सितंबर 17

संत रॉबर्ट बेल्लर्मीनो

रॉबर्ट वेल्लर्मीनो का जन्म 4 अक्टूबर, 1542 को टस्कनी के मोंटेपुलसियानो में असीसी के पोवेरेलो की पर्व में हुआ था, जिसके प्रति उन्होंने हमेशा एक विशेष भक्ति को संजोया था। 17 सितम्बर, जिस दिन उनकी मृत्यु हुई, अब संत फ्रांसिस के दैवीय घाव से अंकित होने के सम्मान में पर्व है।

1560 में रॉबर्ट वेल्लर्मीनो ने येसुसमाज में प्रवेश किया। वे आसानी से इनके महानतम व्यक्तियों में शुमार हो जाते है, जो सीखने के साथ-साथ धर्मपरायणता, नम्रता और हृदय की सरलता के लिए प्रसिद्ध है। यदि एक वाक्य में उनके जीवन को संक्षेप में प्रस्तुत करना संभव होता, जो उनके लंबे कार्यकाल की सभी विविध गतिविधियों और उपलब्धियों को स्पष्ट करता, तो स्तोत्र ग्रंथ के एक पद से हम कह सकते हैं : ‘‘ येरूसालेम! यदि मैं तुझे भुला दूं, तो मेरा दाहिना हाथ सूख जाये‘‘ (स्तोत्र 137:5)। उनका सबसे महत्वपूर्ण काम स्वरूप में विवादास्पद था, लेकिन उनकी प्रस्तुति का प्रभाव ‘‘एक शक्तिशाली कथा गायन में अंतिम राग जैसा था, एक राग जो उस दिन की कलीसिया के आंतरिक भ्रष्टाचार के परिणामस्वरूप सभी अवगुणों और अपवादों के माध्यम से गूंजता था, और वह राग माता कलीसिया के एक, पवित्र और काथलिक के रूप में‘‘ का अग्रदूत बना (ई.बर्मिंघौस)।

वेल्लर्मीनो ने युवा अलोसियस और योहन बर्कमैन के पापस्वीकर्ता के रूप में भी काम किया। यह पूछा जा सकता है कि वेल्लर्मीनो को धन्य और संत घोषित करने से पहले तीन सौ साल क्यों बीत गए। बहुत पहले धर्माध्यक्ष हेफेल ने इस कारण की ओर इशारा करते हुए लिखा थाः ‘‘वेल्लर्मीनो काथलिकों से सर्वोच्च सम्मान के हकदार है, भले ही उन्हें संत घोषित नहीं किया गया हो। जिन लोगों ने उन्हें कीचड़ उछालकर बदनाम करने के लिए काम किया, उन्होंने केवल अपने लिए शर्म का एक स्मारक बनाया है!‘‘ अंततः 1923 में, उन्हें धन्य घोषित किया गया; 1930 में संत घोषणा, और 17 सितम्बर, 1931 को संत पिता पियुस ग्यारहवें ने रॉबर्ट वेल्लर्मीनो को कलीसिया का धर्माचार्य (डॉक्टर) घोषित किया।


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