अप्रैल 08

संत जूलिया बिलिअर्ट

संत जूलिया बिलिअर्ट का जन्म 1751 में हुआ था और 1816 में उनकी मृत्यु हो गई थी। एक बच्चे के रूप में, ‘‘स्कूल‘‘ खेलना जूलिया का पसंदीदा खेल था। जब वह सोलह वर्ष की थी, अपने परिवार का गुजारा करने में मदद करने के लिए, उन्होंने ‘‘असल में ‘‘ पढ़ाना शुरू किया। वह दोपहर के अवकाश के दौरान एक घास के ढेर पर बैठ जाती और बाइबिल के दृष्टान्तों को श्रमिकों को बताया करती थी। जूलिया ने जीवन भर अध्यापन के इस मिशन को आगे बढ़ाया, और जिस समुदाय की उन्होंने स्थापना की उसने उनके उस काम को आज भी जारी रखा है।

जूलिया अपने परिवार में सात बच्चों में पांचवीं थी। उन्होंने कुविली में एक छोटे से एक कमरे के स्कूल में पढ़ाई की। उसने अपनी सारी पढ़ाई का आनंद लिया, लेकिन वह विशेष रूप से पल्ली पुरोहित द्वारा सिखाए गए धर्म के पाठों के प्रति आकर्षित थी। जूलिया में कुछ ‘‘विशेष‘‘ को पहचानते हुए, पुरोहित ने चुपके से उन्हें नौ साल की उम्र में, अपना प्रथम परम प्रसाद ग्रहण करने की अनुमति प्रदान की जबकि उस समय सामान्य उम्र तेरह थी। उन्होंने छोटी मानसिक प्रार्थना करना और यूखरिस्त में येसु के लिए एक महान प्रेम विकसित करना सीखा।

उनके पिता पर एक हत्या के प्रयास ने उनकी तंत्रिका-तंत्र को बुरी तरह झकझोर कर रख दिया। जूलिया के लिए बेहद खराब स्वास्थ्य की अवधि शुरू हुई, और तीस साल तक चली। इन बाईस वर्षों में वह पूरी तरह से लकवाग्रस्त थी। उन्होंने अपने सारे कष्ट और दर्द ईश्वर को अर्पित कर दिए।

जब फ्रांसीसी क्रांति छिड़ गई, तो जूलिया ने वफादार पुरोहितों के छिपने के स्थान के रूप में अपने घर की पेशकश की। इस वजह से जूलिया एक शिकार बन गई। तीन साल में पांच बार उन्हें छिपाने वाले दोस्तों को संकट से बचाने के लिए गुप्त रूप से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा।

इस समय उन्हें एक दिव्य दर्शन प्राप्त हुआ। उन्होंने सूली पर चढ़ाए गए अपने प्रभु को धार्मिक महिलाओं के एक बड़े समूह से घिरा हुआ देखा, जो एक ऐसे घर्मिक वस्त्र में थे जिसे उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था। एक आंतरिक आवाज ने उसे बताया कि ये उनकी बेटियाँ होंगी और वे युवा लड़कियों की ख्रीस्तीय शिक्षा के लिए एक संस्थान शुरू करेगी। उन्होंने और एक अमीर युवती ने सिस्टर्स ऑफ नोट्रेडेम डी नामुर की स्थापना की।

अमीन्स में, दो महिलाओं और कुछ साथियों ने 1803 में एक धार्मिक जीवन जीना शुरू किया। 1804 में, जूलिया चमत्कारिक रूप से अपनी बीमारी से ठीक हो गई और बाईस वर्षों में पहली बार चली। 1805 में, जूलिया और तीन साथियों ने अपना व्रत लिया और अपनी अंतिम प्रतिज्ञा ली। उन्हें युवा मंडली की मदर जनरल के रूप में चुना गया था।

1815 में, मदर ने वाटरलू की लड़ाई से बचे हुए घायलों की देखभाल और भूख से मर रहे लोगों को खिलाकर अपने खराब स्वास्थ्य को और भी बिगाड लिया। अपने जीवन के अंतिम तीन महीनों में, उन्होंने फिर से बहुत कुछ सहा। 8 अप्रैल, 1816 को 64 वर्ष की आयु में उनका शांतिपूर्वक निधन हो गया। 13 मई, 1906 को जूलिया को धन्य घोषित किया गया, और 1969 में संत पिता पौलुस छठे द्वारा उन्हें संत घोषित किया गया। उनके पर्व का दिन 8 अप्रैल है।


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