में उन्हें आनन्द प्रदान करने का वादा करती है। माता मरियम ने बर्नादिक्त से कहा कि वे पश्चात्तप और प्रायश्चित करके पापियों के मनफिराव के लिए प्रार्थना करें। अपने एक दर्शन के दौरान माता मरियम ने बर्नादिक्त से ज़मीन की मिट्टी खोदने को कहा। खोदने पर वहाँ एक झरना निकला जो आज भी भक्तजनों के लिए एक बहुत बडे आकर्षण की जगह है। उस झरने के पानी पीने से बहुत से रोगियों को चंगाई प्राप्त हुयी है। उसी साल के 25 मार्च के अपने दर्शन में माता मरियम ने कहा, “मैं निष्कलंक गर्भागमन हूँ”। इन दर्शनों की बातें पूरे फ्रांस और दुनिया के विभिन्न देशों में फैल गयीं।

माता मरियम के दर्शनों के इस मामले का पूरा जाँच-पड़ताल कराने के बाद 18 जनवरी सन 1860 को स्थानीय धर्माध्यक्ष ने यह पुष्ठ किया कि बर्नादिक्त को माता मरियम ने दर्शन दिया था। सन 1870 में संत पापा पीयुस नौवें ने इस मरियन तीर्थस्थल को औपचारिक स्वीकृति दी। सन 1933 में संत पापा पीयुस ग्यारहवें ने बर्नादिक्त को संत घोषित किया। दुनिया के कोने-कोने से चालीस से साठ लाख भक्तजन हर साल लूर्द kkkके इस तीर्थस्थल पर जाकर माता मरियम की मध्यस्थता में प्रार्थना करते हुए ईश्वर की आशिष प्राप्त करते हैं।


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