मई 22

कश्चिया की संत संत रीता

22 मई को, कलीसिया कश्चिया की संत रीता का पर्व मनाती है, जिन्हें स्वर्गीय योहन पौलुस द्वितीय ने ‘‘क्रूस पर चढ़ाए गए एक शिष्य‘‘ और ‘‘दुख में विशेषज्ञ‘‘ कहा था।

स्पेन में ‘‘ला सांता डे लॉस इंपॉसिबिल्स‘‘ (असंभव के संत) के रूप में जानी जाने वाली संत रीता सदियों से बेहद लोकप्रिय हो गई है। उन्हें जीवन की सभी स्थितियों और अवस्थाओं में लोगों द्वारा आह्वान दिया जाता है, क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में अनुभव की गई कई परीक्षाओं में परोपकार और क्षमा के साथ दुखों को स्वीकार किया थाः एक पत्नी, विधवा, एक माँ के रूप में जो अपने बच्चों की मृत्यु के बाद बची थी, और एक धर्मबहन के रूप में।

1386 में रोक्कापारेना, उम्ब्रिया में जन्मी, संत रीता का विवाह 12 साल की उम्र में एक हिंसक और बदमिजाज पति से हुआ था। 18 साल बाद उनकी हत्या कर दी गई और उन्होंने उनके हत्यारों को क्षमा कर दिया, प्रार्थना करती रही कि उनके जुड़वां बेटे, जिन्होंने अपने पिता की मौत का बदला लेने की शपथ ली थी, वे भी हत्यारों को क्षमा प्रदान कर सकें। उन्हें यह अनुग्रह प्रदान किया गया, और उनके पुत्रों का, जो युवावस्था में ही मर गए, ईश्वर से मेल होने के बाद ही स्वर्गवास हुआ।

संत ने कैसिया में ऑगस्टिनियन कॉन्वेंट में धर्मबहन बनने का आह्वान सुना, लेकिन पहले तो उन्हें प्रवेश से मना कर दिया गया। उन्होंने संत अगस्टिन, मरियम माग्दालेना और योहन बपतिस्ता की हिमायत मांगी और अंत में उन्हें कॉन्वेंट में प्रवेश करने की अनुमति दी गई, जहां उन्होंने अपने जीवन के अंतिम 40 वर्षों में प्रार्थना, वैराग्य और कैसिया के लोगों की सेवा की।

अपने जीवन के अंतिम 15 वर्षों में प्रभु येसु के दुःखभोग के और अधिक गहराई से अनुरूप होने के लिए उनकी प्रार्थनाओं के जवाब में उन्हें एक दैविक क्षतचिन्ह के समान कांटेदार घाव मिला। रीता अपने जीवन के अंतिम चार वर्षों में बिस्तर पर पड़ी थी, यूखारिस्त के अलावा लगभग कुछ भी नहीं खा रही थी। 22 मई, 1456 को 70 वर्ष की आयु में क्षयरोग से उनकी मृत्यु हो गई।

2000 में उनके संत घोषण की 100 वीं वर्षगांठ पर, संत पिता योहन पौलुस द्वितीय ने एक खीस्तीय महिला के रूप में उनके उल्लेखनीय गुणों का वर्णन कियाः ‘‘रीता ने ‘स्त्री प्रतिभा‘ को शारीरिक और आध्यात्मिक मातृत्व दोनों में तीव्रता से जीकर इसकी अच्छी तरह से व्याख्या की।”

संत रीता को 1900 में संत पिता लियो तेरहवें द्वारा संत घोषित किया गया था। वे असंभव कारणों, बाँझपन, दुर्व्यवहार, पीड़ितों, अकेलेपन, विवाह की कठिनाइयों, पितृत्व, विधवाओं, बीमारों, शारीरिक बीमारियों और घावों की संरक्षक संत हैं।


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