अक्टूबर 9

संत योहन लेयोनार्दुस और संत दियोनिस

संत योहन लेयोनार्दुस

संत योहन लेयोनार्दुस का जन्म 1541 में तुस्कानी, इटली में मार्टिन लूथर के कारण कलीसिया में उथल-पुथल के समय हुआ था। उन्होंने फार्मासिस्ट बनने के लिए अध्ययन किया, फिर बाद में वे पुरोहित बन गए। एक युवा पुरोहित के रूप में, उन्होंने युवाओं को धर्मशिक्षा सिखाने के लिए खुद को समर्पित कर दिया। 1574 में, उन्होंने धर्मप्रांतीय पुरोहितों की एक मण्डली, ‘ऑर्डर ऑफ क्लर्क्स रेग्युलर ऑफ द मदर ऑफ गॉड ऑफ लुका’’ तपस्वी धर्मसंघ की स्थापना की। इस कार्य के कारण उन्हें निर्वासन सहित अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा। उनके समकालीन, संत फिलिप नेरी, उनके एक महान मित्र और आध्यात्मिक मार्गदर्शक थे, और विशेष रूप से उनके निर्वासन के समय में उनकी बहुत मदद की।

धीरे-धीरे प्रोटेस्टेंटवाद के खिलाफ काथलिक विश्वास के एक शूरवीर के रूप में उनका प्रभाव पूरे इटली में जाना जाने लगा। बाद में उन्होंने रोम में वह संस्था स्थापित की जो बाद में ‘दे प्रोपेगैंदा फीदे’ (सोसाइटी फॉर द प्रोपेगेशन ऑफ द फेथ) बनी तथा ख्रीस्तीय सिद्धांत के भ्रातसंघ की भी जो काथलिक आस्था के प्रचार और मिशनरियों के गठन के लिए बनी है। 1600 तक योहन लेयोनार्दुस प्रोटेस्टेंटवाद के खिलाफ इटली में एक प्रसिद्ध ताकत थे, अपनी पुस्तकों, नए विचारों या करिश्मे के कारण नहीं, बल्कि ईश्वर के घर के लिए उसके धर्माचरण और उत्साह के कारण। 1609 में इस संत की सुखद मृत्यु हुई लेकिन समय से बहुत पहले। बीमारों के पास जाते समय वे प्लेग से संक्रमित हो गए थे। उन्होंने जिस छोटे समाज ‘‘क्लर्क्स रेग्युलर ऑफ द मदर ऑफ गॉड ऑफ लुका’’ की स्थापना की, वह आज तक जारी है, ख़ास तौर पर छोटे और अपने महत्वपूर्ण कार्य पर केंद्रित। संत योहन लेयोनार्दुस रोमन फोरम के पास एक सुंदर बारोक गिरजाघर में दफनाए गए है। उनके समुदाय का अंतिम नियम 1851 में प्रकाशित हुआ था। उनकी मृत्यु के समय क्लर्क्स रेग्युलर ऑफ द मदर ऑफ गॉड ऑफ लुका तपस्वी धर्मसंघ के दो घर खोले गए थे, सत्रहवीं शताब्दी के दौरान तीन अन्य खोले गए थे। योहन लेयोनार्दुस को 1861 में धन्य घोषित किया गया और 1938 में संत घोषित किया गया।

संत दियोनिस

संत दियोनिस का जन्म इटली में हुआ था। 250 में उन्हें संत पिता फेबियन द्वारा छह अन्य मिशनरी धर्माध्यक्षों के साथ फ्रांस भेजा गया था। संत दियोनिस गॉल भेजे गए पैरिस के पहले मिशनरी धर्माध्यक्ष थे। इस मिशनरी कार्य हेतु धर्माध्यक्ष दियोनिस, पुरोहित रुस्तिकस, और उपयाजक एलुथेरियस ने सीन नदी के तट पर लुटेटिया नामक एक छोटे से रोमन शहर के उत्तर के रास्ते पर गए, जहां उन्होंने मूल रोमन और पेरिसि, दोनों स्थानीय गैलिक जनजाति की सेवा की। दियोनिस और उनके साथी लुटेटिया के बगल में एक द्वीप पर बस गए, जिन्हें आज, “इले डे ला चिते” कहा जाता है। यह पेरिस का दिल है, नोट्रे डेम कैथेड्रल की जगह है, और शून्य बिंदु जहां से फ्रांस में सभी दूरियां मापी जाती हैं। तीन पवित्र तपस्वी धर्मसंघों को मूर्त रूप देने वाले दियोनिस और उनके साथी, गैर ख्रीस्तीय पुरोहितों की ईर्ष्या को भड़काने के लिए पर्याप्त रूप से सफल रहे, जिन्होंने स्थानीय राज्यपाल को उन्हें कैद करने और यातना देने के लिए मनवा लिया।

परंपरा कहती है कि 251 या 258 ईस्वी के आसपास, शहीदों को उनकी गर्दन काटने की रस्म के लिए लुटेटिया की ओर एक गैर ख्रीस्तीय पर्वत पर ले जाया गया था, इस प्रकार पहाड़ी को उसका नाम, मोंटमार्त्रे या शहीदों की पहाड़ी का नाम दिया गया था। तलवार का वार लगने के बाद और दियोनिस का सिर उनके धड़ से अलग हो जाने के बाद, उपाख्यान बताती है कि उन्होंने मोंटमार्त्रे से लेकर बेसिलिका के वर्तमान स्थल तक चलते हुए, अपने हाथों में सिर रखकर दफनाने का अपना स्थान चुना, जिसके लिए उस जगह का यह उपनाम रखा गया है। यह गिरजा फ्रांस के राजाओं की कब्रगाह बन गया, जिन्होंने पेरिस के संरक्षक की भक्ति में एक-दूसरे को पार करने का प्रयास किया।

संत दियोनिस उन चैदह पवित्र सहायकों में से एक हैं जिन्हें विशेष रूप से मध्य युग में ब्लैक प्लेग के खिलाफ आवाहन दिया जाता था।

संत दियोनिस को उन्माद के खिलाफ; संघर्ष के खिलाफ; विशेषकर सिरदर्द तथा शैतानी कब्जे के खिलाफ, पेरिस, फ्रांस आदि के संरक्षक संत माना जाता है।


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