धन्य अगस्तिन तेवरपरम्पिल

अक्टूबर 16

अगस्तीन का जन्म अप्रैल 1, 1891 को केरल के रामपुरम पल्ली के तेवरपरम्पिल परिवार में हुआ था। इट्टी आईप और एलीस्वा उनके माता-पिता थे। सातवें दिन उनका बपतिस्मा संत अगस्तीन पल्ली में हुआ और पल्ली के संरक्षक संत के नाम पर बच्चे का नामकरण किया गया। रामपुरम में अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरा करने के बाद उन्होंने मान्नानम के संत एफ्रेइम स्कूल में माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा ग्रहण की।

अपना प्राथमिक पुरोहिती प्रशिक्षण चंगनाशेरी में पूरा करने के बाद अगस्तीन ने सन 1915 में वरापुज़ा के पुत्तनपल्ली सेमनरी में प्रवेश किया। 21 दिसंबर 1921 को उनका पुरोहिताभिषेक हुआ। छोटे कद के होने कारण लोग उन्हें “कुन्जच्चन” ’छोटे फादर’ कहकर बुलाने लगे। फादर कोक्काट ने फादर अगस्तीन को पुरोहिताई की व्यवहारिक शिक्षा प्रदान की। फरवरी 1923 में फादर अगस्तीन को कडनाड पल्ली में सहायक पल्ली-पुरोहित के रूप में नियुक्त किया गया। लोग उस समय से ही फादर अगस्तीन को अपने खेतों की आशिष देने के लिए बुलाते थे और उनका यह विश्वास था कि फादर अगस्तीन की आशिष से उनके खेतों को कीडे-मकोडों से छुटकारा मिलता था।

कुछ समय कडनाड में बिताने के बाद किसी बीमारी के कारण फादर अगस्तीन वापस रामपुरम आये। इस समय उन्होंने देखा कि वहाँ के हरिजनों पर अन्याय और अत्याचार हो रहे थे। उन्हें लगा कि येसु उन्हें इन हरिजनों के उध्दार के लिए काम करने हेतु बुला रहे हैं। उन्होंने अपना जीवन इस कार्य के लिए समर्पित करने का निर्णय लिया। इस कार्य में उन्हें उनके महाधर्माध्यक्ष थॉमस कुर्यालशेरी से प्रोत्साहन भी मिला। कुछ हरिजनों ने बपतिस्मा ग्रहण किया। जब फादर अगस्तीन को मालूम हुआ कि वे सभी हरिजन अशिक्षित थे, उन्होंने उनकी प्राथमिक शिक्षा के लिए प्रबंध किया।

16 अक्टूबर 1973 को लम्बी बीमारी के बाद फादर अगस्तीन का देहान्त हो गया। फादर अगस्तीन को गिरजाघर की वेदी के सामने दफनाया गया। उन्होंने मृत्यु से पहले हरिजनों को दफनाने की जगह पर ही दफनाये जाने की इच्छा प्रकट की थी

कई लोग उनके जीवन काल में ही उनको एक संत मानते थे। उनकी मृत्यु के बाद कई लोग उनकी कब्र पर आकर उनकी मध्यस्थता की याचना करने लगे। अप्रैल 30, 2006 को प्रधान महाधर्माध्यक्ष श्रध्देय वर्की वितयत्तिल ने उनके गाँव रामपुरम में उन्हें धन्य घोषित किया।


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