मई 24

धन्य कुँवारी मरियम, खीस्तीयों की सहायता

मरियम, खीस्तीयों की सहायता का पर्व 24 मई को मनाया जाता है। इस मध्यस्थता की परंपरा को 1571 में हुई घटना से सम्बंधित देखा जाता है, जब पूरे खीस्तीय जगत को मरियम, खीस्तीयों की सहायता द्वारा बचाया गया था जिस दिन पूरे यूरोप में काथलिकों ने माला की प्रार्थना की थी। लेपैंटो की महान लड़ाई 7 अक्टूबर 1571 को हुई थी। इसी कारण इस तिथि को पवित्र माला के पर्व के रूप में चुना गया है। 1573 में संत पिता पियुस पंचम ने इस्लामवाद पर खीस्तीय धर्म की निर्णायक जीत के लिए धन्यवाद के रूप में पर्व की स्थापना की।

17वीं शताब्दी के अंत में, ऑस्ट्रिया के सम्राट लियोपोल्ड प्रथम ने पासाऊ में मरियम, खीस्तीयों की सहायता के मंदिर में शरण ली, जब 200,000 ओटोमन तुर्कों ने वियना की राजधानी शहर को घेर लिया, लेकिन मरियम, खीस्तीयों की सहायता के कारण एक बड़ी जीत हासिल हुई। 8 सितंबर, माता मरियम के जन्मदिन के पर्व पर, युद्ध के लिए योजनाएँ तैयार की गईं। 12 सितंबर को, मरियम के पवित्र नाम के पर्व पर, विएना को अंततः मरियम, खीस्तीयों की सहायता की मध्यस्थता के माध्यम से मुक्त कर दिया गया था। ‘‘मरियम, मदद कीजिए!‘‘ के नारे लगाते हुए और पवित्र माला की प्रार्थना करते हुए सम्राट सहित सारा यूरोप इस कार्य में शामिल हो गया था।

1809 में, नेपोलियन के सैनिकों ने वतिकान में प्रवेश किया, संत पिता पियुस सप्तम को गिरफ्तार किया और उन्हें ग्रेनोबल और अंततः फॉनटेनब्लियू में जंजीरों में बांधकर लाया। उनका कारावास पांच साल तक चला। संत पिता ने ईश्वर से प्रतिज्ञा की कि यदि उन्हें रोमन कलीसिया में बहाल किया गया, तो वे मरियम के सम्मान में एक विशेष पर्व का आयोजन करेंगे। सैन्य पराजय ने नेपोलियन को संत पिता को रिहा करने के लिए मजबूर किया, और 24 मई 1814 को, पियुस सप्तम रोम में विजयी होकर लौट आए। बारह महीने बाद, संत पिता ने आदेश दिया कि मरियम, खीस्तीयों की सहायता का पर्व 24 मई को रखा जाए।

संत योहन बॉस्को (1815 - 1888) एक ऊर्जस्वी पुरोहित थे जिन्होंने इटली में उन्नींसवी शताब्दी में सेल्सियन तपस्वी धर्मसंघ की स्थापना की थी। नौ साल की उम्र से शुरू होने वाले उनके कई भविष्यसूचक सपनों ने उनकी प्रेरिताई का मार्गदर्शन किया और भविष्य की घटनाओं पर अंतर्दृष्टि दी।

14 मई, 1862 को, डॉन बॉस्को ने उन लड़ाइयों के बारे में सपना देखा, जिनका कलीसिया बाद के दिनों में सामना करेगा। अपने सपने में, उन दिनों के संत पिता कलीसिया के ‘जहाज‘ को दो स्तंभों के बीच लंगर डालते हैं, एक मरियम की मूर्ति के साथ (ऑक्सिलियम क्रिस्टियनोरम या ‘खीस्तीयों की सहायता‘) और दूसरा एक बड़े यूखारिस्तीय होस्तिया के साथ।

संत योहन बॉस्को ने उनकी मण्डली, सेल्सियनो के बारे में लिखाः ‘‘मुख्य उद्देश्य परम प्रसाद की वंदना और मरियम, खीस्तीयों की सहायता के प्रति समर्पण को बढ़ावा देना है। यह शीर्षक स्वर्ग की महारानी को बहुत खुश करता है।‘‘

संत योहन बॉस्को की सेल्सियन धर्मबहनों या मरियम, खीस्तीयों की सहायता की बेटियाँ, डॉन बॉस्को के सेल्सियन तपस्वी धर्मसंघ की भगिनी संघ की सदस्या हैं।

संत योहन बॉस्को ने, स्वयं, 9 जून 1868 को, ट्यूरिन (इटली) में उनकी मण्डली की मातृ कलीसिया को, मरियम, खीस्तीयों की सहायता को समर्पित किया। सेल्सियन पुरोहितो और उनकी धर्मबहनों ने अपने कई प्रतिष्ठानों में इस की भक्ति की है।


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